Friday 22 January 2021

विदेशी निवेश की आवक बनाये रखने में बजट की भूमिका महत्वपूर्ण होगी



 हॉलांकि शेयर बाजार की तेजी - मंदी  से समाज का बहुत छोटा तबका जुड़ा होता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन वह  पूरे  देश को प्रभावित करती  है | कोरोना काल में औंधे मुंह गिरी अर्थव्यवस्था ने चिंता की लकीरें खींच दी थी | सकल घरेलू उत्पादन में ऐतिहासिक कमी के  कारण विकास दर ने गिरावट का रुख किया और वह सर्दियों में पहाड़ों के तापमान की तरह से ही शून्य से भी  नीचे चली गई | एक विकासशील देश के लिए ये बहुत बड़ा धक्का था | महामारी का भय और उसके साथ ही कारोबारी जगत में सन्नाटे से सर्वत्र चिंता के बादल मंडराते नजर आने लगे | कहाँ तो भारत दुनिया के अग्रणी देशों की बराबरी से बैठने की स्थिति में आने लगा था लेकिन  अचानक उत्पन्न हुई अकल्पनीय परिस्थितियों ने निराशा की गहरी खाई में गिरने के हालात बना दिए | लॉक डाउन का वह दौर अब एक दुस्वप्न जैसा प्रतीत होता है | लेकिन ज्योंही अर्थव्यवस्था को दोबारा सक्रिय किया गया त्योंही अन्धेरा छंटने के आसार नजर आने लगे | अब जबकि वित्तीय वर्ष का अन्तिम समय चल रहा है और दस दिन बाद ही देश के सामने  आगामी कारोबारी साल का  बजट पेश होगा तब शेयर बाजार का 50 हजार का आंकड़ा छू लेना और उसी के साथ ही रिजर्व बैंक द्वारा सकल घरेलू उत्पादन के दोबारा सकारात्मक होने का संकेत मिलना निश्चित रूप से शुभ संकेत है | यद्यपि अभी  भी बाजारों में अपेक्षानुसार रौनक नहीं  लौटी लेकिन कारोबारी जगत में व्याप्त निराशा में जरूर  कमी आने लगी है | आवागमन पर लगे प्रतिबंधों में नरमी से पर्यटन उद्योग में जैसा उत्साह लौटा वह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि लोगों में कोरोना को लेकर व्याप्त डर  कम हुआ है जो कि संक्रमण में निरंतर कमी आने से स्वाभाविक भी है | अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार का एक कारण कोरोना का टीकाकारण प्रारंभ होना भी है | इसकी वजह से न सिर्फ घरेलू अपितु वैश्विक स्तर पर भारत में व्यापार - उद्योग के लिए अनुकूल परिस्थितियां दोबारा उत्पन्न होने का सन्देश गया | लेकिन जैसा सुनने में आ रहा है उसके अनुसार आम  बजट पेश करते समय केंद्र सरकार के सामने तमाम ऐसी समस्याएँ हैं जिनका हल खोजने में उसे पसीना सकता है | मसलन बीते साल की  नकारात्मक विकास दर से हुए  राजस्व घाटे की भरपाई के साथ बाजार में मांग किस तरह बढ़ाई जाए ये वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के सामने बड़ी चुनौती है | कोरोना काल  में चीन से होने वाले आयात में बड़े पैमाने पर कटौती किये जाने से भारतीय उद्योगों को जरूरी सामान और कच्चे माल की  किल्लत झेलनी पड़ रही है जिसकी वजह से अनेक उत्पादों के दाम बढ़ गये हैं | देश में खाद्यान्न उत्पादन भी  जरूरत से ज्यादा होने की वजह से उसके लिए भी निर्यात  के दरवाजे खोलना जरूरी हो गया है | हॉलांकि चीन से उठकर अनेक कम्पनियाँ भारत में कारोबार ज़माने की तैयारी कर रही हैं लेकिन अभी उसके सुपरिणाम आने में समय लगेगा | घरेलू उद्योगों में लॉक डाउन के  बाद रोजगार में आई कमी दूर होने में भी कुछ वक्त और लग सकता है | सरकारी बैंकों के सामने तो जबरदस्त वित्तीय संकट है | कर्जों की बकाया राशि वसूल करना बड़ी समस्या बन गई है | केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक उन्हें पूंजी उपलब्ध करवाने की कोशिश कर तो रहे हैं लेकिन उनके पास भी संसाधनों का टोटा है | ऐसे में शेयर बाजार में आ रहा विदेशी  निवेश अर्थव्यवस्था को मूर्छावस्था से निकालने वाली संजीवनी साबित हो रहा है | इससे ये सन्देश भी जा रहा है कि दुनिया भर के निवेशकों का  भारतीय उद्योगों के साथ यहाँ की आर्थिक नीतियों पर भरोसा बढ़ा  है | लेकिन इससे जुड़ा सवाल ये भी है कि  केंद्र सरकार संकट के दौर से अर्थतंत्र को निकालने में कितनी उदारता दिखायेगी ? जैसी खबरें हैं उनके अनुसार आयात शुल्क में 5 से 10 फीसदी तक वृद्धि की जा सकती है जिससे आयात महंगा होगा और उत्पादन की लागत बढ़ने  से महंगाई बढ़ेगी | ये देखते हुए सरकार को बहुत ही सोच - समझकर कदम आगे बढ़ाने होंगे | शेयर बाजार से आ रही खबरें निश्चित रूप से उत्साहवर्धक हैं लेकिन ये भी सही है कि इस निवेश को स्थायी मान लेना मूर्खता होगी | विदेशी निवेशकों को भारत की प्रगति से कुछ भी लेना देना नहीं है | वे तभी तक अपनी पूंजी यहाँ रखेंगे जब तक उनको मुनाफे का आश्वासन मिलता रहे | ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह ऐसा बजट लेकर आये जिससे परदेसी निवेशकों का भरोसा न केवल बना रहे अपितु उसमें और वृद्धि हो |  

-रवीन्द्र वाजपेयी


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