Wednesday 27 January 2021

गणतंत्र दिवस पर गुंडातंत्र का निर्लज्ज प्रदर्शन



स्वयंभू किसान नेता योगेन्द्र यादव के अनुसार  26 जनवरी को ही दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड निकालने का मकसद ये दर्शाना था कि अब तक तंत्र ही  गण पर हावी रहा लेकिन अब गण के  तंत्र पर हावी होने का समय आ गया है | उनकी ये  बात भी  अच्छी लगी कि किसान भी यदि गणतंत्र दिवस मनाना चाहें तो इसमें गलत क्या है ?  दिल्ली पुलिस  ने किसान संगठनों को समझाया कि गणतंत्र दिवस पर राजधानी में अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंध की वजह से पुलिस बल काफी व्यस्त रहता है अतः ट्रैक्टर परेड किसी और दिन निकाली जाए |  ये भी बताया गया कि ख़ुफ़िया रिपोर्टों के अनुसार देश विरोधी ताकतें गणतंत्र दिवस के दिन गड़बड़ी करने की फिराक में हैं | लेकिन वे जिद पर अड़े रहे और उसके बाद पुलिस ने कई दौर की बातचीत के बाद कुछ शर्तें तय  करते हुए अनुमति दे दी | उसके अनुसार ट्रैक्टर परेड दिल्ली के बाहर निकाली  जानी थी | मात्र 5 हजार ट्रैक्टरों की अनुमति दी गई जिसमें अधिकतम तीन लोग बैठ सकते थे तथा ट्रैक्टर के पीछे  ट्राली की अनुमति भी नहीं थी | हथियार रखने पर भी पूरी तरह मनाही थी | परेड का समय दोपहर 12  से शाम 5 बजे तक था जिससे कि राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस की परम्परागत परेड के आयोजन में व्यवधान न आये | किसान  नेताओं ने पूरी तरह शांतिपूर्ण आयोजन के साथ ही गणतंत्र दिवस की गरिमा बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी दर्शाई थी लेकिन राजपथ की परेड खत्म होने के पहले  ही किसानों ने दिल्ली में घुसना  शुरू कर दिया | पुलिस द्वारा लगाये  बैरिकेड्स तोड़ डाले गये और उसकी बसों को ट्रैक्टरों से धकेलकर क्षतिग्रस्त किया गया | चूंकि  पुलिस बल राजपथ के अलावा अन्य  जगहों पर तैनात था इसलिए किसानों को उत्पात मचाने का अवसर मिल गया और देखते ही  देखते दो महीने से दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसानों का शांतिपूर्ण आन्दोलन अराजकता में बदल गया | पूरे देश और दुनिया ने ये देखा कि ट्रैक्टर परेड के नाम पर किस तरह से आतंक का माहौल बनाया गया | दोपहर 12 बजे के पहले ही आन्दोलन अराजक हो उठा था और जो तथाकथित किसान नेता एक दिन पहले तक शांति और व्यवस्था की गारंटी देते फिर रहे थे वे इस बात का रोना रोते दिखाई देने लगे कि हिंसा करने वाले  बाहरी तत्व हैं | भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने तो राजनीतिक दलों पर उपद्रव की जिम्मेदारी डालकर बचने की कोशिश की | हालाँकि वे किसी भी दल का नाम बताने से कतरा गये | योगेन्द्र यादव भी बड़ी ही मासूमियत से हिंसा की निंदा करते हुए लुप्त हो गए | बाकी नेताओं ने वीडियो के जरिये शान्ति की अपीलें तो जारी कीं किन्तु उनमें से किसी ने भी उपद्रवियों को रोकने की हिम्मत नहीं दिखाई जिससे ये संदेह पुख्ता हो गया कि जो कुछ भी  हो रहा था उसमें उनकी मौन सहमति थी | लेकिन बाद में  समूचा माहौल लालकिले पर जाकर केन्द्रित हो गया जहाँ कुछ लोगों ने उसकी प्राचीर पर चढ़कर उस ध्वज दंड पर खालसा पंथ और   किसान यूनियन का झंडा फहरा दिया जिस पर 15 अगस्त को प्रधानमंत्री राष्ट्रध्वज फहराकर देश को संबोधित करते हैं | इसके अलावा वामपंथी पार्टी का हंसिया - हथौड़ा चिन्ह्युक्त लालझंडा भी लहराया गया |  प्राचीर के बगल वाली गुम्बद पर भी ऐसा ही  किया गया | इसके बाद एक निहंग ने तलवार से करतब दिखाने शुरू कर दिए | लालकिले की सुरक्षा में तैनात जवानों पर  तलवारों से हमला करने की कोशिश भी की गई | इस घटना ने किसान आन्दोलन के प्रति थोड़ी सी भी सहानुभूति रखने वाले को क्रोधित कर दिया | राष्ट्रध्वज और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक स्थल का अपमान और वह भी गणतंत्र दिवस के दिन हर सच्चे भारतीय को नागवार गुजरा  | पूरे दिन राष्ट्रीय राजधानी में गुंडातंत्र का नगा नाच होता रहा लेकिन किसान नेता उसकी निंदा करने की बजाय बलि के बकरे खोजने में लग गये | दिल्ली  पुलिस को भी इस बात के लिए दोषी ठहराया जाने लगा कि गड़बड़ी होने संबंधी खुफिया रिपोर्टों के बाद भी उसने जरूरी कदम क्यों नहीं उठाये ? सतही तौर पर ये आरोप सच भी लगता है | बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्होंने लाल किले पर हुए उत्पात को  रोकने में पुलिस की  विफलता पर सोशल मीडिया के जरिये अपने गुस्से का इजहार किया |  लेकिन इस बारे में दिल्ली पुलिस के आला अफसरों की तारीफ़ करनी होगी जिन्होंने गणतंत्र दिवस को खूनी होने से बचा लिया | ये कहना गलत नहीं है कि उपद्रवकारियों के साथ ही कुछ किसान नेताओं ने पुलिस को उकसाने का भरसक प्रयास किया | सामान्यतः ऐसे हालातों में पुलिस की तरफ से गोली चला दी जाती  है | कुछ  ट्रैक्टर  चालक तो पुलिस वालों को कुचलने का प्रयास करते हुए टीवी कैमरों में कैद भी हो गए | किसानों के हाथ में डंडे और तलवारें होना अन्दोलन के हिंसक तत्वों के हाथ में चले जाने का प्रमाण है | इसी तरह लाल किले में शस्त्र लेकर दरवाजा तोड़ते हुए घुसने वालों को भी वहां तैनात पुलिस बल गोली मार सकता था किन्तु उसने संयम बनाये रखा वरना कल दिल्ली में बड़ी संख्या में लाशें बिछ सकती थीं और ऐसा होने पर पूरे देश के किसानों को भड़काने का सुनियोजित षड्यंत्र सफल हो जाता | दिल्ली पुलिस उपद्रव करने वालों की पहिचान कर उन पर मामले कायम करने में जुट गई है | दूसरी तरफ किसान संगठन अपने धरने को यथावत जारी रखने की बात कह रहे हैं | बकौल योगेन्द्र यादव 1 फरवरी को किसान संसद भवन तक मार्च करते हुए उसका घेराव करेंगे | लेकिन गत दिवस जो नजारा दिखाई दिया उसके बाद इस तरह  के किसी भी आयोजन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए | किसान अन्दोलन के नाम पर चल रहे धरने के दो माह बाद भी गतिरोध जस का  तस है |  आगे बातचीत की गुंजाईश भी नहीं दिख रही | ऐसे में जरूरी है अब सरकार को भी सख्ती दिखानी चाहिए | किसान संगठनों और उनके  नेताओं की प्रामाणिकता का परीक्षण करने के बाद जो विघटनकारी तत्व हैं उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई देश के ज्यादातर लोग चाहते हैं | किसानों से सभी की सहानुभूति पहले भी थी और आगे भी रहेगी लेकिन उनकी आड़ में देशविरोधी गतिविधियों को प्रश्रय देने वालों को कड़े से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए | जिन किसान नेताओं से अब तक बातचीत की जाती रही उनकी विश्वसनीयता तो मिट्टी में मिल गई |  ये भी  साबित हो गया कि वे आग भड़का तो सकते हैं लेकिन उसे बुझाने की उनमें न अक्ल है और न ही मंशा | ऐसे नेताओं से किसी भी तरह का सम्वाद अब निरर्थक है | किसानों को भी चाहिए वे ऐसे नेताओं के बहकावे में आने से बचें जिन्होंने उन्हें ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से लौटना और आगे बढ़ना दोनों मुश्किल  हैं | ये कहना भी काफी हद तक सही है कि किसान आन्दोलन में अब देश विरोधी तत्व  पूरी तरह से घुस आये  हैं | इसलिए उसके तौर - तरीके बदले जाने चाहिए | अन्यथा जिस तरह गत दिवस यह आन्दोलन कलंकित हुआ उससे भी ज्यादा खराब स्थिति आगे भी बन सकती है |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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