Monday 9 October 2017

पियूष : मंत्री हैं या शाह परिवार के प्रवक्ता

बिना सबूत आरोप लगाने पर मानहानि का प्रकरण दर्ज कराने का प्रावधान कानून में है। किसी व्यक्ति के बारे में कही गई बात का जवाब या स्पष्टीकरण वह स्वयं दे या उसका अधिकृत प्रतिनिधि ये भी स्वाभाविक होता है। इस लिहाज से अगर पीयूष गोयल बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट अपने पक्षकार के तौर पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र जय शाह का बचाव करते तो किसी को एतराज करने का अधिकार नहीं था किन्तु पियूष भूल गए कि वे देश के रेल मंत्री हैं और इस हैसियत से उन्हें या तो अपने मंत्रालय अथवा सरकार पर लगे आरोप की सफाई देने के लिये ही आगे आना चाहिए। एक वेबसाइट 'द वायरÓ द्वारा अमित शाह के बेटे जय के कारोबार में एक वर्ष के भीतर 16 हजार गुना वृद्धि का खुलासा करने के बाद राजनीतिक जगत में हलचल मच गई। बिना देर किये कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि विपक्षी नेताओं और उनके परिजनों के विरुद्ध ऐसे ही आरोपों का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग तथा सीबीआई द्वारा तेजी से संज्ञान लेते हुए जिस तरह ताबड़तोड़ कार्रवाई की जाती है वही फुर्ती अमित शाह के बेटे के आर्थिक साम्राज्य में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के मद्देनजर क्यों नहीं दिखाई जा रही? दरअसल कांग्रेस जय शाह के बहाने पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति के विरुद्ध दर्ज आर्थिक अनियमितताओं के मामलों में जांच एजेंसियों द्वारा की जा रही सख्ती को लेकर प्रधानमंत्री सहित भाजपा को घेरने का दाँव चल रही थी। आम आदमी पार्टी ने भी बहती गंगा में हाथ धोने में देर नहीं लगाई। मामला चूंकि सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के पुत्र से जुड़ा था अत: देखते-देखते ही वह खबरों की मंडी में ऊँचे भाव पर चला गया। यद्यपि जय शाह की तरफ से बचाव की बजाय प्रत्याक्रमण की बात भी जल्द ही सामने आ गई थी किन्तु रेल मंत्री पियूष गोयल पार्टी अध्यक्ष के बेटे पर लगे व्यक्तिगत आरोपों पर सफाई देने क्यों सामने आये ये बड़ा प्रश्न है। जैसा शुरू में कहा गया यदि श्री गोयल बतौर चार्टड अकाउंटेट जय को पाक-साफ साबित करने के लिये मोर्चा संभालते तब वह पूरी तरह व्यवहारिक माना जाता किन्तु केबिनेट मंत्री किसी ऐसे व्यक्ति पर लगे निजी आरोपों के जवाब में मुंह खोले जिसका सरकार से कोई सीधा या परोक्ष रिश्ता न हो तो दाल में काला होने जैसी शंका का बढऩा स्वाभाविक हो जाता है । हॉलांकि शाम होते-होते जय शाह ने आरोप लगाने वाली वेबसाइट और उससे जुड़े संबंधित लोगों पर 100 करोड़ मानहानि दावा ठोंकने की बात कहते हुए तमाम आरोपों को झूठ का पुलिंदा निरूपित करते हुए अपनी व्यवसायिक गतिविधियों को पूरी तरह पारदर्शी एवं कानून सम्मत बताया। जिस तत्परता से जय ने वेबसाइट के खिलाफ कार्रवाई का ऐलान किया उससे ऐसा तो लगा कि वे अपने ऊपर लगे आरोपों से विचलित नहीं हुए हैं। उल्लेखनीय है गुजरात विधानसभा चुनाव के सिर पर होने की वजह से विपक्षी पार्टियां नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को व्यक्तिगत तौर पर घेरने का कोई अवसर नहीं गंवाना चाहेंगी। यूं भी समाचार माध्यमों का एक बड़ा तबका भाजपा और श्री मोदी के विरुद्ध हाथ धोकर पड़ा हुआ है जिसके पीछे व्यवसायिक और निजी के अलावा वैचारिक कारण भी हैं। अमित शाह की संपत्ति में भी अचानक हुई वृद्धि को लेकर बीते दिनों हल्ला मचा था परन्तु जय शाह के विरुद्ध वेबसाइट ने जो खुलासा किया उसका समय काफी महत्वपूर्ण है। उनका मानहानि का दावा अदालत में जायेगा जिसके निराकरण में लंबा समय लगना स्वाभाविक है परन्तु बेहतर यही होता कि जय स्वयं होकर पूरे आक्रमण का प्रत्युत्तर देने का साहस दिखाते। हॉलांकि 100 करोड़ का अवमानना मुकदमा ठोंकने की घोषणा के जरिये उन्होंने ये साबित करने का प्रयास जरूर किया कि वे इस आकस्मिक मुसीबत में तनिक भी घबराए नहीं हैं किन्तु पियूष गोयल को ढाल बनाकर खड़ा करना न सिर्फ अनावश्यक अपितु अनुचित भी था। पता नहीं श्री गोयल को ऐसा करने कहा गया था या फिर उन्होंने अमित शाह को खुश करने की गरज से स्वयं होकर ये पहल की परन्तु इससे जय शाह पर लगे व्यक्तिगत आरोपों से भाजपा ने अपने को चाहे-अनचाहे जोड़ लिया। यद्यपि श्री गोयल ने जिस प्रकार से वेबसाइट द्वारा किये गये खुलासे को लेकर सिलसिलेवार स्पष्टीकरण दिया उससे जय का पक्ष मजबूत हुआ है किन्तु भाजपा को इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिये कि क्या अन्य नेताओं और उनके परिजनों पर लगे निजी आरोपों की सफाई भी कोई मंत्री स्तर का व्यक्ति देगा या ये सुविधा केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष के साहेब जादे के लिये ही है?

-रवींद्र वाजपेयी

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