Monday 18 January 2021

बजट : अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार का सुनहरा अवसर



मोदी सरकार व्यवस्था में सुधार हेतु कड़े निर्णय लेकर उन पर अडिग रहने के लिए जानी जाती है | लोकप्रियता घटने के डर से यथास्थिति बनाए रखने की बजाय प्रधानमंत्री साहसिक फैसले लेने का कोई अवसर नहीं छोड़ते | पिछले कार्यकाल में  जब उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लिए तब भाजपा के भीतर भी एक तबका उन्हें आत्मघाती मानकर भयभीत था |  लेकिन चुनाव परिणामों ने ये साबित कर दिया कि जनता कड़े फैसलों को समर्थन देती है , बशर्ते मंशा साफ़ हो | श्री मोदी के पूर्ववर्ती डा. मनमोहन सिंह बहुत ही अनुभवी , सुयोग्य और ईमानदार नेता थे किन्तु वे अपने गुणों के अनुरूप फैसले नहीं कर सके  | सत्तर के दशक में स्व. इंदिरा गांधी ने सत्ता सँभालते ही  बैंक राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्स समाप्ति जैसे निर्णय लेकर जनता को आकर्षित किया था | स्व. पीवी नरसिम्हा राव को भी इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिये कि उन्होंने देश को आर्थिक उदारीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ाकर   वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए प्रेरित किया | हॉलांकि किसी भी फैसले को पूरी तरह दोषरहित नहीं माना जा सकता किन्तु जो काम करता है गलती भी उसी से होती है | उस दृष्टि से देखें तो मनमोहन सिंह जी ने राव सरकार के वित्त मंत्री के तौर पर जो हिम्मत दिखाई वह बतौर प्रधानमन्त्री न दिखा सके  | श्री मोदी इस बात को अच्छी तरह  समझते  थे और इसीलिये उन्होंने सत्ता सँभालने के बाद ही ताबड़तोड़ फैसले लेने शुरू किये | शासन - प्रशासन को ढर्रे से निकालकर निर्णय प्रक्रिया को त्वरित और प्रभावशाली बनाने का प्रयास उन्होंने पहले दिन से ही शुरू कर दिया था | | जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35 ए से बाहर निकालकर भारत के अन्य राज्यों जैसा बनाना साहस की पराकाष्ठा कही जा सकती है | नागरिकता संबंधी कानूनी प्रावधान भी उसी श्रेणी में रखने लायक हैं | लेकिन अपार जनसमर्थन के बावजूद आर्थिक मोर्चे पर केंद्र  सरकार की नीतियों को लेकर असंतोष है | इसकी वजह करों के  भारी  - भरकम  बोझ के अलावा वे पेचीदगियां हैं जो कारोबारी जगत को परेशान करती हैं |  जैसे - जैसे  स्थिति सामान्य होती जा रही है वैसे - वैसे  सरकार से वैसी ही उदारता  की उम्मीद की जा रही है जैसी कि कोरोना  से निपटने में उसने दिखाई | लॉक डाउन के दौरान व्यापार और उद्योग जगत को दी गई राहतें अब अपर्याप्त लगने लगी हैं | इसकी वजह बैंकों द्वारा  एनपीए को लेकर  बनाया जा रहा दबाव है | व्यापार जगत को ये भी चाहत  है कि सरकार ने लॉक डाउन के दौरान जो सहूलियतें और रियायतें  दी थीं उनको जारी रखा जाना चाहिए था किन्तु जैसे  ही लॉक डाउन शिथिल हुआ वैसे ही सरकारी विभाग पठानी शैली में नजर आने लगे | ये बात पूरी तरह सही है कि अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है लेकिन वास्तविकता ये है कि अभी भी उसे संबल दिया जाना ज्ररूरी है | बाजार में पूंजी का प्रवाह भी उम्मीद के मुताबिक नहीं होने से व्यापार - उद्योग जगत को परेशानी हो रही है और वह पूरी तरह से सरकार और बैंकों पर निर्भर है | ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि करों के ढांचे और वसूली के दबाव को कुछ कम किया जाए | बैंकों की स्थानीय शाखाओं पर ऊपरी दबाव पड़ता है जिसकी वजह से वे अपने कर्जदारों को हलाकान कर रहे हैं | बिजली विभाग के साथ ही स्थानीय निकाय भी  वसूली को लेकर बेरहम हैं | ये सब देखते हुए जरूरी है कि केंद्र  सरकार के आगामी बजट में आयकर के साथ ही जीएसटी जैसे करों को लेकर बड़ी रियायतें देने के अलावा कारोबारी जगत से की जाने वाली कर वसूली को भी समयानुसार व्यवहारिक बनाया जाए | कोरोना काल में सरकारी खजाने पर बुरा असर तो  जरूर  पड़ा  लेकिन अभी भी स्थितियां पूरी तरह से सामान्य चूँकि नहीं हुईं इसलिए सरकार को चाहिए वह करों के बोझ को तो कम करे ही वसूली प्रक्रिया में भी जरूरत से ज्यादा सख्ती से बचे जिससे कि आर्थिक गतिविधियाँ गति  पकड़ सकें | भले ही बीते महीने जीएसटी संग्रह ने पिछले आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया हो लेकिन अभी तक कुछ विशेष क्षेत्रों में ही तेजी नजर आ रही है जबकि बाकी में मांग जोर नहीं पकड़ पा रही | कोरोना का जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव आम उपभोक्ता पर है उसकी वजह से बाजार में उठाव अपेक्षनुसार न होने से अर्थव्यवस्था अब तक दौड़ पाने की स्थिति में नहीं आई | ऐसे में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को चाहिए वे बजट को करों में अधिकतम रियायत पर केन्द्रित रखें जिससे कारोबारी जगत को प्राणवायु मिले और वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती से पांव टिका सके | कोरोना के बाद दुनिया के बाजारों में चीन के प्रति जिस तरह की घृणा का भाव देखा जा रहा है उसके कारण भारत के लिए निर्यात बढ़ाने  का सुनहरा अवसर है | लेकिन करों की दरें और व्यवस्थाजनित कठिनाइयों के चलते उसमें सफलता नहीं मिल पाती | प्रधानमन्त्री ने कोरोना से निपटने के कठिनतम अभियान का बड़ी ही कुशलता के साथ नेतृत्व करते हुए अपनी और भारत दोनों  की छवि को उज्जवल किया है | इस बजट में मोदी सरकार  साहस का परिचय देते हुए कर ढांचे को आपदा में अवसर तलाशने के मद्देनजर नया रूप दे सके तो आगामी वित्तीय वर्ष में अकल्पनीय परिणाम आ सकते हैं | हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों में एक बात उभरकर आई है कि भारत में सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार जिसका एक प्रमुख कारण  कर ढांचा है | सरकार के अपने वैचारिक सहयोगी  संगठनों ने इस विसंगति में सुधार हेतु कुछ उपाय सुझाए हैं जिनमें आयकर समाप्त करते हुए उसकी जगह ट्रांजेक्शन टेक्स लगाना है | कहा जाता है नोटबंदी के पीछे भी वही सोच थी किन्तु वह सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका | अच्छा होगा इस बजट में प्रधानमंत्री एक बार पुनः साहस दिखाते हुए अर्थव्यस्था में ऐसे क्रांतिकारी  सुधार की नींव रखें  जो भ्रष्टाचार रूपी गाजर घास को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहायक बन सके | 

-रवीन्द्र वाजपेयी



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