Thursday 21 January 2021

सरकार ने तो पांसा चल दिया अब किसान संगठनों के जवाब का इन्तजार



किसान आन्दोलन से उत्पन्न गतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से वार्ताओं का जो सिलसिला बीते एक महीने से भी ज्यादा से चला आ रहा है उसकी 11 वीं कड़ी में गत दिवस भी कोई समाधान नहीं निकला | किसानों ने पहले की  तरह सरकारी भोजन से परहेज किया और अपनी बात पर अड़े रहे | गणतंत्र दिवस  पर ट्रैक्टर रैली निकालने के निर्णय को भी राकेश टिकैत ने ये कहते हुए दोहराया कि वह भी दरअसल परेड ही होगी | यद्यपि राजपथ से अलग दिल्ली के बाहरी इलाके में उसका आयोजन किये जाने की बात कही गई है | सर्वोच्च न्यायालय ने रैली की अनुमति  संबंधी निर्णय दिल्ली पुलिस पर छोड़कर अपना पल्ला झाड़ लिया किन्तु कृषि कानूनों पर संवाद हेतु बनाई समिति का विरोध करने वालों को फटकारा भी | दूसरी ओर किसान संगठनों के साथ हुई बैठक के अंत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने  नया पांसा फेंकते हुए प्रस्ताव रखा कि केंद्र सरकार सम्बन्धित कानूनों को एक से डेढ़ वर्ष तक स्थगित रखने के साथ  न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) पर विचार हेतु समिति बनाने तैयार है | दोनों पक्ष  इस अवधि में कानूनों से जुड़े सभी मुद्दों पर विचार - विमर्श कर किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं | अचानक आये इस प्रस्ताव से किसान नेता हतप्रभ रह गये | अब तक तो सरकार के  हर सुझाव को रद्दी की टोकरी में फेंका जाता रहा किन्तु उक्त प्रस्ताव पर विचार कर 22 जनवरी तक अपना निर्णय बताने की बात कही गई | जो जानकारी है उसके अनुसार आज किसान  संगठन इस बारे में  अपना रुख स्पष्ट करेंगे | यद्यपि राकेश टिकैत ने आंदोलन जारी रखने के अलावा 26 जनवरी  को ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा भी कर दी | किसान संगठन  क्या  फैसला लेंगे ये आज उनकी बैठक में तय हो  जाएगा किन्तु सरकार ने अचानक जो रुख  दिखाया उसके पीछे कुछ न  कुछ  बात तो है | कुछ दिन पूर्व पंजाब के एक किसान नेता द्वारा दिल्ली  में अनेक विपक्षी दलों के नेताओं से की गयी  मुलाकात के बाद उन पर आन्दोलन का राजनीतिकरण किये जाने का आरोप लगाया गया  | इस पर उन्होंने आरोप लगाने वालों को रास्वसंघ से जुड़ा बताकर ये संकेत दिया कि आंदोलनरत संगठनों के बीच भी कहीं  न कहीं अविश्वास का भाव है | उस आधार पर ये सोचना गलत न होगा कि कृषि मंत्री द्वारा अचानक दिए गए प्रस्ताव के पीछे भी किसान आन्दोलन से जुड़े कुछ संगठनों की सहमति हो सकती हैं | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने अपना काम  शुरू कर दिया है और कानूनों का समर्थन  करने वाले भी अब खुलकर बोलने लगे हैं | ऐसे में  आन्दोलन को जिद की शक्ल देकर खींचते रहने से उसकी धार कुंद पड़ने का खतरा है | कुछ राज्यों से ऐसी खबरें भी आई हैं जिनसे ये एहसास हो रहा है कि नए कानून किसानों के लिए लाभप्रद हैं | चूँकि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ बहुत ही कम किसानों  को मिलता है इसलिए पंजाब और हरियाणा के बाहर के किसान इस मुद्दे को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे | ऐसे में अब आंदोलनकारी किसान संगठनों को चाहिए वे कृषि मंत्री के प्रस्ताव को थोड़ा घटा - बढ़ाकर स्वीकार कर लें | यद्यपि उनके सामने ये दुविधा है कि सरकार तो पहली बैठक से ही समिति बनाकर मुद्देवार चर्चा का प्रस्ताव देती आ रही है जिसे वे बिना लाग लपेट के ठुकराते रहे किन्तु दूसरी  तरफ ये भी सही है कि कानूनों को वापिस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी जमा पहिनाने की मांग पर सरकार ने भी झुकने से इंकार कर दिया | बावजूद इसके यदि किसान संगठन एक वार्ता विफल होने के बाद अगली के लिए रजामंद होते गये तो ये माना जा सकता है कि वार्ता की टेबिल के अलावा भी किसी अन्य माध्यम से बातचीत चल रही थी जिसे दोनों पक्ष छिपाते रहे | हालांकि अभी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सरकार के ताजा प्रस्ताव पर आन्दोलनकारी संगठन अपनी सहमति देकर धरना समाप्त कर ही देंगे लेकिन उस पर विचार करने की बात कहने से उम्मीद की किरण नजर जरूर आ रही है | किसान संगठनों को भी ये बात तो समझ में आने लगी है कि उनकी हर जिद पूरी होने से रही वहीं आन्दोलन को  बिना परिणाम के लंबा खींचने से उसकी लगाम गलत हाथों में चली जाने का खतरा   भी है | ऐसी स्थिति में कानूनों के अमल को साल - डेढ़ तक स्थगित रखने के प्रस्ताव को  युद्धविराम के तौर पर स्वीकार किये जाने में नुकसान नहीं है | ऐसा होने पर किसान संगठनों के पास भी देश भर के किसानों को अपनी बात समझाने का अवसर मिल जाएगा जो वे अभी तक नहीं कर पाए | जहां तक बात सरकार की है तो वह भी बड़ी ही चतुराई से कदम आगे बढ़ा रही है जिसकी वजह से हर बैठक के पहले और बाद में कड़े तेवर दिखाने के बावजूद किसान संगठन बातचीत से इंकार करने का साहस नहीं कर पा रहे | सरकार ने जो नया प्रस्ताव दिया है उस पर किसान  संगठनों के जवाब का इन्तजार सभी को है क्योंकि इससे ज्यादा झुकने के लिए सरकार शायद ही राजी होगी | वहीं इसे ठुकराने के बाद आन्दोलन में दरार पड़ने की  आशंका बढ़ जायेगी |
- रवीन्द्र वाजपेयी

1 comment:

  1. रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय;
    टूटे से फिर ना जुड़े,जुड़े गांठ पड़ जाए।

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