Thursday 10 December 2020

खुद को किसान कहने वाले सांसद - विधायक इस्तीफा क्यों नहीं दे रहे



गत दिवस सरकार द्वारा भेजे गये संशोधन प्रस्तावों को सिरे से ख़ारिज करने के बाद  किसान संगठनों ने देश भर में धरना , प्रदर्शन करने के साथ ही अम्बानी और अडानी के उत्पादनों तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के बहिष्कार की घोषणा के साथ ही  भाजपा नेताओं के घेराव की चेतावनी भी दे डाली | किसान नेताओं को ये बात नागवार गुजर रही है कि सरकार भले ही  कृषि कानूनों में कतिपय सुधार और संशोधनों के लिए राजी हो गई  हो लेकिन उनको रद्द  करने से  उसने साफ़ इंकार कर दिया है और ऐसे  में आन्दोलन को वापिस लेने अथवा उसकी आक्रामकता  कम कर देने से  किसान समुदाय के बीच उनकी  विश्वसनीयता संकट में पड़ जायेगी  | गत दिवस केन्द्रीय मंत्रीपरिषद की बैठक के बाद प्रकाश जावड़ेकर ने पत्रकार वार्ता में सरकार के रवैये को दोहराते हुए आश्वस्त किया कि नये कानूनों को लेकर किसानों को भ्रमित किया गया है | इस प्रकार  सुलह की सम्भावना धूमिल होती नजर आने लगी है |  राजनीतिक नेताओं और पार्टियों को दूर रखने की नीति पर चल रहे किसान संगठनों द्वारा  भाजपा नेताओं का घेराव करने के निर्णय के बाद अब आन्दोलन को राजनीतिक होने से रोकना उनके लिए भी मुश्किल हो जाएगा क्योंकि पंजाब में भले न हो लेकिन हरियाणा , उत्तराखंड , राजस्थान , मप्र , उप्र , गुजरात , छतीसगढ़ जैसे राज्यों में किसानों के बीच भाजपा की भी अच्छी खासी पकड़ है  | इसका ताजातरीन प्रमाण राजस्थान में हुए पंचायत  समितियों तथा जिला परिषद के चुनाव परिणामों में भाजपा को मिली जबरदस्त सफलता है जिसने  ये संकेत तो दे ही दिया कि  आन्दोलन अलग विषय है और किसानों की राजनीतिक प्रतिबद्धता अलग | ऐसे में  भाजपा नेताओं के घेराव जैसे आयोजन हुए तब किसानों के बीच ही इसे लेकर मतभेद उभर सकते हैं जिससे आन्दोलन कमजोर होने की आशंका  बढ़ेगी | बेहतर हो आंदोलनकारी विभिन्न पार्टियों के उन सांसदों और विधायकों का घेराव करते हुए कृषि कानूनों के विरोध  में उनसे स्तीफा देने को कहें जिन्होंने चुनाव नामांकन पत्र में अपना व्यवसाय कृषि दर्शाया था | उल्लेखनीय है खेती की आड़ में काले धन को सफेद करते हुए आयकर बचाने वालों में निर्वाचित्त  जनप्रतिनिधियों की संख्या सैकड़ों में है  | जिस दिल्ली की देहलीज पर किसान धरना दिए बैठे हैं उसके बाहरी इलाकों में दर्जनों सांसदों , मंत्रियों और भूतपूर्व सत्ताधारियों के अनेक  फॉर्म हॉउस हैं जिनकी तुलना किसी पांच सितारा रिसॉर्ट से की जा सकती  है |  खेती करने  का दिखावा करने वाले ऐसे नेताओं से पूछा  जाना चाहिए  कि उनकी राजशाही खेती में अनाप - शनाप कमाई कैसे होती है ? इसलिए  बेहतर होगा आन्दोलन के अगले चरण में किसानों द्वारा उन सांसदों और विधायकों का पर्दाफाश किया जावे जो कृषक होने के नाम पर असली किसान के अधिकारों पर अतिक्रमण कर लेते हैं | ऐसा करने पर उन्हें सही अर्थों में जनसहानुभूति और समर्थन हासिल हो सकेगा जिससे अब तक उनका आंदोलन काफी हद तक वंचित है | दरअसल किसान  संगठनों की सबसे बड़ी मुसीबत ये है कि वे कहने को तो  राजनीतिक दलों से दूरी बनाकर चलने का दावा आकर रहे हैं किन्तु विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल उनके पास आने का अवसर तलाश रहे हैं | गत दिवस राष्ट्रपति से पांच विपक्षी नेताओं की मुलाकात इसका प्रमाण है | वैसे भी योगेन्द्र यादव जैसे लोग जिस तरह से आन्दोलनकारियों के अघोषित सलाहकार बने हुए हैं उसके बाद किसान संगठनों का राजनीतिक दलों से परहेज गले नहीं उतरता क्योंकि श्री यादव का एजेंडा सर्वविदित है | यदि किसान संगठन अपने आन्दोलन को सही मायनों में गैर राजनीतिक साबित करना चाहते हैं तो उन्हें उन सभी सांसदों और विधायकों पर इस्तीफे का दबाव बनाना चाहिए जो खुद को किसान कहकर ग्रामीण जनता के वोट तो बटोरते हैं लेकिन किसानों के घावों पर मरहम लगाने में उनकी कोई रूचि नहीं है | अभी तक जो देखने मिला उसमें अकाली नेता  प्रकाश सिंह बादल द्वारा पद्म पुरस्कार के अलावा कुछ साहित्यकारों , कलाकारों और खिलाड़ियों ने उन्हें मिले सम्मान और पुरस्कार लौटने का ऐलान करते हुए खुद को किसानों का हमदर्द साबित करने का दांव चला है |  लेकिन खुद को किसान कहने वाले एक भी सांसद और विधायक ने इस  आन्दोलन के समर्थन में  अपनी सदस्यता छोड़ना तो दूर रहा उसकी धमकी तक नहीं दी | किसान संगठनों को ऐसे जनप्रतिनिधियों की खबर लेते हुए उन पर इस्तीफे का दबाव बनाना चाहिए | ऐसा करने से पता चल जावेगा कि वे असली किसान हैं या दिखावटी ?  किसान आन्दोलन अब ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जहां ज़रा सा दिशाभ्रम उसे भटकाव के ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर  देगा जहां से न आगे बढना संभव होगा  और न पीछे लौटना | 

-रवीन्द्र वाजपेयी



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