Thursday 26 October 2017

व्यर्थ में जगहंसाई करवा बैठे शिवराज

तमाम विवादों एवं आरोपों के बावजूद भी ये माना जाता है कि म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शालीता एवं सौजन्यता के मामले में काफी बेहतर हैं। निजी और सार्वजनिक दोनों ही तौर पर उनकी बातों में विनम्रता एवं सरलता देखी जाती है। अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते समय कभी-कभार अतिशयोक्ति का सहारा भले ही वे ले लेते हों परन्तु फिर भी उन्हें बड़बोला नहीं कहा सकता। लेकिन गत दिवस अपनी अमेरिका यात्रा में वॉशिंगटन की सड़कों से म.प्र. की सड़कों को बेहतर बताकर श्री चौहान ने अपनी जैसी किरकिरी करवाई वह अभूतपूर्व है। सोशल मीडिया के साथ ही टीवी चैनलों ने भी मुख्यमंत्री की टिप्पणी का जमकर मजाक बनाया। प्रदेश की टूटी-फूटी और अत्यंत जर्जर सड़कों के चित्र देखते ही देखते पूरी दुनिया में छा गये। जिन लोगों के सामने उन्होंने म.प्र. की सड़कों को वॉशिंगटन से बेहतर बताने की डींग हाँकी उन्होंने भी थोड़ी देर में ही म.प्र. की उन सड़कों का दर्शन कर लिया होगा जो बदहाली के मामले में विश्वस्तरीय कही जा सकती हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह की सरकार के विरुद्ध बिसपा नामक जो मुद्दा उठाया गया था उसका अर्थ बिजली, सड़क, पानी था। इन तीनों को आधार बनाकर भाजपा ने दिग्विजय को अलीबाबा नामक उपाधि देकर कठघरे में खड़ा कर दिया। बीते 14 वर्षों में म.प्र. में बिजली और सड़कों की दशा में काफी सुधार हुआ, ये स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं है। पानी की स्थिति में मौसम एवं भौगोलिक परिस्थितियों का योगदान भी रहता है अत: वह अपेक्षाकृत उतनी नहीं सुधरी किन्तु। ग्रामीण इलाकों में बिजली की उपलब्धता इतनी अच्छी पहले कभी नहीं थी। बात तो यहां तक होने लगी है कि म.प्र. विद्युत के मामले में आवश्यकता से ज्यादा (सरप्लस) उत्पादन करने वाला राज्य बन गया है। जहां तक बात सड़कों की है तो हालात पहले से काफी बेहतर हुए हैं। प्रदेश स्तर के कई राजमार्ग पूरी तरह विकसित किये जा चुके हैं वहीं ग्रामीण एवं कस्बाई सड़कों का भी उन्नयन होने से आवागामन सुलभ हो गया है। प्रदेश से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों में कुछ तो बहुत अच्छे बन गये हैं जिनकी वजह से उन पर चलने वालों को भारी-भरकम टोल टैक्स के बाद भी सुखद एहसास होने लगा है किन्तु अभी भी अधिकतर राजमार्ग या तो खस्ता हालत में हैं या फिर निर्माणाधीन होने से मुसीबत का सबब बने हुए हैं। जबलपुर से भोपाल जाने वाले राजमार्ग पर काम शुरू होने का मुहूर्त ही नहीं बन पा रहा। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात है प्रदेश के सभी बड़े शहरों में सड़कों की बुरी हालत। वॉशिंगटन से म.प्र. की सड़कों को बेहतर बताने वाले शिवराज सिंह अपनी नाक के नीचे राजधानी भोपाल एवं अपने गृह नगर विदिशा की सड़कों की ही यदि याद कर लेते तो ऐसा बयान विदेश में न देते जिसने उनकी जगहंसाई करवा दी। मुख्यमंत्री चूंकि लालू ब्राण्ड नेता नहीं माने जाते इसलिये उनके प्रशंसक वर्ग ने भी उक्त बयान को लेकर शर्मिन्दगी का अनुभव किया। शिवराज जी म.प्र. को बीमारू राज्य से बाहर लाने का ढोल पीटते तब शायद बात जम जाती। वे कृषि आधारित उद्योगों के विस्तार की संभावनाएं बढ़ा चढ़ाकर पेश करते वहां तक भी उचित था। गाँवों में बिजली के फीडर सेपरेशन की जानकारी देकर भी अपनी पीठ ठोंक सकते थे किन्तु उन्होंने बात कही भी तो ऐसी  जिसे उनके हनुमान कहे जाने वाले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान उर्फ नंदू भैया को छोड़कर अन्य कोई भाजपाई भी ईमानदारी से स्वीकार शायद ही करे। इससे भी बड़ी बात ये है कि मुख्यमंत्री विदेश यात्रा पर जाते ही क्यों हैं? यदि ये निजी यात्रा हैं तब तो किसी को पूछने का अधिकार नहीं है परन्तु यदि ये सरकारी खर्च पर आयोजित होती हों तब इनसे क्या हासिल होता है ये भी सार्वजनिक किया जाना चाहिये। जहां तक निवेशकों को न्यौता देने की बात है तो पूर्व में हुए निवेशक सम्मेलनों में आये भारतीय उद्योगपतियों ने जो वायदे किए थे उनमें से कितने पूरे हुए ये पूछे जाने पर ही प्रदेश सरकार के पसीने छूट जायेंगे। बेहतर हो विधानसभा चुनाव के एक वर्ष पूर्व सार्वजनिक तौर पर कुछ बोलने से पहले मुख्यमंत्री अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और ऐसे ही निर्देश अपने मंत्रियों को दें वरना जो दशा दिग्विजय सिंह की हो गई थी ठीक वैसी ही भाजपाइयों की हो जाए तो अचरज नहीं होगा। सूचना क्रांन्ति के इस युग में जंगल में मोर का नाचना भी दुनिया से छिपा नहीं रहता।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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