Saturday 2 January 2021

वैक्सीन के विकास ने भारत का सिर गौरव से ऊँचा किया




बीते वर्ष की शुरुवात में जब कोरोना की आहट सुनाई दी तब ये लगा था कि शायद भारत में उसका प्रकोप ज्यादा नहीं होगा लेकिन विदेशों से लौटे  यात्रियों के माध्यम से अंतत: उसने भारत में न सिर्फ प्रवेश ही किया अपितु देश के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया। जिसके बाद लम्बा लॉक डाउन लगाना पड़ा। यदि वह न लगता तब प्रारम्भिक दौर में ही कोरोना का सामुदायिक फैलाव होना तय था। लॉक डाउन के उन दो-तीन महीनों में देश में चिकित्सा व्यवस्था में समुचित सुधार किये गए जिसके अच्छे परिणाम पूरी दुनिया ने देखे। यही वजह रही  कि 135 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले  देश में कोरोना के कारण हुई मौतों का आंकड़ा विकसित कहे जाने वाले अनेक देशों की तुलना में बहुत कम रहा। शुरुवात में कोई सोच भी नहीं सकता था कि भारत कोरोना से लड़ भी पायेगा। चिकित्सकों के साथ ही जरूरी उपकरणों और यहाँ तक कि ऑक्सीजन जैसी प्राथमिक आवश्यकता से वंचित सरकारी अस्पतालों के भरोसे इतने बड़ी महामारी से जूझने की क्षमता को लेकर संदेह होना स्वाभाविक था। लेकिन संकट के समय भारत ने सदैव दुनिया को चौंकाया है और वही कोरोना को लेकर भी हुआ। जून में जब लॉक डाउन शिथिल किया गया  तब  कोरोना का विस्फोटक अंदाज सामने आया। लेकिन जल्द ही उस पर काबू पाया जाने लगा। इसके लिये केंद्र से लेकर ग्रामीण स्तर तक जो प्रयास और प्रबंध किये गए वे रंग लाये और साल खत्म होते-होते तक भारत कोरोना को मात देने की स्थिति में आ गया। नये संक्रमितों की संख्या में लगातार कमी आने के साथ ही अस्पतालों से स्वस्थ होकर घर लौटने वाले नित्यप्रति ज्यादा हो रहे हैं। मृत्युदर भी 4 प्रतिशत से कम रह गई है। और ये भी तब जब अमेरिका सहित यूरोप के अनेक संपन्न देश कोरोना की दूसरी लहर के अलावा उसके नए रूप से जूझने मजबूर हैं। नए साल की शुरुवात में देश को ये खुशखबरी मिली कि भारत में ही विकसित एक वैक्सीन के उपयोग की अनुमति दे दी गई है और कुछ ही दिनों बाद दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरु कर दिया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के साथ मिलकर जो व्यवस्था की जा रही हैं वह उम्मीदों के साथ ही आत्मविश्वास का संचार करने वाली है। पूरी दुनिया को ये देखकर आश्चर्य हो रहा है कि जिस भारत को वे पिछड़ा मानते रहे वह न सिर्फ अपने वरन समूची दुनिया के लिए वैक्सीन बना रहा है। हालांकि  चीन, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने भी वैक्सीन विकसित कर ली है लेकिन भारत जैसे देश के  लिए नि:संदेह ये बड़ी उपलब्धि है। वैसे तो वैक्सीन के उत्पादन में भारत पहले से ही दुनिया का  अग्रणी देश रहा है , लेकिन एक अपरिचित संक्रमण की वैक्सीन इतनी जल्दी विकसित करने के बाद बड़े पैमाने पर उसका उत्पादन कर लेना निश्चित रूप से बड़ा कारनामा है जिसके लिए सीरम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक अभिनन्दन के पात्र हैं। निश्चित रूप से ये समूचे देश के लिए गौरव का विषय है और पूरी दुनिया को ये संदेश  भी कि भारत बड़ी से बड़ी मुसीबत से लड़ने का आत्मविश्वास अर्जित कर चुका है और जरूरत पड़ने पर वह दुनिया की सहायता करने की क्षमता से युक्त है। कोरोना भले ही एक महामारी के तौर पर आया लेकिन उसने समूची मानव जाति के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया। विकसित देश तक उसके सामने असहाय खड़े रहकर मौत का मंजर देखते रहे। जिन्हें अपनी चिकित्सा सुविधाओं का घमंड था उन देशों में तो कब्रिस्तान तक  छोटे पड़ गए। उस आधार पर देखा जाये तो कुपोषण और गरीबी के शिकार करोड़ों लोगों के हमारे  देश में कोरोना को नियंत्रित कर लेना मानवीय संकल्प का उत्कृष्ट उदाहरण कहा जाएगा। जितने कम समय में वैक्सीन का विकास और उत्पादन किया गया वह निश्चित रूप से चमत्कृत करने वाला है। और उससे भी बड़ी बात है केंद्र सरकार द्वारा समय रहते टीकाकरण संबंधी विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर लेना, जिसकी वजह से वैक्सीन को तकनीकी स्वीकृति मिलते ही उसे जरूरतमंदों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जा सकी। आने वाले कुछ महीनों तक जो टीकाकरण अभियान चलेगा वह भारत के  प्रबंधन कौशल और  क्षमता का अभूतपूर्व प्रगटीकरण होगा। लेकिन इस उपलब्धि की खुशी में किसी भी प्रकार की लापरवाही खतरनाक हो सकती है क्योंकि जब तक दुनिया में एक भी संक्रमित रहेगा तब तक कोरोना को विदा मान लेना मूर्खता होगी। और फिर अब तो उसका दूसरा रूप भी सामने आ चुका है जिसके लगभग दो दर्जन मरीज भारत में भी मिल चुके हैं जो हाल ही में विदेशों से आये थे। जैसी कि उम्मीद व्यक्त की जा रही है उसके अनुसार आगामी छह माह में भारत में टीकाकरण का महत्वाकांक्षी अभियान प्रभावी रूप ले लेगा। लेकिन आगे पाट-पीछे सपाट की स्थिति को रोकने में जनसहयोग जरूरी होगा। भारत की जनता ने लॉकडाउन को सफल बनाकर जिस अनुशासन का परिचय दिया उसे राष्ट्रीय स्वभाव बनाना समय की  मांग है। आगामी कुछ महीने उस दृष्टि से बेहद संवेदनशील होंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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