Wednesday 11 October 2017

पुलिस के लिये विचारणीय मुद्दा

दो दिनों से सोशल मीडिया पर एक पुलिस इंस्पेक्टर की तस्वीर काफी चर्चित हो रही है जिसमें वह एक मोटर सायकिल चालक के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा है। किसी वीआईपी के सामने तो किसी पुलिस वाले की ऐसी मुद्रा आमतौर पर दिखाई दे जाती है किन्तु जिस दोपहिया वाहन चालक के समक्ष उक्त इंस्पेक्टर विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनकर करबद्ध खड़ा रहा वह एक साधारण व्यक्ति है। आन्ध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले की जो तस्वीर देश भर में चर्चित हुई उसमें मोटर सायकिल सवार व्यक्ति दो बच्चों और दो महिलाओं को वाहन पर बिठाये मंदिर दर्शन हेतु जा रहा था। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें रोका। वह हेलमेट न लगाने और ओव्हर लोडिंग के जुर्म में चालक का चालान भी काट सकता था। या फिर प्रचलित परंपरानुसार घूस रूपी सौजन्य भेंट लेकर उसे जाने दे सकता था किन्तु उसने चालक को समझाया, बच्चों को पेट्रोल की टंकी पर बिठाने जैसे खतरे के बारे में आगाह करते हुए संभावित दुर्घटना की आशंका जताकर ऑटो रिक्शा में अतिरिक्त सवारियों को उनके गंतव्य की तरफ रवाना कर दिया। बात इतनी बड़ी नहीं लगती जिस पर देश-विदेश में घट रही तमाम बड़ी-बड़ी घटनाओं और खबरों की उपेक्षा कर संपादकीय लिखा जावे परन्तु कई मर्तबा छोटी-छोटी बातें ही बड़े बदलाव का माध्यम बन जाती हैं। आन्ध्र प्रदेश पुलिस के उक्त इंस्पेक्टर ने जो किया उससे पूरे देश में पुलिस की छवि सुधर जावेगी ये आशावाद पाल लेना पूरी तरह जल्दबाजी होगी किन्तु नकारात्मकता के इस दौर में ऐसे दृष्टांतों का अधिकतम प्रचार कर समाज में सकारात्मक प्रवृत्ति का सम्मान और प्रसार तो किया ही जा सकता है। पुलिस-जनता संबंध पर समय-समय पर विचार गोष्ठियां होती रहती हैं। सरकारी बजट को खर्च करने के लिये परंपरागत कर्मकांड भी सभी की जानकारी में हैं किन्तु एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा एक आम नागरिक को बजाय डराने-धमकाने के यदि सौम्यता से समझाने-बुझाने का उदाहरण पेश किया गया तो निश्चित रूप से उसकी प्रशंसा होनी चाहिए। कहने वाले कह सकते हैं कि खाकी वर्दीधारी उक्त इंस्पेक्टर ने सब कुछ प्रायोजित तरीके से किया जिससे उसकी सर्वत्र वाहवाही हो। संदर्भित चित्र भी सोशल मीडिया पर एक आईपीएस अधिकारी द्वारा ही प्रसारित की गया था। बावजूद इसके इस तरह की खबरें उम्मीद की किरण के सामान ही हैं। डा.राहत इंदौरी ने एक शेर में कहा है, कितनी लाशें आ जाती हैं, मेरे घर में अखबारों के साथ। आशय ये है कि चोरी-डकैती, बलात्कार, भ्रष्टाचार से सराबोर समाचार माध्यमों को अब  अपनी बिक्री और टीआरपी की चिंता के साथ-साथ समाज में रचनात्मक एवं सद्भावना से भरे समाचारों पर भी ध्यान देना चाहिये। जरूरी नहीं कि रामलीला में राम का पात्र निभाने वाला निजी जीवन में पूरी तरह मर्यादा पुरुषोत्तम हो किन्तु जिस तरह रामलीला और दशहरे पर रावण दहन साल-दर-साल बुराई पर अच्छाई की विजय का भाव हमारे मन में जगाते हैं उसी तरह वक्त आ गया है जब खबरों के बाजार में कुछ अच्छा परोसने की होड़ भी लगे। उक्त पुलिस इंस्पेक्टर ने जो किया उसके लिये न तो उसे किसी पुरस्कार से नवाजा जावेगा न ही पदोन्नति मिलेगी। व्यवहारिक तौर पर तो उसने कानून तोडऩे वाले शख्स को दंडित करने की बजाय उसके प्रति प्यार-मोहब्बत का इजहार कर अपने दायित्व का समुचित पालन नहीं किया लेकिन उसके आचरण ने देश भर के पुलिस वालों को एक विचारणीय मुद्दा दे दिया है। यदि उसकी देखासीखी कुछ और पुलिस वाले अवैध कमाई करने या डंडे के जोर पर रौब झाडऩे की प्रवृत्ति त्यागकर जनता के साथ मित्रवत् पेश आने लगें तो इससे पुलिस की छवि तो सुधरेगी ही कानून का पालन करने के प्रति दायित्व बोध भी बढ़ेगा।

- रवींद्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment