Tuesday 24 October 2017

फटकार के साथ पुचकार भी जरूरी

केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर में सभी पक्षों से बातचीत का जो पैंतरा चला उसका समय काफी महत्वपूर्ण है। एनआईए द्वारा शिकंजा कस दिये जाने के कारण अलगाववादी नेता पूरी तरह ठंडे पड़े हुए हैं। पाकिस्तान से मिलने वाली आर्थिक सहायता को अवरुद्ध किये जाने के बाद से पत्थरबाजी की वारदातें भी लगभग रुक सी गई है। सुरक्षा बलों ने जिस तरह ढूंढ़-ढूंढ़कर आतंकवादियों को मारा उससे भी घाटी का वातावरण बदला है। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर नियंत्रण लगाने में भी कामयाबी मिली है। सबसे बड़ा बदलाव ये देखने मिला कि पुलिस में भरती हेतु अपेक्षा से अधिक नौजवान परीक्षा देने उमड़े। सरकार द्वारा आयोजित खेलकूद तथा अन्य गतिविधियों में भी न सिर्फ युवक वरन् युवतियां भी बड़ी संख्या में बिना डरे शामिल हुईं। घाटी पूरी तरह आतंक से मुक्त हो चुकी है ये मान लेना तो मूर्खता कही जाएगी किन्तु बीते एक-दो वर्ष के भीतर पूरी तरह बेकाबू लग रहे हालात को सुरक्षा बलों ने काफी हद तक नियंत्रण में ले लिया है। हुर्रियत नेताओं की चौतरफा घेराबंदी का भी असर दिखने लगा है। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ये रही कि आतंकवादी संगठनों से जुड़े बड़े नेताओं सहित बड़ी घटनाओं को अंजाम देने वाले अनेक पाकिस्तानी पि_ुओं को भी सुरक्षा बलों ने धराशायी करते हुए आतंक के कारोबार की कमर तोडऩे में सफलता हासिल कर ली। इसका परिणाम ये हुआ कि हताश आतंकवादी कश्मीरी लोगों पर ही गुस्सा निकालने लगे। हाल ही में एक आतंकवादी को भीड़ द्वारा घेरकर पीटने की घटना भी घाटी के बदलते माहौल का इशारा करती है। ऐसा लगता है जो जनता खासतौर पर युवक पैसे एवं आतंकियों के खौफ की वजह से सुरक्षा बलों के खिलाफ खड़े होते थे वे भी अब पीछे हटने लगे हैं। पत्थरबाजी के लिये मिलने वाली रकम बंद होने तथा आतंकवादियों का बड़े पैमाने पर सफाये होने से घाटी में सुरक्षा बलों तथा प्रशासन का दबदबा कायम होने की स्थिति बन गई है। ऐसे में केन्द्र सरकार द्वारा राजनीतिक समाधान हेतु बातचीत के लिये आईबी के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त करना चौंकाने वाला किन्तु सही कदम है। यद्यपि 15 अगस्त पर लालकिले से प्रधानमंत्री ने इसका हल्का सा संकेत दे दिया था किन्तु इसकी पुष्टि गृहमंत्री राजनाथ सिंह की पिछली श्रीनगर यात्रा से हुई। वार्ताकार श्री शर्मा वर्तमान में उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठनों से बातचीत कर रहे हैं। खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के तौर पर उनका अनुभव ऐसे कार्यों में काफी सहायक होता है। केन्द्र के इस कदम को ढिलाई के रूप  में देखना गलत होगा क्योंकि गृहमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि किससे, कितनी और कब तक बात करनी है ये तय करने का अधिकार श्री शर्मा को दिया गया है। यही नहीं उन्हें केबिनेट सचिव का दर्जा देकर काफी अधिकार संपन्न भी बनाया गया है। वे अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिये चूंकि स्वतंत्र होंगे इसलिये हर बात में केन्द्र या राज्य सरकार का मुंह ताकने की मजबूरी से उन्हें मुक्त रखा गया है। राज्य की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने इस पहल का स्वागत किया है वहीं कांग्रेस इसे सरकार का घुटनाटेक होना बता रही है। पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग वाली कहावत दोहराते हुए पाकिस्तान से बात करने की रट भी लगाई है। केन्द्र सरकार की ओर से ये स्पष्ट कर दिया गया कि दिनेश्वर शर्मा हुर्रियत नेताओं सहित अन्य अलगावादी संगठनों और नेताओं से बात करें अथवा नहीं ये फैसला उन्हीं को करना होगा। जम्मू कश्मीर में कोशिशें ऐसी पहले भी हो चुकी हैं परन्तु वार्ताकार को इतना अधिकार और छूट शायद ही पहले दी गई। हुर्रियत चूंकि पाकिस्तान को अलग रखकर बातचीत करने का विरोध करती रही है इस कारण ये संभव है कि श्री शर्मा घाटी के उन लोगों से बात करें जो पाकिस्तान को साथ रखने की जिद नहीं करते। जहां तक बात फारूख और उमर अब्दुल्ला की है तो हो सकता है केन्द्र सरकार उन्हें ज्यादा घास नहीं डाले क्योंकि कश्मीर को समस्याग्रस्त बनाए रखने में इस खानदान की सबसे बड़ी भूमिका रही है। कुल मिलाकर परिस्थितियों पर पूरी तरह नियंत्रण स्थापित करने के उपरांत शांति वार्ता का निर्णय केन्द्र का सकारात्मक एवं साहसिक निर्णय कहा जाएगा। भले ही हुर्रियत एवं अब्दुल्ला परिवार को ये रास नहीं आए परन्तु कश्मीर की जनता से सीधा संवाद करना ही ज्यादा बेहतर होगा जो अलगावादियों के दबाव में आकर सुरक्षा बलों के विरोध में खड़ी होने मजबूर थी। चूंकि वर्तमान में आतंकवादियों को पैसे की आपूर्ति पूरी तरह ठप्प कर दी गई है तथा उनके समूचे तंत्र पर एनआईए ने फंदा कस दिया है इसलिये आम कश्मीरी भय एवं लालच छोड़कर शांति कायम करने में ठीक वैसे ही सहायक बन सकता है जैसा कि नब्बे के दशक में पंजाब में देखने मिला था। केन्द्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा जैसे अनुभव संपन्न खुफिया तंत्र के पूर्व शीर्षस्थ अधिकारी को वार्ताकार बनाकर जो दाँव चला है उससे समस्या का समाधान निकल ही आयेगा ये उम्मीद करना तो जल्दबाजी होगी किन्तु  इस संबंध में ये उक्ति स्मरण रखना चाहिये कि बहादुरी का बेहतर तरीका बुद्धिमानी भी होता है। जिनसे गोली से निपटा जाना चाहिए उनसे बेशक वैसे ही पेश आना जरूरी है परन्तु फटकार के साथ पुचकार का भी अपना महत्व है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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