21 वीं सदी का 20 वां साल बहुत ही दर्दनाक यादों के साथ समाप्त हुआ । पहले आर्थिक मंदी और उसके बाद कोरोना नामक वैश्विक महामारी ने हर खासो - आम को भय और तनावग्रस्त कर दिया । पूरी दुनिया ठहर सी गई । एक अदृश्य वायरस ने अपने शोध और ज्ञान - विज्ञान पर इतराने वाले दोपाये इंसान को साफ़ शब्दों में समझा दिया कि अपने को सर्वशक्तिमान समझने की मूर्खता बंद कर दो । वह वायरस कैसे और कहाँ से आया ये आज भी रहस्य है । मानव जाति ने भले ही उसको रोकने का उपाय तलाश लिया हो लेकिन सुना है कोरोना के अन्य परिजन भी धीरे - धीरे चले आ रहे हैं और जैसे संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार तो वे सब लम्बे समय तक पृथ्वीवासियों को को हर समय मौत की आशंका से ग्रसित करते रहेंगे । लेकिन यहीं मानवीय संकल्प की भूमिका शुरू होती है जिसने बीते करोड़ों वर्षों में अपनी दृढ इच्छाशक्ति से हर असंभव को सम्भव कर दिखाया । और इसी आधार पर ये उम्मीद करना गलत न होगा कि बीते साल में समूची मानव जाति पर जो संकट आया उससे उबरने में भी सफलता हासिल होगी जिसमें भारत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहेगी । कोरोना की वैक्सीन के अलावा आर्थिक क्षेत्र में भी पूरे विश्व की निगाहें भारत पर टिकी रहेंगी । इसका कारण चीन को लेकर पूरी दुनिया में व्याप्त वितृष्णा है । कोरोना वायरस के फैलाव का संदेह उसी पर जाता है । ताजा रिपोर्टों से इस आरोप को एक बार फिर बल मिल रहा है कि वुहान नामक अपने शहर में कोरोना की शुरुवात की जानकारी उसने पूरी दुनिया से छिपाई । यही नहीं तो अपने नागरिकों को देश से बाहर जाने से भी नहीं रोका जिसके परिणामस्वरूप कोरोना पूरी दुनिया में फ़ैल गया । हालांकि इस बात को साबित करना बेहद कठिन है कि कोरोना वायरस चीन द्वारा विकसित कर पूरी दुनिया में फैलाया गया लेकिन ये मान लेना सौ फीसदी सही है कि उसने इसकी जानकारी छिपाकर इसे विश्वव्यापी बना दिया और इस लिहाज से चीन और वहां के शासक एक तरह से पूरी मानवता के दुश्मन के तौर पर सामने आये हैं । यही वजह है कि कोरोना का कहर झेलने के साथ ही दुनिया भर ने चीन से अपने - अपने तरीके से दूरी बनाना शुरू कर दिया । और यहीं से भारत के लिए 2021 को अपार संभावनाओं वाले साल के तौर पर देखा जाने लगा है । 2020 का तीन चौथाई समय कोरोना की बलि चढ़ गया । अनेक महीनों तक पूरा देश ठहराव की स्थिति में रहने मजबूर था । वे दिन अनगिनत दर्दनाक और डरावनी यादें छोड़कर चले गए किन्तु उसके बाद देश ने नए उत्साह और ऊर्जा के साथ जि़न्दगी को पटरी पर लौटाने का जो पुरुषार्थ प्रदर्शित किया वही इस देश की प्रबल इच्छाशक्ति का परिचायक है । हालांकि अभी भी धुंध पूरी तरह छंटी नहीं है लेकिन उसके पीछे से आ रही रश्मियाँ उत्साहित भी कर रही हैं । भारत मनीषियों और तपस्वियों की पुण्य भूमि है और उन्हीं में से दो स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविन्द ने पिछली शताब्दि में ही ये भविष्यवाणी कर दी थी कि 21 वीं सदी भारत की होगी और उसकी गौरव पताका एक बार फिर पूरे विश्व में फहरायेगी । उक्त महापुरुषों ने आध्यात्म के क्षेत्र में रहकर भी पराधीन भारत की पीड़ा को महसूस करते हुए अपने तपोबल से भविष्य को देखकर आशाओं का जो दीप जलाया था उसका प्रकाश अब देश की सीमाओं से निकलकर समूचे विश्व को आलोकित करने की स्थिति में आ गया है । 2021 का प्रथम दिवस सही मायनों में संकल्प करने का अवसर है । बीते साल की अकल्पनीय परेशानियों से उबरकर प्रयासों की पराकाष्ठा अपेक्षित भी है और आवश्यक भी । और इसके लिए समन्वित प्रयास और भावनात्मक एकता सबसे बड़ी जरूरत है । लोकतान्त्रिक देश होने से हमारे यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है । लेकिन दूसरी तरफ ये भी ध्यान रखना होगा कि वैचारिक स्वतंत्रता का उपयोग जनहित में हो न कि निजी स्वार्थों के लिए । उस दृष्टि से 2021 को राष्ट्रीय पुनरुत्थान का वर्ष बनाना हम सभी का दायित्व है । विश्व गुरु बनने के लिए जरूरी है कि हमारा आचरण भी गुरुवत हो ।
21 वीं सदी का 21 वां वर्ष भारत और उसमें रहने वालों के लिए हर दृष्टि से मंगलकारी हो यही प्रभु से प्रार्थना है ।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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