गणतंत्र दिवस पर पद्म सम्मानों की जो घोषणा की गई उसमें कुछ नामों को लेकर आलोचना के स्वर फिर सुनाई देने लगे हैं। ये पहला अवसर नहीं है जब पद्म अलंकरण के लिए चयनित कतिपय व्यक्तियों की पात्रता को लेकर सवाल उठे हों। यद्यपि मोदी सरकार ने चयन प्रक्रिया को बेहद पारदर्शी और युक्तियुक्त बनाया जिसके कारण बीते पांच वर्ष में अनेक ऐसी अनजानी शख्सियतें भी पद्म सम्मान से अलंकृत की जा सकीं जिन्होंने साधारण होते हुए भी असाधारण कार्य किये। समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से रचनात्मक कार्य करने वाले तमाम ऐसे लोग इस दौरान सामने आए जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व से देश पूरी तरह बेखबर था। पद्म सम्मानों के लिए चयन करने की पुरानी प्रक्रिया में किये बदलाव से उसमें निष्पक्षता भी आई और वह काफी हद तक सरकारी दबाव से मुक्त भी नजर आने लगी। उसके बावजूद भी हालांकि कुछ नामों को लेकर नुक्ताचीनी होती रही किन्तु कुल मिलाकर काफी हद तक पद्म सम्मानों के वितरण से लोग संतुष्ट नजर आए। लेकिन इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब पद्म सम्मानों के लिए चुने गए लोगों की सूची आई तब एक बार फिर कुछ नामों पर प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं आईं। विशेष तौर पर फिल्म जगत से जुड़े कुछ नामों को लेकर सोशल मीडिया पर जनभावनाएं आलोचना और कटाक्षों से भरी हुईं दिखीं। ये भी कहा जाने लगा कि पिछली सरकारों की तरह से ही इस बार भी कुछ लोगों को तुष्टीकरण के लिए पद्म अलंकरण प्रदान किया गया । इनमें पाकिस्तान से आकर भारत की नागरिकता लेने वाले गायक अदनान सामी प्रमुख हैं । अदनान की प्रतिभा को कोई भी नहीं नकार सकता । लेकिन चंद बरस पहले भारत की नागरिकता लेने वाले इस कलाकार का भारतीय परिप्रेक्ष्य में ऐसा कोई योगदान नहीं रहा जिसकी वजह से उसे पद्मश्री दी जाती। यही वजह है कि उनके नाम का ऐलान होते ही आम राय ये सामने आई कि नागरिकता संशोधन कानून में मुस्लिमों को अलग किये जाने के कारण मचे बवाल को ठंडा करने के लिए केंद्र सरकार ने उनका चयन किया । अन्यथा फिल्मी दुनिया में न जाने कितने प्रतिभाशाली संगीतकार हैं जो पद्म सम्मान की कसौटी पर खरे साबित होते हैं । इसके अलावा कुछ और जो नाम हिन्दी फिल्म जगत के चुने गए उनको लेकर भी आलोचना हो रही है । यद्यपि चयनकर्ताओं के पास अपने तर्क और आधार हो सकते हैं किंतु पद्म सम्मान के साथ जुड़ी गरिमा के मद्देनजर वे उसके कतई लायक नहीं कहे जा सकते । कुछ वर्ष पूर्व एक वीडियो यू ट्यूब पर खूब चर्चित हुआ था जिसमें अनेक फिल्मी कलाकारों के बीच हो रही बेहद अश्लील और निम्नस्तरीय बातें सामने आईं । बाद में उन पर उसके लिए मुकदमा भी दर्ज किया गया था । उनमें से दो नाम इस वर्ष पद्मश्री पाने वालों में आने से इन सम्मानों की सार्थकता और उपयोगिता पर नए सिरे से प्रश्न उठ खड़े हुए हैं । पद्म सम्मान नागरिक सम्मान कहे जाते हैं । इनका उद्देश्य समाज में सेवा भाव और रचनात्मकता को विकसित करना है । देश और समाज के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपना नि:स्वार्थ और विशिष्ट योगदान देने वालों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के उद्देश्य से पद्म अलंकरणों की शुरुवात की गई थी। लेकिन शुरुवात से ही इनकी चयन पद्धति में पारदर्शिता का अभाव रहा । यहां तक कि देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न भी उस समय विवाद में फंसा जब कुछ प्रधानमंत्रियों ने खुद ही अपना चयन उस हेतु कर लिया । कालांतर में एमजी . रामचंद्रन जैसे को भारत रत्न दिया गया तब भी ये कहा गया कि उसके पीछे उनके द्वारा स्थापित तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक पार्टी का केंद्र सरकार के लिए समर्थन हासिल करने का उद्देश्य था। धीरे-धीरे इस हेतु राजनीतिक दबाव भी बनाये जाने लगे। क्षेत्रीय दलों ने अपने दिग्गजों के लिए पद्मभूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न तक के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया । इसके अलावा भी इस हेतु लॉबिंग किये जाने की जानकारी आती रही । यहां तक कि जब विश्व विख्यात सितार वादक पं. रविशंकर को भारत रत्न मिला तब पं. जसराज ने सार्वजनिक तौर पर उसका विरोध किया था । अन्य लोगों के चयन को लेकर भी काफी हल्ला मचा । सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने की टाइमिंग पर भी प्रश्न उठे। सब देखते हुए ही मोदी सरकार ने पद्म सम्मानों को लेकर सतर्कता बरतते हुए उसे सामान्य जन के लिए सुलभ बनाया । लेकिन लगता है इस बार कुछ ऐसे नाम भी पद्म सम्मान पा गए जिन्हें लेकर सरकार की निर्णय क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं । इस बारे में एक सुझाव ये भी आता रहा है कि पद्म पुरस्कारों के लिए खेल, फिल्म एवं साहित्य सहित अन्य क्षेत्रों के लोगों को शामिल न किया जावे क्योंकि उनके लिए उन क्षेत्रों में अलग से पुरस्कार दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, अर्जुन और राजीव गांधी खेलरत्न, साहित्य अकादमी-ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाते हैं । हालांकि ऐसा होना सम्भव होगा ये लगता नहीं क्योंकि पद्म पुरस्कार एक तरह का राजसी एहसास करवाते हैं । लेकिन ये भी सही है कि एक -दो अनुपयुक्त लोगों को सम्मान मिलने पर बाकी की भी अहमियत घटती है । सरकार किसी की हो किन्तु इस तरह के सम्मान में गुणवत्ता को सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए अन्यथा इनका महत्व धीरे - धीरे खत्म हो जाएगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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