Friday 24 January 2020

कश्मीर घाटी में अलगाववाद की अंतिम विदाई की तैयारी



जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय को असंवैधानिक बताने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से साफ शब्दों में कह दिया गया कि जो हो गया सो हो गया। 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी और केंद्र उसे समाप्त करने के फैसले से पीछे नहीं हटेगा। याचिकाकर्ताओं के इस तर्क का केंद्र की तरफ  से जोरदार खंडन किया गया कि इस राज्य का भारत संघ में विलय हुआ ही नहीं था। अटार्नी जनरल ने साफ-साफ कहा कि विलय को लेकर किसी भी तरह का भ्रम गलत है। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसा न हुआ होता तब अनुच्छेद 370 लागू ही क्यों होता? बहस में एक मुद्दा इस याचिका को सात सदस्यों वाली पीठ को सौंपने का भी रहा। याचिका का अन्त्तिम परिणाम क्या होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन केंद्र द्वारा 370 हटाये जाने के फैसले को वापिस नहीं लिए जाने की जो दृढ़ता अदालत में दिखाई गई वह पूरी तरह सही है। जम्मू कश्मीर के भारत में विलय पर संदेह करने वाली मानसिकता का उजागर होना ये साबित करने के लिए काफी है कि कश्मीर घाटी में अभी भी भारत की प्रभुसत्ता को अस्वीकार करने वाली ताकतें आखिऱी कोशिश कर रही हैं। बीते कुछ महीनों में कश्मीर घाटी के भीतर अलगाववादी और आतंकवादियों शक्तियां काफी कमजोर हुई हैं। हालांकि आलोचकों के अनुसार विपक्षी नेताओं को कैद में रखने और संचार सुविधाओं पर प्रतिबंध की वजह से ही घाटी में ऊपरी तौर पर शांति दिखाई देती है लेकिन भीतर-भीतर सरकार विरोधी भावनाएं उबाल मार रही हैं जो नियंत्रण हटाये जाते ही बाहर आये बिना नहीं रहेंगी। यद्यपि केंद्र सरकार ने सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत कफ्र्यू वगैरह में धीरे-धीरे ढील दी और हाल ही में संचार सुविधाएं भी बहाल कर दीं जिसके बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे जनता के स्तर पर किसी भी तरह की नाराजगी या असंतोष का पता चलता। बीच-बीच में कुछ आतंकवादी घटनाएं जरूर होती रहीं लेकिन किसी बड़ी वारदात का नहीं होना इस बात का प्रमाण है कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने का निर्णय सही साबित हुआ। केंद्र के रणनीतिकार इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने घाटी में हालात सामान्य बनाने के लिए शानदार काम किया। शुरुवात में लोगों को भड़काने का काफी प्रयास किया गया लेकिन जब आम जनता को लगा कि 370 को हटाने से उनको किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ और कश्मीर घाटी के भीतर शांति बहाल हो गई तब वह भी बदली हुई व्यवस्था के साथ खुद को समायोजित करने लगी। लद्दाख में तो 370 हटाने का जबर्दस्त स्वागत हुआ क्योंकि वह इलाका कश्मीर घाटी के आधिपत्य में पूरी तरह उपेक्षित और अविकसित रह गया। जम्मू अंचल भी कश्मीर घाटी के वर्चस्व से असंतुष्ट था। हालांकि राज्य के विभाजन के बाद भी जम्मू को कश्मीर घाटी के साथ ही रखा गया है लेकिन राजनीतिक तौर पर घाटी का एकाधिकार खत्म करने के लिए विधानसभा सीटों का परिसीमन करने की योजना के कारण अब घाटी और जम्मू के बीच सियासी संतुलन बने रहने की सम्भावना बन रही है। इस तरह 370 हटाये जाने के फैसले का विरोध केवल घाटी के भीतर ही सिमटकर रह गया। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 370 हटाने के बाद पेश हुई याचिकाओं पर सुनवाई में जल्दबाजी नहीं किये जाने के भी अनुकूल नतीजे निकले। इस दौरान जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास के लिए विस्तृत योजनायें भी कागज से जमींन पर उतरने लगी हैं। लद्दाख के अलग केंद्र शासित राज्य बन जाने से वहां विकास को लेकर नया उत्साह जागा है। घाटी के भीतर भी आम जन के मन में ये बात भी धीरे-धीरे घर करती जा रही है कि नेशनल कांफे्रंस और पीडीपी के नेताओं ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काते हुए अपना घर भरा। 370 हटाये जाने के बाद पहले-पहल लोगों को उकसाने का काम हुआ लेकिन केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों की अच्छी तैयारी की वजह से देश विरोधी ताकतें सिर नहीं उठा सकीं। अनुच्छेद 370 हटाना कोई आसान फैसला नहीं था। लेकिन प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने ये साबित कर दिया कि देशहित में कड़े फैसले लेने से डरना नहीं चाहिए। सबसे बड़ी चिंता विश्व जनमत की थी लेकिन भारत सरकार ने इस मोर्चे पर भी बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर पर भारत के कदम का काफी विरोध किया लेकिन सिवाय चीन के उसे और किसी का समर्थन नहीं मिला। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी तरफ से मध्यस्थता की कई स्वयंभू कोशिशें कीं लेकिन भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका को अस्वीकार कर दिया। संरासंघ में भी चीन ने पाकिस्तान की वकालत करने का काफी प्रयास किया लेकिन उसे किसी का समर्थन नहीं मिला। इस मामले में सबसे बड़ी बात ये रही कि मुस्लिम देशों में मलेशिया और टर्की जैसे इक्का-दुक्का को छोड़कर और कोई अनुच्छेद 370 को हटाने के विरोध में नहीं खड़ा हुआ। इस सबसे निश्चित रूप से एक तरफ जहां केंद्र सरकार का हौसला बुलंद हुआ वहीं अलगाववादी ताकतें निराश हुईं। उन्हें उम्मीद थी कि पाकिस्तान सहित मुस्लिम देश तथा अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पकिस्तान के सरपरस्त रहे मुल्क भारत सरकार के विरोध में सामने आयेंगे। लेकिन उनकी सोच गलत साबित हो गयी। भारत सरकार ने 370 हटाये जाने के बाद की स्थितियों का जिस कुशलता से सामना किया उसमें सुरक्षा बलों की भूमिका भी अभिनन्दन योग्य है। सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार का ये कहना उसके दृढ़ इरादे और आत्मविश्वास को दर्शाता है कि 370 हटाये जाने के फैसले से पीछे हटना नामुमकिन है और जम्मू कश्मीर की वर्तमान स्थिति अब एक वास्तविकता है। इस मुद्दे पर सरकार को घेरने वाले विपक्ष को भी जब ये लगा कि कश्मीर घाटी में अब उसके पैर नहीं जम पाएंगे तब वह भी दूसरे मुद्दों में उलझ गया। यहां उल्लेखनीय है कि महबूबा मुफ्ती की पीडीपी में भी विभाजन की स्थिति है। केंद्र की सख्ती का परिणाम ये हुआ कि कश्मीर की आम जनता को ये बात पूरी तरह से समझ में आ चुकी है कि धारा 370 और उसके कारण राज्य को मिला विशेष दर्जा अब पुनर्जीवित नहीं सकेगा। सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वाले युवा भी समझ चुके हैं कि घाटी में भारत विरोधी गतिविधियां महंगी पड़ेंगी। कुल मिलाकर सर्दियां ख़त्म होने का बाद घाटी सहित पूरे राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जायेगी। मौजूदा स्थिति में ये कहना गलत नहीं होगा कि आगामी चुनाव घाटी से अलगाववाद की विदाई पर अन्तिम मोहर लगा देगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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