Saturday 19 December 2020

मुसलमानों में व्याप्त नेतृत्व शून्यता का लाभ उठा रहे ओवैसी



बिहार चुनाव के बाद  नीतीश कुमार और भाजपा की सरकार बनने के अलावा  राजद के  सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने से ज्यादा चर्चा एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी की हो रही है | यद्यपि उनकी पार्टी ने  सीटें तो महज 5 हासिल कीं लेकिन मुस्लिम बहुल सीमांचल के इलाके में उनके कारण  राजद और कांग्रेस दोनों को काफी नुकसान हो गया जिसकी वजह से नीतीश सत्ता में लौट आये वरना सत्ता विरोधी लहर जिस तरह महसूस की जा रही थी उससे ज्यादातर  विश्लेषक मान बैठे थे कि लालू पुत्र तेजस्वी का  बिहार की राजनीति में एक नए नक्षत्र के तौर पर उभरना तय है | वैसे भी  दो चार सीटें इधर - उधर हो जातीं तो पांसा पलट सकता था | सही मायने में  ओवैसी ने महागठबंधन के हाथ से जीत छीन ली | और उसी के बाद से उन पर ये आरोप बहुत ही सामान्य  हो चला कि वे भाजपा की बी टीम हैं | लेकिन इससे  विचलित हुए बिना ओवैसी ने  बिना समय गंवाए बंगाल और उप्र विधानसभा के आगामी चुनाव में हाथ आजमाने की घोषणा करते हुए तैयारियां शुरू कर दीं | उल्लेखनीय है उक्त दोनों राज्यों में ही मुस्लिम आबादी औसतन 25 फीसदी बाताई जाती है | लेकिन उसमें भी महत्वपूर्ण ये है कि अनेक विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम एकजुट हो जाएँ तो दूसरा कोई जीत ही नहीं सकता | एक जमाना था जब मुसलमान कांग्रेस के अलावा और किसी को देखते तक न थे परन्तु 1977 के चुनाव में उन्होंने पहली बार कांग्रेस से दूरी बनाई और उसके बाद धीरे - धीरे जो क्षेत्रीय पार्टियाँ उभरीं उन्होंने भी मुस्लिम तुष्टीकरण के फार्मूले को अपनाया जिसके कारण मुसलमानों  पर कांग्रेस का एकाधिकार घटता चला गया | राष्ट्रीय राजनीति को सर्वाधिक  प्रभावित करने वाले  सबसे बड़े  राज्य उप्र में उनको मुलायम सिंह यादव ने आकर्षित कर लिया तो बिहार में लालू यादव ने पकड़ बना ली | बंगाल में वे पहले वामपंथी दबाव में रहे और फिर  ममता बैनर्जी के प्रभाव में चले गये | इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही हुआ | आजादी के बाद से लम्बे समय तक दलित और मुस्लिम मतदाता उसके सबसे विश्वसनीय समर्थक थे | लेकिन कालान्तर में दलितों को कांशीराम ने बसपा के साथ जोड़ा वहीं मुसलमान भी भाजपा विरोधी  क्षेत्रीय पार्टियों के साथ जाने लगे | उधर नब्बे के दशक से भाजपा ने खुलकर हिंदुत्व का जो झंडा उठाया  उसकी वजह से वह मुख्यधारा की पार्टी बनते - बनते कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़ी पार्टी बन बैठी | सबसे प्रमुख बात ये रही कि नरेंद्र मोदी के परिदृश्य में आने के बाद केवल मुस्लिमों और ईसाइयों को छोडकर भाजपा ने सभी जातियों और वर्गों में अपनी पैठ बना ली | उप्र में जिस तरह उसने सपा और बसपा के गठबंधन को धराशायी किया वह छोटी बात नहीं थी | लेकिन बीते कुछ सालों में सबसे ज्यादा नुकसान  मुसलमानों का हुआ जो भाजपा विरोध की राजनीति में फंसकर  पूरी तरह किनारे हो गए | संसद और विधानसभाओं में उनकी संख्या में जिस तेजी से गिरावट आई उसने उनके बीच ये भाव पैदा किया कि वे  अनाथ हो चले हैं  | भाजपा के तेज प्रवाह को रोकने के लिए धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली तमाम पार्टियाँ भी जब  हिंदुत्व का चोला ओढ़ने का स्वांग रचने लगीं तब मुसलमान ठगे से रह गए | बीते छः साल में मोदी सरकार द्वारा उठाये गये कई कदम मुस्लिम समाज को नागवार गुजरे लेकिन कांग्रेस , सपा , राजद और ऐसी ही अन्य पार्टियाँ जो उनके मतों के सहारे ही फली - फूलीं उनकी सहायता करने में असफल रहीं जिसका लाभ उठाते हुए ओवैसी मुस्लिम समुदाय के प्रवक्ता  बन बैठे और देखते - देखते हैदराबाद की सीमा से निकलकर पहले बिहार और अब बंगाल तथा  उप्र में  फैलाव  की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं | बंगाल में उन्होंने मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए ममता बैनर्जी की नींद उड़ा दी  जिन्होंने ओवैसी पर  भाजपा से पैसे लेकर उम्मीदवार खड़े करने का आरोप लगा दिया | जवाब में ओवैसी ने डींग हाँकी कि दुनिया का अमीर से अमीर इन्सान भी उन्हें खरीद नहीं सकता | गत दिवस लखनऊ आकर ओवैसी ने उप्र में पिछड़े वर्ग के नेता ओमप्रकाश राजभर और मुलायम सिंह यादव के अनुज शिवपाल यादव से मुलाकात कर गठबन्धन की संभावनाएं टटोलीं | सही बात ये है कि धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करने वाली पार्टियों ने मुसलमानों का लम्बे समय तक भयादोहन करते हुए उन्हें मुख्यधारा से अलग रखने का जो दांव चला वह उन्हें अब जाकर समझ आने लगा है | ओवैसी ने इसे लपक लिया और मुसलमानों की आवाज बनकर पहले संसद और अब पूरे देश में उनके एकछत्र नेता बनने की महत्वाकांक्षा के साथ सक्रिय हो उठे | मुल्ला  - मौलवियों से अलग ओवैसी का अंदाज पढ़े - लिखे नेता का है | वे टीवी चैनलों की बहस में बिना चिल्लाये अपनी बात रखते हैं | संविधान की दुहाई भी बात - बात में देना नहीं  भूलते | अभी तक उनकी सियासत हैदराबाद की पुरानी निजामशाही के  साथ ही महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल तक सीमित  थी किन्तु बिहार के नतीजों ने उनका हौसला बुलंद कर दिया है | उन्हें ये भी दिख गया है कि धर्मिक नेताओं में मुस्लिम समुदाय का भरोसा पहले जैसा नहीं  रहा जो  मस्जिदों और धार्मिक जलसों में ही सिमटे होने से अपना प्रभाव गंवाते जा रहे हैं | वैसे ओवैसी बिहार रूपी प्रवेश परीक्षा में तो सफल हो गए लेकिन बंगाल में उनका पहला बड़ा इम्तिहान होगा जो मुस्लिम राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है | यदि वे वहां मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब हो गए तब फिर उप्र में उनकी कोशिशें रंग  ला सकती हैं | हालाँकि सपा मुसलमानों को आसानी से हाथ से जाने देगी ये मान लेना जल्दबाजी होगी लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान में देश का मुस्लिम समुदाय राजनीतिक दृष्टि से नेतृत्वविहीन है जिसका लाभ उठाकर ओवैसी  अपने पैर फैलाने की सोच रहे हैं | इस मुहिम में वे कितने कामयाब हो पाएंगे इसका आकलन फिलहाल तो करना जल्दबाजी होगी लेकिन इतना  तो कहा ही जा सकता है कि उनका उत्थान कांग्रेस के  साथ ही अनेक दूसरी पार्टियों के नुकसान का कारण बने बिना नहीं रहेगा जो मुसलमानों को अपना बंधुआ समझती थीं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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