Friday 17 January 2020

संजय राउत ने बयान पलटा लेकिन बात नहीं



शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत राजनेता होने के अलावा पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादक भी हैं। लेकिन उनकी प्रसिद्धि विवादास्पद बयानों और तीखी टिप्पणियों से ही है। महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबन्धन टूटने में उनकी बयानबाजी को भी एक कारण माना जाता है। हालाँकि ये कहना गलत नहीं होगा कि संजय महज एक मोहरे हैं जिन्हें आगे बढ़ाकर ठाकरे परिवार अपनी चालें चला करता है। उनके पहले के प्रवक्ता भी सामना के संपादक रहे। इनमें एक संजय निरुपम कांग्रेस में जा घुसे और दूसरे प्रेम शुक्ल भाजपा में। बीते काफी समय से श्री राउत, ठाकरे परिवार के बाद शिवसेना के सबसे मुखर नेता के रूप में सामने आये। वे राज्यसभा सदस्य भी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर छिड़ी जंग में उनकी शेरो-शायरी युक्त टिप्पणियाँ सुखिऱ्यों में रहीं। ये कहना भी काफी हद तक सही है कि भाजपा उनके बयानों के सामने निरीह नजर आई। लेकिन उद्दव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद श्री राउत की बयानबाजी ठंडी पड़ गई। ये माना जाने लगा कि उद्धव के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद शिवसेना ने अपने प्रवक्ता को वाणी पर संयम रखने की हिदायत दे दी। लेकिन हाल ही में कुछ ऐसी राजनीतिक घटनाएँ हुईं जिनके बाद शिवसेना अपनी मौलिक शैली पर लौटती दिख रही है। गत 13 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आयोजित विपक्षी दलों की बैठक में शिवसेना को आमंत्रण नहीं मिला। उसके पहले वीर सावरकर के विरुद्ध कांग्रेस के कतिपय नेताओं द्वारा छेड़े गये अभियान पर भी शिवसेना कड़ा ऐतराज जता चुकी थी। यही नहीं तो महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस के कुछ मंत्री उद्धव ठाकरे से मिलकर महत्वहीन मंत्रालय मिलने पर नाराजगी भी जता चुके थे। कहते हैं उस दौरान काफी गर्मागर्म वार्तालाप भी हुआ। शिवसेना की मुसीबत ये है कि भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी उसके पास हो लेकिन सत्ता के असली सूत्र एनसीपी प्रमुख शरद पवार के पास ही हैं। लेकिन वह चाहकर भी उनके विरुद्ध कुछ नहीं कह पाती। सावरकर संबंधी बयानबाजी में भी एनसीपी कांग्रेस के साथ नहीं दिखी। ऐसे में शिवसेना ने कांग्रेस को कमजोर गोटी मानकर उस पर निशाना साधने की रणनीति अपनाई और उसी के अंतर्गत दो-तीन दिन पहले ऐसा बयान दे दिया जिससे कांग्रेस पूरी तरह तिलमिला गयी। श्री राउत ने पुणे में एक भाषण के दौरान आज के माफिया सरगनाओं को बौने कद का बताते हुए कह दिया कि हाजी मस्तान के आने पर लोग खड़े हो जाया करते थे। लेकिन उनके इस बयान ने तहलका मचा दिया जिसमें प्रधानमन्त्री रहते हुए इंदिरा गांधी के माफिया डॉन करीम लाला से मिलने आने की बात थी। स्मरणीय है करीम एक ज़माने में मुम्बई में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह हुआ करता था। इस बयान के कारण कारण कांग्रेस सकते में आ गयी। और समय होता तब कांग्रेस ही नहीं बल्कि दीगर लोग भी श्री राउत की बात को राजनीतिक स्टंट बताकर उपेक्षित कर देते लेकिन ऐसे समय जब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की कुर्सी कांग्रेस की बैसाखी पर टिकी हुई है, उनकी पार्टी के प्रवक्ता द्वारा इतना सनसनीखेज बयान देना साधारण बात नहीं मानी जा सकती। हालाँकि कांग्रेस द्वारा बेहद तीखी प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने बयान वापिस ले लिया लेकिन उसका खंडन करने की बजाय ये और जोड़ दिया कि इंदिरा जी करीम लाला के पठान नेता होने के कारण उससे मिलने जाती थीं। लेकिन तब तक सोशल मीडिया सहित दूसरे माध्यमों ने लाला की आपराधिक गतिविधियों का चि_ा खोल दिया। इंदिरा जी के साथ उसके चित्र भी प्रसारित हो गए। सवाल ये है कि संजय ने ये सब जान बूझकर किया या अनजाने में। क्योंकि अब तक उद्धव ठाकरे या अन्य किसी और शिवसेना नेता ने उस बयान के समर्थन या विरोध में कुछ नहीं कहा। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि श्री राउत को महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार बनवाने में निभाई गयी महत्वपूर्ण भूमिका के बाद भी खाली हाथ रह जाने का रंज है। और वे विघ्नसंतोषी के तौर पर सामने आकर खुद को स्थापित करने में जुट गये हैं। गौरतलब है उनका नाम संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर भी उभरा था। हालाँकि इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि पार्टी प्रवक्ता के मुंह से विवादास्पद बयान दिलवाकर उद्धव ठाकरे कांग्रेस को सन्देश देना चाहते हैं कि वह उनकी उपेक्षा और वीर सावरकर की चरित्र ह्त्या का दुस्साहस करेगी तो उसे उसी शैली में जवाब मिलेगा। सच्चाई जो भी हो लेकिन श्री राउत ने अपना बयान वापिस लेने के बाद भी इंदिरा जी और करीम लाला की मुलाकात का खंडन नहीं किया। उनके ये कह देने से कि वे उससे पठान नेता के रूप में मिलती थीं, पूर्व में दिए बयान में छिपा आरोप नष्ट नहीं होता। अब गेंद कांग्रेस की पारी में है। उसे ये स्पष्ट करना चाहिए कि इन्दिरा जी करीम लाला से किस वजह से मिलती थीं? इंदिरा जी जैसी शक्तिशाली कही जाने वाली नेत्री किसी तस्कर की छवि वाले व्यक्ति से क्यों मिलती थीं ये निश्चित रूप से रहस्यमय है। भले ही श्री राउत ने कांग्रेस की आपत्ति के बाद अपने बयान को वापिस ले लिया किन्तु उनकी संशोधित टिप्पणी में भी पूर्व प्रधानमंत्री पर आक्षेप यथावत है। राजनीति के जानकार शिवसेना प्रवक्ता की बात का विश्लेषण कर रहे हैं। कुछ को लग रहा है कि उद्धव ठाकरे को कांग्रेस के साथ रहना असहज लगने लगा है। दरअसल दोनों एक दूसरे को पचा नहीं पा रहे हैं। बड़ी बात नहीं ठाकरे परिवार कांग्रेस को छेड़कर दोबारा भाजपा के साथ गलबहियां करने की कार्ययोजना में जुट गया हो। कांग्रेस द्वारा सावरकर के विरुद्ध की गई बयानबाजी के बाद विपक्ष की बैठक में शिवसेना को न्यौता नहीं दिया जाना और उसके बाद संजय राउत द्वारा इंदिरा जी का अपराधिक छवि के व्यक्ति से मिलने का खुलासा साधारण बातें नहीं है। इनके पीछे छिपे राजनीतिक मंतव्य भी देर-सवेर सामने आ जायेंगे। फिलहाल तो कांग्रेस को सांप-छछूदर वाली स्थिति से गुजरना पड़ रहा है क्योंकि श्री राउत के दोनों बयानों में एक बात शामिल है कि इंदिरा जी उस करीम लाला से मिलती थीं जिसे अपराध की दुनिया का बड़ा नाम माना जाता था।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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