Friday 29 January 2021

सत्तापक्ष को स्वेच्छाचारी बनाने में विपक्ष का योगदान भी कम नहीं





किसान आन्दोलन के बीच आज से संसद का बजट अधिवेशन शुरू हो गया  । राष्ट्रपति ने संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में अपना परम्परागत अभिभाषण दिया   जिसमें सरकार की उपलब्धियों का बखान  है । इस बारे में ये बड़ी ही रोचक बात है कि संवैधानिक मुखिया होने के नाते राष्ट्रपति महोदय को संसद के  दोनों सदनों को सम्बोधित करने का अवसर तो मिलता है किन्तु  वे अपना भाषण खुद तैयार नहीं करते ।  सरकार उन्हें जो लिखकर देती है उसे ही उन्हें पढ़ना  होता है । इसीलिये राष्ट्रपति का अभिभाषण सही मायनों में सरकार का प्रशस्तिगान होता है । शायद यही वजह है कि जिस राष्ट्रपति के पास विपक्ष गाहे - बगाहे सरकार की शिकायतें लेकर जा पहुँचता है उसी के अभिभाषण का  विरोध करते हुए उसके प्रति सरकार द्वारा पेश किये जाने वाले धन्यवाद प्रस्ताव का विरोध करने में जरा भी संकोच नहीं करता । और तो और अनेक अवसरों पर उसका बहिष्कार तक कर देता है । आज भी वैसा ही होने का ऐलान अनेक विपक्षी दलों द्वारा किया गया है । किसान आन्दोलन को लेकर वैसे भी विपक्ष के पास सरकार को घेरने का बड़ा अवसर है । गत वर्ष बजट सत्र के खत्म होते तक देश में कोरोना की आहट सुनाई देने लगी थी । आखिऱ - आखिर में तो आनन - फानन में काम निबटाकर सत्रावसान  कर दिया गया और उसके बाद हुए संसद के सत्र कोरोना के साये में होने से सदस्यों .  खास तौर पर विपक्ष को ज्यादा अवसर नहीं  मिल सका । उस दृष्टि से तकरीबन एक वर्ष बाद इस बजट सत्र  के बहाने विपक्ष को दोनों सदनों में  अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिलेगा । लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने के फैसले से विपक्ष एक बार फिर नकारात्मक रुख दिखा रहा है । व्यवहारिक बात ये है कि जिस अभिभाषण को सुनना विपक्ष गैरजरूरी समझता है उस पर धन्यवाद प्रस्ताव का विरोध वह किस मुंह से करेगा ? लेकिन संसदीय प्रजातंत्र में ये सब बहुत ही सामान्य हो चला है । पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. अरुण जेटली ने तो कहा भी था कि सदन से बहिर्गमन अथवा मतदान में भाग नहीं लेना भी एक तरह का विरोध ही है । लेकिन दूसरे नजरिये से देखें तो संसद की गरिमा के प्रति जनप्रतिनिधियों के उदासीन रवैये के कारण ही देश की सर्वोच्च पंचायत के प्रति आम जनता के मन में सम्मान घटता जा रहा है । लेकिन इसके लिये केवल  वर्तमान विपक्ष  को दोषी  ठहराना न्यायोचित नहीं होगा क्योंकि भाजपा भी जब मुख्य  विपक्ष की  भूमिका में रही तब उसने भी पूरे के पूरे सत्र को हंगामे की भेंट चढाने  में संकोच नहीं किया । इस तरह ये बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि संसद की गम्भीरता के प्रति  लगभग  सभी राजनीतिक दल बेहद लापरवाह हैं जिसका दुष्परिणाम ये हुआ कि जिस मंच पर देश और जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों  पर सार्थक बहस होनी चाहिए वे होहल्ले में दबकर रह जाते हैं । सत्तापक्ष तो सदैव यही चाहता रहा है कि वह अपने बहुमत के बल पर बिना बहस या कम से कम चर्चा के अपने प्रस्ताव पारित करवाता जाए । लेकिन उसकी इस नीति को सफल बनाने में विपक्ष का योगदान भी कम  नहीं है क्योंकि वह अधिकतर समय तो हंगामा ही करता रहता है जिस वजह से सभापति बैठक को स्थगित कर देते हैं । ऐसा होते - होते सत्र खत्म होने आ जाता है और तब सरकार फटाफट सारे विधेयक और अन्य फैसले करवा लेती है जिसके बाद   विपक्ष  छाती पीटता रह जाता है । आजादी के बाद लम्बे समय तक संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस के पास विशाल बहुमत होता था । लेकिन कम संख्या  के बावजूद विपक्ष के नेता अपने तर्कपूर्ण  भाषणों से बहस शब्द को सार्थकता प्रदान किया करते थे । उस दौर में टीवी पर सीधे प्रसारण की व्यवस्था नहीं होने के बाद भी विपक्षी सांसद उन्हें दिए गये समय का समुचित उपयोग करते हुए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते थे । संसद के पुस्तकालय में उस दौर की कार्यवाही में विपक्षी सांसदों के अनेक ऐतिहासिक भाषण पढ़े जा सकते हैं जिन्होंने पंडित नेहरु और इन्दिरा जी जैसे ताकतवर प्रधानमंत्रियों तक को झकझोर कर रख दिया था । अनेक ऐसे विपक्षी नेता थे जो संसद में अपने प्रभावशाली भाषणों के कारण ही बार - बार चुनाव जीतकर आते रहे । आज का विपक्ष उस दृष्टि से खुद को साबित करने में विफल रहा है । सत्ता पक्ष के लिए कमजोर या उदासीन विपक्ष भले ही सुविधाजनक हो लेकिन संसदीय प्रजातंत्र और जनता के हितों की रक्षा के लिए ये जरूरी है कि विरोध में बैठे सांसद सदन जैसे राष्ट्रीय मंच का भरपूर उपयोग करते हुए सत्ता पक्ष को स्वेच्छाचारी बनने का मौका न दें । कोरोना काल की वजह से बीता एक साल संसदीय गतिविधियों के लिहाज से काफी खराब रहा । लेकिन अब जबकि उसका प्रकोप कम हो गया है तब विपक्ष को चाहिए वह संसद के एक - एक क्षण  का उपयोग जनहित के लिए करे । उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि संसद की एक मिनिट  की कार्यवाही पर जनता के लाखों रूपये खर्च होते हैं । यदि इस सत्र  में विपक्ष का दायित्वबोध जाग सके तो ये उसके साथ - साथ देश के लिए भी अच्छा  होगा । 
                                                                   - रवीन्द्र वाजपेयी

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