Thursday 31 December 2020

अंतत: बात ले - देकर ही बनेगी



किसान संगठनों के साथ केंद्र सरकार की बातचीत में गत दिवस जिन दो बिन्दुओं पर सहमति बनी वे आन्दोलन की मुख्य मांगें भले न हों लेकिन इसका सुखद पहलू ये है कि संवादहीनता खत्म हुई। सरकार की ओर से आये  दोनों मंत्रियों ने किसानों के साथ उनके लंगर में भोजन कर कूटनीतिक चतुराई दिखाई जो ऐसे मामलों में खाई पाटने में सहायक बनती है। बहरहाल पराली जलाने पर लगने वाला जुर्माना और बिजली को लेकर आने वाले नए प्रावधान के बारे में सरकार के आश्वासन के बाद भले ही किसानों ने आज की ट्रैक्टर रैली रद्द कर दी लेकिन तीनों कानून वापिस लेने के साथ ही एमएसपी को कानूनी शक्ल दिए बिना समझौता न करने की जिद अभी भी बनी हुई है। यद्यपि कल की बातचीत काफी सौहार्द्रपूर्ण माहौल में हुई बताई जा रही है किन्तु सरकार की तरफ से उक्त दोनों मुद्दों पर समिति बनाये जाने के प्रस्ताव को किसान संगठनों ने एक बार फिर खारिज कर दिया। लेकिन जैसी खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि किसान संगठनों में आन्दोलन को लम्बा खींचने के सवाल पर एक राय नहीं बन पा रही। सरकार को उम्मीद है 4 जनवरी की बैठक तक किसान नेताओं के रुख में और लचीलापन आयेगा जिससे गतिरोध दूर करना आसान हो जाएगा। हालाँकि क्या होगा ये आज कह पाना कठिन है क्योंकि किसानों के संगठनों में अलग-अलग मानसिकता के लोग हैं और सभी की ताकत एक जैसी नहीं हैं। ये भी सही है कि किसी आन्दोलन को अनिश्चितकाल तक खींचने से उसका असर घटने लगता है। पंजाब और हरियाणा में कुछ समय बाद  ही रबी फसल पकने की स्थिति बनने लगेगी और तब किसान भी खेतों में लौटने को बेताब होने लगेंगे। एमएसपी को लेकर भले ही किसान संगठनों और सरकार के बीच बात न बन पाई हो लेकिन सच्चाई ये है कि खरीफ फसल की सरकारी खरीद जमकर हुई जिसका लाभ पंजाब और हरियाणा के किसानों को भी मिला। इसी तरह रबी फसल को खरीदने के लिए भी सरकारी तैयारियां शुरू हो गईं हैं। ऐसे में किसानों को दिल्ली में रोके रखना आसान नहीं होगा। यही वजह है कि अपनी मुख्य मांगों पर अड़े रहने के बावजूद किसानों ने न सिर्फ सरकार का न्यौता स्वीकार कर बातचीत में हिस्सा लिया बल्कि पिछली बैठकों की  अपेक्षा शांत भी रहे। दूसरी तरफ वार्ताकार बनकर आये दोनों मंत्रियों ने भी लंगर में ही आहार ग्रहण किया और उस दौरान भी वातावरण खुशनुमा रहा। आगे की बैठकों में दोनों पक्ष और आगे बढ़ेंगे ये उम्मीद कल की बातचीत के बाद बढ़ गयी  है। जहां तक सरकार का पक्ष है तो एक बात साफ़ है कि वह तीनों कानून वापिस लेने की शर्त पर बात आगे बढ़ाने को राजी शायद ही हो। ऐसे में संभावना यही है कि एक समिति बनाकर समझौते के बिंदु तय किये जायेंगे। आगामी सप्ताह तक सर्वोच्च न्यायालय का अवकाश भी खत्म हो जायेगा और हो सकता है वह उसके समक्ष विचाराधीन याचिका पर ये निर्देश सरकार और किसान संगठनों को दे कि फि़लहाल कानूनों पर अमल स्थगित किया जाये और समिति बनाकर किसी निष्कर्ष तक पहुँचने तक आन्दोलन भी ठंडा  रखा जाये। ऐसे मामलों में परदे के पीछे भी बहुत कुछ चलता है। पंजाब सरकार को भी  लगने लगा है कि आन्दोलन के बेनतीजा जारी रहने का असर राज्य की  अर्थव्यवस्था के साथ ही कानून-व्यवस्था पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा। ऐसे में यदि 4 जनवरी की बातचीत में युद्धविराम की स्थिति बन जाये तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्ष जाहिर तौर पर भले अपनी बात पर अड़े रहने का एहसास करवा रहे हैं किन्तु भीतर से उन्हें भी ये महसूस हो रहा है कि ले-देकर ही बात बनेगी। दिल्ली वासियों के साथ ही पूरा देश इस गतिरोध के शांतिपूर्ण हल की प्रतीक्षा कर रहा है। बीत रहे साल से जुड़ी कड़वी यादें नए साल में साथ न रहें ये चाहत हर किसी की है। ऐसे में बेहतर तो यही  होगा कि हठधर्मिता त्यागकर व्यापक संदर्भ में चीजों को देखते हुए ऐसा निर्णय हो जो तात्कालिक लाभ की बजाय  दूरगामी फायदों का आधार बने ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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