Friday 25 December 2020

भारतीय खाद्यान्न का निर्यात अगली क्रांति कर सकता है



कुछ समय पहले केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो बड़ा चर्चित हुआ जिसमें उन्होंने भारतीय कृषि के उत्थान के लिए बड़े ही व्यवहारिक सुझाव दिए थे। उनके अनुसार किसानों को बदलते समय की जरूरतों के मुताबिक अपने उत्पादों का चयन करना चाहिए जिससे वे ज्यादा कमाई करने के साथ ही मांग और पूर्ति के अर्थशास्त्रीय सिद्धांत से बंधने की बजाय अपने उत्पाद को बेचने के लिए स्वतंत्र और स्वायत्त हों। उल्लेखनीय है श्री गडकरी ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करते हुए किसानों को मजबूर के बजाय मजबूत बनाने के लिए काफी काम किया जिसके अच्छे परिणाम भी आये। उनका कहना है कि खेती को ढर्रे से निकालकर बहुमुखी बनाए बिना किसान की आय बढ़ाना असंभव है। भारत में साल दर साल अन्न का उत्पादन तो बढ़ रहा है लेकिन वह मुख्यत: गेंहू और धान पर केन्द्रित होने से इनका तो अतिरिक्त उत्पादन होता है जबकि दलहन और तिलहन का उत्पादन हमारी जरूरतों के अनुसार न होने से उनका आयात किया जाता है। खाद्य तेल में मिलावट के पीछे भी यही कारण है। दूसरी बात जो श्री गडकरी ने कही वह ये कि हमारे देश में रिकॉर्ड कृषि उत्पादन का लाभ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को तभी हो सकता जब उसे गोदामों में सड़ाने की बजाय निर्यात करें। उल्लेखनीय है भारत दुनिया में खाद्यान्न पैदा करने वाला अग्रणी देश बन जाने के बाद भी निर्यात के क्षेत्र में काफी पीछे है। दूसरी तरफ सरकारी गोदामों में जो भण्डार है वह आने वाले दो से तीन साल तक घरेलू जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। एक समय था जब भारत में खाद्यान्न की मारामारी थी और हमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कैनेडा से गेंहू मंगवाकर राशन दुकानों के माध्यम से बंटवाना पड़ता था। लेकिन सत्तर के दशक में हरित क्रांति के माध्यम से आत्मनिर्भरता का लक्ष्य पूरा करने के साथ ही घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद बचा खाद्यान्न सरकारी खरीद के जरिये सुरक्षित अन्न भंडार के तौर पर गोदामों में रखा जाने लगा। इसका प्रत्यक्ष लाभ इस वर्ष कोरोना के कारण लगाये गये लम्बे लॉक डाउन के समय देखने मिला जब केंन्द्र सरकार ने गरीबों को मुफ्त और सस्ता खाद्यान्न देकर देश को अराजकता से बचा लिया। श्री गडकरी ने अपने संदर्भित वक्तव्य में इस ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि न केवल किसान अपितु सरकार के लिए भी ये जरूरी है कि अनाज के निर्यात के लिए ठोस प्रयास किये जाएं जिससे किसान को उसकी मेहनत और सरकार को उसके निवेश का समुचित लाभ मिलने के साथ ही दलहन और तिलहन के आयात के कारण बनने वाले व्यापार असंतुलन की  स्थिति को सुधारा जा सके। श्री गडकरी ने किसानों को जैव ईंधन के उत्पादन सम्बन्धी जो सुझाव दिए वे खेती के लिए क्रांतिकारी हो सकते हैं। हाल ही में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिवर्ष गोदामों में उचित रखरखाव के अभाव में सड़ने वाले अनाज की जो कीमत बताई वह आँखें खोल देने वाली है। यदि उसे रोका न गया तब किसान की तरह सरकार की लिए भी अनाज की खरीदी बड़े घाटे का कारण बनती जायेगी। लेकिन निर्यात के क्षेत्र में हमारे कदम तभी आगे बढ़ सकते हैं जब उत्पादों की गुणवत्ता और पैकिंग वगैरह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो। भारतीय उद्योग जगत इस कार्य में जिस तरह रूचि लेने लगा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आगामी कुछ वर्षों के भीतर भारत अनाज के सबसे बड़े उत्पादक के साथ ही निर्यातक भी बन सकेगा। कोरोना काल में चीन ने हमारे चावल को बड़ी मात्रा में खरीदा और ताजा समाचार के अनुसार बांग्ला देश से भी चावल का बड़ा ऑर्डर मिला है। वैश्विक मांग को देखते हुए भारत ने थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे बड़े चावल निर्यातक देशों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों का प्रस्ताव देकर निर्यात के क्षेत्र में जिस तरह कदम आगे बढ़ाये वह एक शुभ संकेत है। परम्परागत किसानी से अलग उच्च और पेशेवर शिक्षा प्राप्त युवाओं का एक वर्ग उन्नत कृषि के उद्देश्य से मैदान में उतरा है जिसे घरेलू और वैश्विक बाजार के माहौल के साथ मांग सम्बंधी सम-सामयिक जानकारी रहती है। भारतीय कृषि में वैल्यू एडिशन की जो जरूरत है उसे पूरा करने के अपेक्षा इस वर्ग से है। मौजूदा किसान आन्दोलन का क्या अंजाम होगा ये अलग विषय है लेकिन इस बहाने भारतीय कृषि में समयानुकूल सुधारवादी बदलाव की जरूरत को समझकर तद्नुसार फैसले लेने की जरूरत है। ये मानकर चलना भी गलत न होगा कि इस आन्दोलन के माध्यम से जो वैचारिक मंथन हो रहा है उसमें अमृत रूपी जो तत्व निकलेगा वह भारत के किसानों को स्वर्णिम भविष्य की ओर ले जा सकता है। समय आ गया है जब किसानों की आय को केवल दोगुना ही क्यों कई गुना बढ़ाने के प्रकल्प तैयार हों। लेकिन उसके लिए किसानों को भी ढर्रे से निकलकर कुछ खतरे उठाने होंगे। हरित क्रांति ने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया लेकिन अब अगली क्रान्ति किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए होनी चाहिए जिसके लिए नितिन गडकरी जैसे व्यवहारिक राजनेता के विचारों पर अमल करना लाभदायक हो सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment