Wednesday 30 December 2020

तो पंजाब को भी बंगाल जैसा नुकसान उठाना पड़ेगा



कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आन्दोलन के अंतर्गत पंजाब   में निजी कम्पनी के मोबाईल टावरों को क्षतिग्रस्त किया जाना मूर्खतापूर्ण कदम है | आन्दोलनकारी मानते हैं कि नये कानून इस कंपनी को लाभ पहुँचाने के  लिए ही  बनाये गये हैं | यद्यपि राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने  आंदोलन का समर्थन करने के बावजूद  मोबाइल टावरों में तोड़फोड़ करने वालों के विरुद्ध अपराधिक मामले दर्ज करने के आदेश दिए लेकिन उसका खास असर नहीं  होता दिख रहा |  अब तक 1600  से ज्यादा टावरों के क्षतिग्रस्त होने से संचार सेवाओं पर बुरा असर पड़ रहा है | न सिर्फ मोबाइल फोन अपितु इंटरनेट  सुविधा बधित होने से विद्यार्थियों , व्यावसायिक और औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा बैंकिंग सेवा के साथ ही शासकीय कामकाज पर भी बुरा असर पड़ने की खबर है | कोरोना काल में लाखों लोग इन्टरनेट के जरिये घर बैठे काम कर  रहे हैं | वहीं विद्यालय , महाविद्यालय से लेकर तो विश्वविद्यालय भी  ऑन लाइन पढ़ाई करवा रहे हैं | आर्थिक लेनदेन  नगदी के साथ ही डिजिटल होने से इन्टरनेट की  अनिवार्यता बढ़ गई है | यही वजह है कि अमरिंदर सिंह ने  फ़ौरन मोबाइल टावरों को नुकसान पहुँचाने  वालों के विरुद्ध कानून कार्रवाई के आदेश दिए  | हालाँकि ये  स्पष्ट नहीं है कि इस बारे में उनकी सरकार कितनी ईमानदार है क्योंकि वे आन्दोलनकारी किसानों से  सीधे पंगा लेने से भी बच रहे हैं | आन्दोलनकारियों  की मांगें और तौर - तरीके किस हद तक उचित हैं ये अलग विषय है लेकिन मोबाइल टावरों को क्षति पहुँचाने जैसी हरकत का दूरगामी नुकसान समूचे पंजाब को उठाना पड़ सकता है | इस बारे में बंगाल का उदाहरण सबसे सटीक है | ब्रिटिश काल से ही कोलकाता औद्योगिक दृष्टि से काफी विकसित रहा | आजादी के बाद भी उसकी वह स्थिति जारी रही किन्तु ज्योंही वहां वामपंथी शासन आया उसके बाद से औद्योगिक इकाइयों को परेशान किया जाने लगा | नक्सली आन्दोलन ने ने बची - खुची कसर पूरी कर दी | नतीजा ये निकला कि नए उद्योग तो  आना बंद हुए ही पहले से कार्यरत इकाइयों ने भी अपना कारोबार समेटना शुरू कर दिया | वामपंथियों की विध्वंसकारी नीतियों के कारण कोलकाता सहित पूरे राज्य में औद्योगिक विकास का पहिया थम गया | यहाँ तक कि छोटे - छोटे व्यापारी तक लाल झंडे की आड़ में होने वाले उत्पात से त्रस्त हो गए | दूसरी तरफ आजादी के बाद से पंजाब में न सिर्फ कृषि बल्कि औद्योगिक विकास भी जमकर हुआ | इस राज्य के लोगों ने परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए खेत और कारखाने दोनों में अपनी उद्यमशीलता का परिचय दिया जिससे वह  देश के  अग्रणी  राज्यों में शुमार हो सका | हालाँकि तकनीक के विकास की वजह से  परम्परागत उद्योगों के सामने भी अस्तित्व का संकट है लेकिन नए उद्योगों के विकास की सम्भावनाएं भी तभी बन सकेंगी जब राज्य में राजनीतिक स्थिरता के साथ ही कानून - व्यवस्था की  स्थिति अच्छी रहे | वैसे भी नब्बे के दशक में खलिस्तानी आतंक के कारण पंजाब का औद्योगिक विकास बुरी तरह से प्रभावित हुआ जिसका हरियाणा ने जमकर उठाया | किसान आन्दोलन का अंजाम क्या होगा ये आज कह पाना कठिन है क्योंकि तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने की मांग मंजूर करना केंद्र सरकार के लिए नई मुसीबतों को न्यौता देने जैसा होगा | दूसरी तरफ किसान संगठन इससे कम पर मानने राजी नहीं हैं | हो सकता है आज की बातचीत से कुछ रास्ता निकल आये लेकिन मोबाइल टावरों के अलावा निजी कम्पनियों के शो रूम , मॉल और पेट्रोल पम्पों को बंद करवाने या उनमें तोड़फोड़ करने जैसी  वारदातों से पंजाब में निवेश करने के इच्छुक लोग छिटक सकते हैं | किसान आन्दोलन में अनेक ऐसे लोग भी  हैं जो कृषि के साथ ही  उद्योगों से भी जुड़े हुए हैं | इस वर्ग को चाहिए  आन्दोलन को गलत  दिशा में जाने से रोके  | उल्लेखनीय है पंजाब उन राज्यों में से है जहां के लाखों लोग अप्रवासी के रूप में विदेशों में बसे हैं | पंजाब की  आर्थिक समृद्धि में उनकी  जबरदस्त भूमिका रही है | मौजूदा आन्दोलन को  कैनेडा और ब्रिटेन जैसे देशों से जिस तरह का आर्थिक सहयोग मिल रहा है वह इसका प्रमाण है | इन अप्रवासियों में अनेक ऐसे भी होंगे जो निकट भविष्य में पंजाब में निवेश करने वाले हों | ऐसे लोगों की भले ही किसान आन्दोलन के साथ सहानुभूति  हो किन्तु  औद्योगिक इकाइयों के साथ तोड़फोड़ जैसी घटनाएँ जारी रहीं तब वे भी यहाँ पैसा फंसाने से पहले सौ बार सोचेंगे | इसीलिये ये जरूरी है कि किसान आन्दोलन अपनी सीमाओं में ही रहे | किसी कम्पनी विशेष से  खुन्नस निकालने के फेर में पूरे उद्योग जगत को नाराज करना पंजाब के लिए नुकसानदेह होगा | मोबाइल सेवा को बाधित करना तो बहुत ही नासमझी भरा कदम है | विरोधस्वरूप किसी कम्पनी की सेवाएँ छोड़ देना तो ठीक है लेकिन उसको बाधित करने से और लोग भी परेशान होते हैं और पूरी संचार तथा संवाद की प्रक्रिया रुकती है | दिल्ली के दरवाजे पर जमे  हजारों किसानों ने अब तक शान्ति बनाये रखी | अनेक बार घोषणा करने के बावजूद वे दिल्ली को पूरी तरह नहीं घेर सके तो उसके पीछे जनता की नारजगी से बचना ही कारण था किन्तु पंजाब से आ रही खबरें आन्दोलन के हिंसक होने के संकेत दे रही हैं | किसान नेताओं को ये बात ध्यान रखनी होगी कि खलिस्तान के आन्दोलन को भी पंजाब के अधिकांश  सिखों  का समर्थन इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि उसकी वजह से आम जनता  की परेशानियां बढ़ चली थीं | पंजाब सरकार समय रहते  किसान आन्दोलन के नेताओं को इस बारे में आगाह करे वरना पंजाब का औद्योगिक ढांचा चरमराने की नौबत आये बिना नहीं रहेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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