Wednesday 2 December 2020

आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए उद्योग-व्यापार को अधिकतम रियायत मिले




दिल्ली में हो रहे किसान आन्दोलन के बीच ये अच्छी खबर है कि आर्थिक मोर्चे पर कोरोना का असर लगातार घट रहा है। नवम्बर महीने में जीएसटी की वसूली 1 लाख 5 हजार करोड़ का आँकड़ा छू गई। इसी के साथ ये खबर भी आ गई कि अर्थव्यवस्था को लेकर व्यक्त्त की गईं  तमाम आशंकाओं और अटकलों के बावजूद शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों को छूता जा रहा है। घरेलू उत्पादन के साथ ही निर्यात में भी आशाजनक वृद्धि डूबती उम्मीदों को सहारा दे रही है। यही वजह है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के ऋणात्मक रहने की तमाम संभावनाओं के बाद भी हालात उतने बुरे नहीं हैं जितने लॉक डाउन की अवधि के दौरान लग रहे थे। उससे भी बड़ी बात ये है कि आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 में विकास दर में रिकॉर्ड उछाल आने की बात न सिर्फ  भारतीय वरन वे विदेशी संस्थान भी करने लगे हैं जो अब तक ये कहते आये थे कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना काल में हुए नुकसान से उबरने में कम से कम चार साल लगेंगे। लॉक डाउन के दौरान निर्माण और उत्पादन इकाइयों में काम ठप्प होने के कारण बेरोजगारी की जो स्थिति थी उसमें भी आशातीत सुधार होने से उत्साहजनक वातावारण बनने लगा है। आर्थिक मंदी के बावजूद लॉक डाउन के बाद ज्योंही बाजार गुलजार हुए त्योंही ऑटोमोबाइल क्षेत्र में जबर्दस्त मांग और बिक्री देखने मिली जिसके कारण अन्य क्षेत्र भी निराशा से उबरकर मैदान में कूदे जिसका सकारात्मक प्रभाव दशहरा-दीपावली के दौरान त्यौहारी माहौल में देखने मिला और आशा के विपरीत उपभोक्ता बाजार भरे-भरे नजर आये। जीएसटी वसूली के ताजा आँकड़े भी उसी का परिणाम हैं। इस सबके बीच उत्साहवर्धक बात ये रही कि चीन से आने वाली छोटी-छोटी उपभोक्ता वस्तुओं के आयात में प्रभावी कमी आई है। केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में किए गए उपायों का घरेलू  उद्योगों पर बहुत ही अच्छा असर हुआ जिससे चीन के साथ व्यापार संतुलन थोड़ा ही सही लेकिन सुधरा। ऑनलाइन कारोबार और पढ़ाई के कारण कम्प्यूटर और मोबाईल की बिक्री ने भी कीर्तिमान स्थापित कर दिए। दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञों ने भारत को लेकर अपनी जो राय बदली उसका सबसे प्रमुख कारण है कोरोना से लड़ने में मिली सफलता। विश्व के विकसित देशों में कोरोना से जिस बड़े पैमाने पर जनहानि हुई उसकी तुलना में 138 करोड़ की आबादी वाले भारत का कोरोना प्रबंधन चिकित्सा क्षेत्र में अनगिनत कमियों के बावजूद बहुत अच्छा रहा। यहाँ तक कि दूसरी लहर के आगमन के बाद भी कोरोना के नए मामलों और स्वस्थ होने वालों का अनुपात पूरी तरह से नियन्त्रण में बना हुआ है। इसी के साथ ही कोरोना की वैक्सीन विकसित करने में भारत को मिली सफलता और केंद्र सरकार द्वारा जनता को उसकी उपलब्धता शीघ्रातिशीघ्र कराए जाने की तैयारियां शुरू किये जाने से पूरी दुनिया के निवेशकों को भारत में अपार संभावनाएं नजर आने लगी हैं। और मौजूदा तिमाही में जापान के बाद भारत उन सात एशियाई देशों में दूसरे स्थान पर है जहां सबसे ज्यादा विदेशी निवेश आया। कोरोना वायरस के फैलाव को लेकर दुनिया भर में खलनायक बन चुके चीन पर से निवेशकों का जो भरोसा डगमगाया उसका सर्वाधिक लाभ भारत को मिलने की उम्मीदें लगातार मजबूत होती जा रही हैं। शुरुवात में लगा था कि वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया और इन्डोनिशिया भारत की तुलना में निवेशकों को ज्यादा पसंद थे लेकिन धीरे-धीरे स्थिति स्पष्ट होती जा रही है और जापान के बाद अब भारत के बाजार में विदेशी पूंजी का प्रवाह अनवरत जारी है। कोरोना वैक्सीन के उत्पादन और वितरण को लेकर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से व्यक्तिगत रूचि लेते हुए आगे की योजना पर काम कर रहे हैं उससे भी आर्थिक क्षेत्र में आशाओँ का संचार हो रहा है। लेकिन दीपावली और विवाह सीजन के बाद बाजार में मांग कैसी रहेगी इस पर काफी कुछ निर्भर होगा। खरीफ  फसल में अच्छी पैदावार के बाद अगर रबी सीजन की फसलें भी आशानुरूप आ गईं तब निश्चित रूप से उपभोक्ता बाजार में बहार आयेगी। कोरोना के पहले से ही अर्थव्यस्था मंदी का शिकार थी और लॉक डाउन ने दूबरे में दो आसाढ़ वाले हालात बना दिए किन्तु अब ऐसा लगने लगा है कि नुकसान उतना नहीं हुआ जितनी आशंका व्यक्त की जा रही थी परन्तु पूरा दारोमदार इस बात पर निर्भर करेगा कि कोरोना की दूसरी लहर को काबू में रखने के साथ ही वैक्सीन जल्द से जल्द जरूरतमंदों तक पहुंचे और उस काम में अव्यवस्था न हो। आपदा में अवसर की जो बात प्रधानमन्त्री ने शुरू में ही कही थी वह वास्तविकता में बदल सकती है। लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को भी चाहिए कि वे उद्योग-व्यापार को जितनी रियायत दे सकें उतनी दें क्योंकि ये सही समय है जब हम वैश्विक बाजारों में चीन को टक्कर देकर आर्थिक महाशक्ति बन सकते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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