आनन-फानन में दूरगामी सोच के अभाव में लिये गये निर्णयों से नुकसान उठाने के बाद भी यदि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी संभल नहीं रहे तो इसे उनकी अपरिपक्वता ही कहा जाएगा। बिहार में लालू और उ.प्र. में अखिलेश के साथ गलबहियां डालने की वजह से देश के सबसे बड़े दो प्रदेशों में राजनीतिक दृष्टि से हॉशिये पर आने के बाद भी कांग्रेस का गुजरात में हार्दिक पटैल और अल्पेश ठाकोर की चकरघिन्नी में फंसना उसकी संभावनाओं को खतरे में डाल सकता है। अल्पेश भले कांग्रेस में आ गये हों किन्तु हार्दिक काफी चालाक हैं जो अपनी शर्तों को मनवाने के मामले में काफी कठोर हैं। राहुल गांधी की परेशानी ये है कि वे पाटीदार समाज की मांगों को समर्थन देते हैं तो अल्पेश के साथ जुड़ी ओबीसी लॉबी तथा जिग्नेश मेवानी के दलित समर्थन भड़क उठेंगे और यदि वे हार्दिक को वादों का झूला झुलाते रहे तब महत्वाकांक्षाओं के ऊंचे आसमान पर उड़ रहा ये युवा भी हाथ से रेत की तरह खिसक सकता है। बेहतर होता कांग्रेस गुजरात में भाजपा की सरकार के विरुद्ध बने माहौल के बीच अपना रास्ता निकालती। नोटबंदी और जीएसटी से नाराज व्यापारी समुदाय की भावनाओं को भुनाने पर ध्यान देने से भी उसे लाभ होता परन्तु जल्दबाजी में राहुल उ.प्र. सरीखी भूल दोहराने जा रहे हंै। यदि उन्होंने हार्दिक-अल्पेश और जिग्नेशके दबाव में उनकी मर्जी की सीटे उन्हें बांट दी तब कांग्रेस का अपना कैडर निराश होकर बैठ जाएगा। बेहतर होगा यदि राहुल इन तीन युवा नेताओं को जरूरत से ज्यादा अहमियत नहीं दे वरना न खुदा ही मिला न विसाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे वाली हालत बने बिना नहीं रहेगी।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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