Thursday 16 January 2020

ई कॉमर्स : व्यापारी के साथ ग्राहक की चिंता भी जरूरी



समय के साथ बहुत कुछ बदलता है और व्यापार भी अपवाद नहीं है। तकनीक के विकास ने जो बदलाव किये उनके प्रभावस्वरूप ग्राहक के बाजार जाने की बजाय बाजार ग्राहक तक पहुँचने लगा। ऑनलाइन व्यापार या ई कॉमर्स के नाम से जानी जाने वाली इस प्रणाली ने परम्परागत व्यापार की समूची संस्कृति बदल डाली। इसमें ऐसे अनेक फायदे हैं जिनकी वजह से ग्राहक इसके साथ जुड़ता चला जाता है। अव्वल तो उसे बाजार जाने की झंझट से मुक्ति मिल जाती है और फिरर दाम भी कम देने पड़ते हैं। चीज पसंद नहीं आने पर लौटाने की सुविधा भी है। समय - समय पर निकलने वाले विशेष ऑफर्स के जरिये ग्राहकों को अकल्पनीय रियायतें भी दी जाती हैं। ऑनलाइन कम्पनियां ग्राहकों को संचार माध्यमों से नए उत्पादों के बारे में जानकारी भी उपलब्ध करवा देती हैं। ग्राहक के पास बिना बाजार में भटके ही किसी चीज के प्रतिस्पर्धात्मक दामों की तुलना करते हुए अपनी पसंद चुनने का अवसर भी रहता है। उपभोक्तावाद के विस्तार के साथ ही ऑनलाइन कंपनियों का कारोबार बढ़ता चला गया। पहले इसकी मौजूदगी केवल विकसित देशों में ही थी लेकिन इंटरनेट ने देशों की दूरियां मिटा दीं। नतीजतन आज पूरे विश्व में ई कॉमर्स फैल गया। लेकिन इससे व्यापार के परम्परागत ढांचे को जबर्दस्त नुकसान भी हो रहा है। भारत जैसे देश में जहां करोड़ों छोटे - छोटे व्यापारी अर्थव्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा हैं , ऑनलाइन व्यापार ने उनके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है। उदारीकरण के आगमन के बाद जब छोटे व्यापार में भी बड़े औद्योगिक घरानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई तब इसका विरोध हुआ लेकिन बाजारवादी ताकतें सरकार पर हावी होती गईं और खुदरा व्यापार में भी बड़ी देशी कम्पनियां कूद पड़ीं। बात यहीं तक सीमित रहती तब भी ठीक था लेकिन उनके पीछे या यूँ कहें कि उनका साथ लेकर दुनिया की अनेक बड़ी ऑनलाइन कम्पनियां ही नहीं बल्कि रिटेल स्टोर्स की श्रंखला भी भारत में घुस बैठी। पहले इनकी मौजूदगी केवल महानगरों में थी लेकिन धीरे - धीरे मझोले शहरों में भी ये जम गए। बड़ी कम्पनियों के शो रूम के बाद मॉल संस्कृति आई। उसने भी छोटे और मध्यम व्यापारी की कमर तोड़ी। लेकिन सबसे बड़ा धक्का लगा ऑनलाइन व्यापार से। इन दिनों दुनिया की सबसे बड़ी ई कॉमर्स कम्पनी अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस भारत आये हुए हैं। गत दिवस उन्होंने भारत में अपने कारोबार के विस्तार के सम्बन्ध में रिटेल व्यापार से जुड़े औद्योगिक घरानों के प्रतिनिधियों को संबोधित किया। वे एक उत्प्रेरक की तरह बोले। उनके विरोध में देश भर में व्यापारियों ने प्रदर्शन किये। श्री बेजोस ने अपने संबोधन में अरबों रूपये की निवेश की घोषणा भी कर डाली। भारत के अनेक औद्योगिक घराने उनके साथ व्यावसायिक भागीदारी करने के इच्छुक भी दिखाई दे रहे हैं। अमेजन के मालिक ने भारत में हो रहे विरोध को देखते हुए आने वाले कुछ वर्षों के भीतर मेक इन इण्डिया के अंतर्गत बनने वाले सामान के निर्यात का भी आश्वासन दिया जिसका मूल्य 71 हजार करोड़ होगा। यही नहीं उन्होंने भारत में छोटे और मध्यम कारोबारियों को डिजिटलाइज करने पर भी मोटी रकम खर्च करने की बात कही। लेकिन बात केवल अमेजन तक सीमित रखने से ही ऑनलाइन कारोबार को लेकर हो रही बहस और विरोध की चर्चा पूरी नहीं हो सकेगी। भारत में भी रिलायंस, टाटा, बिरला, बियाणी और अन्य जाने - अनजाने कारोबारियों ने भी रिटेल व्यापार में कदम बढ़ाकर छोटे और मझोले स्तर के व्यापारी को बर्बाद करने का इंतजाम कर दिया है। बीते दशहरा-दीपावली सीजन में जब व्यापार जगत आर्थिक मंदी का रोना रोते हुए ग्राहकों की कमी से परेशान था तब ऑनलाइन कंपनियों की बिक्री लगभग 50 हजार करोड़ के आसपास बताई गयी। एक महंगे मोबाइल फोन की ऑनलाइन बिक्री के महज 36 घंटे के भीतर ही 750 करोड़ के आंकड़े को छू जाना ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि एक अदृश्य बाजार तेजी से सक्रिय रहते हुए अपना दायरा बढ़ाने में जुटा हुआ है। इसके लिए केवल सरकारी नीतियों और बाजारवादी ताकतों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि भारत के त्रिस्तरीय व्यापारिक ढांचे में मुनाफे के बंटवारे की जो प्रणाली प्रचलित है उसमें ग्राहकों की बजाय व्यापार करने वाले के फायदे पर ही ध्यान दिया जाता रहा। ऑनलाइन और रिटेल स्टोर्स ने ग्राहकों के लाभ पर ध्यान केन्द्रित कर बीच की अनेक कडिय़ों को अलग करते हुए उत्पादक और ग्राहक के बीच सीधा सम्बन्ध कायम किया जिसकी वजह से मुनाफे में हिस्सेदार घटे और उपभोक्ता को उम्मीद से ज्यादा फायदा होने लगा। ऑनलाइन कम्पनियों ने अब नई योजना भी बनाई है जिसके तहत वे दुकानदारों के नेटवर्क का उपयोग करते हुए अपना माल ग्राहकों तक पहुँचाने का तरीका लागू करेंगी। रिलायंस जियो और उस जैसी दूसरी कम्पनियां भी इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं। अमेजन के मालिक ने भारत के छोटे और मध्यम कारोबार को डिजिटलाइज करने पर करोड़ों खर्च करने की जो बात की है उसके पीछे भी यही सोच है। लेकिन इस सबके बीच सोचने वाली बात ये है कि भारत में आज भी करोड़ों ऐसे छोटे व्यापारी हैं जो तकनीक और व्यापार के आधुनिक तौर तरीकों से अनजान हैं। सुदूर गाँव में बैठे खुदरा व्यापारी को रातों-रात आधुनिकता के सांचे में ढाल देना आसान नहीं होगा। और फिर हर छोटे-मध्यम कारोबारी के साथ कुछ कर्मचारी या उसके परिजन भी जुड़े होते हैं। यदि पूरा का पूरा व्यापार रिटेल स्टोर्स और ऑनलाइन में सिमटकर रह गया तब बेरोजगारी के आंकड़े कहाँ जाकर रुकेंगे ये सोचकर भी डर लगता है। लेकिन इसके लिए परम्परागत शैली के उत्पादकों और व्यापारियों को भी बदले हुए हालातों में ग्राहकों के हितों के प्रति अधिक संवेदनशील होना पड़ेगा। यदि ग्राहक को घर बैठे कोई चीज मिले और वह भी कम दाम पर तो वह व्यापारी के पास क्यों जाएगा? हाल ही के वर्षों में होटलों की बुकिंग और रेस्टारेंट से भोजन घर पहुँचाने का कारोबार जिस तेजी से बढ़ा उसके पीछे भी ग्राहक को मिल रही सुविधा और किफायत की बड़ी भूमिका है। ये बात सही है कि छोटे व्यापारी के लिए इस तरह की प्रतिस्पर्धा करना असम्भव है। इसलिए अब सरकार की भूमिका पर सबकी नजर जाती है। ये कहने में कोई गलती नहीं होगी कि बीते तीन दशक से केंद्र और राज्यों की सरकारों के दिमाग पर जिन आर्थिक सुधारों का भूत सवार है उसमें भारत की जमीनी हकीकत को पूरी तरह से उपेक्षित किया जाता रहा। यदि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में बड़े औद्योगिक घरानों की घुसपैठ को समय रहते रोकते हुए ग्राहकों के लाभ की समुचित व्यवस्था की गयी होती तब अमेजन के मालिक भारत में आकर दरियादिली नहीं दिखा पाते। खैर , अभी भी देर नहीं हुई है। सरकार को चाहिए कि वह व्यापार के चंद हाथों में सीमित हो जाने के सिलसिले को रोकने के लिए कदम उठाये वरना विदेशी कम्पनियों के बढ़ते कदम पहले छोटे और मध्यम व्यापरियों को रौदेंगे और उसके बाद बड़े धनकुबेरों को। इसके पहले कि स्थिति बेकाबू होते हुए अराजकता को जन्म दे, संभल जाना चाहिए क्योंकि नया उपनिवेशवाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कंधों पर बैठकर आ रहा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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