Wednesday 25 October 2017

सही समय पर सही निर्णय


केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने नया जूता भी कुछ दिन काटता है जैसा बयान देकर ये स्वीकार कर लिया कि जीएसटी नामक नई कर प्रणाली से लोगों को अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है। राहुल गांधी द्वारा जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा जाना तो उनकी अपरिपक्वता का परिचायक था क्योंकि उसे पारित करवाने में भी कांग्रेस का खुला समर्थन रहा। बावजूद इसके ये मान लेना हकीकत से रूबरू होना ही है कि पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी ने व्यापार जगत के सामने तमाम ऐसी परेशानियां उत्पन्न कर दीं जिनसे निपटने में उसे अनेकानेक व्यवहारिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। भले ही सरकार की नजर में उक्त दोनों कदमों से अर्थव्यवस्था पाक-साफ हुई है तथा व्यापार में काले धन का प्रवाह एवं उपयोग भी काफी हद तक रूका है परन्तु व्यवसाय एवं औद्योगिक उत्पादन में कमी आने से विकास दर में गिरावट एवं बेरोजगारी बढऩे जैसी समस्याएं भी पैदा हो गईं। यद्यपि चौतरफा विरोध के कारण सरकार अभी तक जीएसटी को लेकर काफी उदार बनी हुई है। रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा बढ़ाने तथा विलंब शुल्क की वापसी जैसे कदम इसका उदाहरण हैं किन्तु बाजार एवं रोजगार दोनों के क्षेत्र में मंदी चिंता का बड़ा कारण बनी हुई थी। यद्यपि जुलाई से लेकर सितंबर माह तक जीएसटी के तौर पर जो कर संग्रहण हुआ वह उम्मीद से ज्यादा न सही किन्तु उसके अनुसार रहने से केन्द्र सरकार का हौसला मजबूत हो सका जिसका प्रमाण पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के रूप में देखने मिला। इसी क्रम में गत दिवस आर्थिक क्षेत्र में दो बड़े कदम केन्द्र सरकार द्वारा उठाये गये जिनसे उसकी चिंता और आत्मविश्वास दोनों का प्रगटीकरण हुआ। लगभग 7 लाख करोड़ की सड़क परियोजनाओं के साथ ही सरकारी बैंकों को 2 लाख 11 हजार करोड़ की पूंजी देने जैसे फैसलों से अर्थव्यवस्था में ठहराव दूर करने का प्रयास निश्चित रूप से समयोचित कदम है। आगामी पांच वर्षों में तकरीबन 84 हजार कि.मी. सड़कें बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पूरा करने हेतु काफी बड़ी राशि मंजूर करने के कई फायदे हैं। इनमें मौजूदा एवं नये राजमार्ग विकसित करने के साथ-साथ सीमा एवं तटवर्ती इलाकों में उच्चस्तरीय सड़कें बनाने की योजना भी शामिल है। सड़क परिवहन को सुविधाजनक बनाकर आवागमन को सुलभ बनाना विकास की मूलभूत आवश्यकता रही है। परिवहन मंत्री नितिन गड़करी इस काम को बेहद कुशलता के साथ अंजाम दे रहे हैं। वाजपेयी सरकार द्वारा देश भर में सड़कों का जाल बिछा देने का जो काम शुरू किया गया था उसमें मोदी सरकार के आने के बाद फिर तेजी आई है। 22 किमी से बढ़ाकर 46 किमी प्रतिदिन सड़कें बनाने का निर्णय निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में सक्रियता लाने की दिशा में बड़ा कदम होगा क्योंकि इससे निर्माण सामग्री की मांग बढऩे के साथ ही लाखों लोगों को काम भी उपलब्ध हो सकेगा। देश के प्रत्येक हिस्से तक सभी मौसमों में सुलभ एवं सुरक्षित आवागमन की सुविधा विकास के पहियों की गति को तेज करेगी ये मानने में कुछ भी गलत नहीं है। इन्फ्रास्ट्रक्चर नामक जो तत्व विगत कुछ दशकों में अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा बना उसे यदि सर्वोच्च प्राथमिकता दी जावे तो मंदी एवं बेरोजगारी की मौजूदा स्थिति से उबरा जा सकता है। केन्द्र सरकार ने इसी के साथ राष्ट्रीयकृत बैंकों को 2 लाख करोड़ से ज्यादा की पूंजी देने के फैसले के जरिये बाजार में छाई सुस्ती दूर करने का जो प्रयास किया वह देखने में छोटा जरूर दिखता हो परन्तु एनपीए के बोझ से कराह रहे बैंकों को छोटे और मझोले कारोबारियों को ऋण देने के लिये प्रेरित करने की दिशा में ये पंूजी काफी सहायक हो सकेगी। नोटबंदी को एक वर्ष और जीएसटी को चार माह पूरे होने जा रहे हैं। ये अवधि एक तरह से अर्थव्यवस्था की ओव्हर हॉलिंग के समान रही। नोटबंदी का निर्णय जहां छापामार शैली में किया गया वहीं जीएसटी का ढोल बजाकर परन्तु बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं करने की मानसिकता के कारण समाज के सभी वर्गों में इन फैसलों ने उथल-पुथल मचा दी। अब जबकि गर्द-गुबार बैठने की स्थिति बन गई है तब स्थितियों के अनुरूप निर्णय लेने की तत्परता दिखाकर केन्द्र सरकार ने जरूरतों और जनापेक्षाओं दोनों का ध्यान रखा। इन फैसलों से अर्थव्यवस्था में व्याप्त ठहराव तथा बेरोजगारी दूर करने में कितनी सफलता मिलेगी ये तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो सकेगा परन्तु मुफ्त में खैरात बांटकर कार्य संस्कृति को तबाह कर देने की मानसिकता त्यागकर सार्वजनिक धन से विकास कार्यों के जरिये लोगों को काम देना कहीं अच्छी  नीति है। वर्तमान परिस्थितियों में भले ही सरकार को मजबूरीवश ये सब करना पड़ा हो परन्तु इन फैसलों के दूरगामी परिणाम सुखद होंगे ये उम्मीद करना गलत नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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