Tuesday 15 December 2020

किसानों की आड़ में अपनी फसल काट रहे कैप्टेन और केजरीवाल




किसान आन्दोलन को राजनीति से दूर रखने की किसान संगठनों की कोशिश कितनी वास्तविक है ये तो वे ही जानें किन्तु सियासत के दूकानदार आन्दोलन को भुनाने का  हरसंभव जतन कर रहे हैं। विगत दिवस किसान आन्दोलन के अंतर्गत एक दिन के उपवास का आयोजन किया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी अपने मंत्रीमंडल के साथियों सहित किसानों के समर्थन में एकदिवसीय उपवास रखा। इसके पहले भी वे दलबल सहित धरना स्थल पर सेवादार के रूप में हो आये थे। आम आदमी पार्टी ने वहाँ चाय - नाश्ते के लिए स्टाल भी लगाया किन्तु वह खाली पड़ा रहा। किसानों की हमदर्दी हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री जी किसानों को बता आये कि केंद्र सरकार ने उनसे दिल्ली के कुछ स्टेडियमों को खुली जेल के रूप में तब्दील करने कहा था लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। ये सब करने के पीछे उनका मकसद हरियाणा और पंजाब में अपनी पार्टी की जड़ें जमाना है जिसमें वे पूरी कोशिशों के बावजूद अब तक सफल नहीं हो सके। उल्लेखनीय है केजरीवाल जी हरियाणा के ही रहने वाले हैं। बतौर राजनेता उनकी उक्त गतिविधियाँ बेहद सामान्य और अपेक्षित कही जायेंगी किन्तु उनके किसान प्रेम पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने जो टीका - टिप्पणी की उसके बाद दोनों के बीच आरोप - प्रत्यारोप का आदान - प्रदान होने लगा। दरअसल अमरिंदर सिंह की परेशानी का कारण ये है कि जिस किसान आन्दोलन को उन्होंने खड़ा करने के बाद दिल्ली निर्यात कर दिया उस पर पहले तो अकाली दल ने अतिक्रमण कर लिया और बाद में योगेन्द्र यादव सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर आन्दोलन के अघोषित सलाहकार बन बैठे जिसके चलते जेएनयू और जामिया मिलिया से जुड़े तत्वों ने भी उसमें घुसपैठ कर ली। अरविन्द केजरीवाल को भी ये इसलिए नहीं पच रहा क्योंकि उनकी सत्ता के दरवाजे पर हो रहे आन्दोलन में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है और आम आदमी पार्टी से धक्के मारकर निकाले गए योगेन्द्र यादव किसानों के रणनीतिकार बनकर प्रतिष्ठित हो गये। सो उन्होंने उपवास के जरिये किसानों के मन में जगह कब्जाने की कोशिश की लेकिन उनका ये दांव चंडीगढ़ में बैठे कैप्टेन को नागवार गुजरा और उन्होंने बिना देर लगाये केजरीवाल को कायर बताकर उनके उपवास को ढोंग निरुपित करते हुए आरोप लगाया कि जिन कृषि कानूनों के विरोध में श्री केजरीवाल ने उपवास रखा उनमें से ही एक को  आम आदमी पार्टी की सरकार अधिसूचित कर चुकी है। कैप्टेन यहीं नहीं रुके और श्री केजरीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें अपने उद्देश्य पूरे करने हों तो वे अपनी आत्मा तक बेच देते हैं। दरअसल अमरिंदर सिंह को इस बात का एहसास है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में अपने पांव ज़माने की पुरजोर कोशिश कर रही है। कैप्टेन के इस तीखे हमले से तिलमिलाये अरविन्द भी कहाँ पीछे रहते। इसलिए वे भी उन पर दाना - पानी लेकर चढ़ बैठे और आरोप लगाया कि कैप्टेन ने अपने बेटे के विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय की जांच को ठंडा करने के लिए किसान आन्दोलन को बेच दिया। यहीं नहीं तो श्री केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री को कृषि कानूनों के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि ये उनका राष्ट्र को उपहार है क्योंकि जिस समिति ने इन कानूनों का मसौदा तैयार किया था उसमें वे भी सदस्य थे। उधर अमरिंदर सिंह का आरोप है कि दिल्ली में कोरोना के कहर से निपटने के लिए केजरीवाल सरकार को केंद्र की बैसाखी चाहिए और इसीलिये कृषि कानून को वहां अधिसूचित किया गया। इस प्रकार किसान आन्दोलन के दो पक्षधर मुख्यमंत्रियों के बीच चल पड़ी तू - तू , मैं - मैं से बहुत सी अनकही बातें सामने आ गयी हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के बाद अमरिंदर सिंह का आन्दोलन से पंजाब की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न होने जैसा बयान चौंकाने वाला था। इसी तरह केजरीवाल सरकार द्वारा कृषि कानून को अधिसूचित करने के बाद उसका विरोध भी दोहरे मापदंड का प्रमाण है। कृषि कानूनों के प्रारूप को तैयार करने वाली समिति में अमरिंदर की मौजूदगी का खुलासा करते हुए अरविन्द ने उन पर अपने बेटे को जाँच से बचाने के लिए आन्दोलन को बेचने जैसा आरोप- लगाकर ये साबित कर दिया कि किसानों के हमदर्द बनने का दावा कर रहे नेतागण मगरमच्छों के आंसू वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। किसानों को ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि कृषि कानून बनाने वाली समिति में कैप्टेन के साथ ही हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा भी थे जो इन दिनों किसानों के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के विरोध में तो झंडा उठा लिया लेकिन उन्हें अब कैप्टेन अमरिंदर सिंह और अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाये गए आरोप - प्रत्यरोप का भी संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि दोनों तो गलत नहीं हो सकते। किसान संगठनों के सामने भी ये दुविधा है कि बिना राजनीतिक पार्टियों का समर्थन लिए वे आन्दोलन को व्यापक रूप नहीं दे सकेंगे वहीं दूसरी ओर ये खतरा भी है कि राजनेताओं के उनके मंच पर आने के बाद वही सब होगा जो कैप्टेन और केजरीवाल के बीच हो रहा है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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