गत वर्ष जब कोरोना का संक्रमण भारत में आया था तब उसे लेकर दो तरह की बातें हुईं । प्रारम्भ में ये माना जा रहा था कि भारत में इसका प्रकोप ज्यादा नहीं होगा । इसके पक्ष में यहाँ के गर्म मौसम के साथ , खान - पान और बचपन में लगने वाले बीसीजी के टीके का तर्क दिया गया । ये भी कहा गया कि प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण आम भारतीय की रोग प्रतिरोधक क्षमता संपन्न देशों की तुलना में ज्यादा होती है । कोरोना के पहले भी अनेक ऐसे संक्रमण आये जिन्होंने दूसरे देशों में तो कहर ढाया लेकिन भारत उनसे अछूता रहा । दूसरी तरफ कुछ लोग इस बात के प्रति आगाह करते रहे कि केंद्र सरकार को बिना देर किये आपातकालीन कदम उठाने चाहिए जिससे कि कोरोना को भारत में आने से रोका जा सके । इसी उहापोह के बीच विदेश से आये किसी व्यक्ति के जरिये कोरोना का आगमन हो गया । इस पर भी स्थिति की गंभीरता समझ में नहीं आई । फरवरी के अंतिम सप्ताह में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन की वजह से अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध न लगाने का आरोप भी केंद्र सरकार पर लगा जो गलत नहीं था । विदेशों से आने वाले यात्रियों की हवाई अड्डे पर समुचित जाँच नहीं किये जाने की वजह से कोरोना संक्रमित आते गए जिससे वह देश के अनेक हिस्सों में पैर जमाने में सफल हो गया । ये बात पूरी तरह सही है कि शुरुवात में किसी को स्थिति की भयावहता का अंदाज नहीं था । इसी कारण संक्रमण के उद्गम स्थल चीन के वुहान शहर में फंसे सैकड़ों भारतीयों को लेने भारत सरकार ने विशेष विमान भेजे । उस अभियान में शरीक पायलटों एवं विमान परिचारिकाओं में से भी कुछ कोरोना संक्रमित हुए । इसी दौरान दिल्ली में तबलीगी जमात के जमावड़े में बड़ी संख्या में कोरोना फैलने से हड़कंप मचा और अंत में जाकर लॉक डाउन लगाना पड़ा । इसके बाद का घटनाक्रम सभी जानते हैं । दो माह के बाद जब लॉक डाउन हटाया गया तब जैसी कि आशंका थी कोरोना का जबरदस्त विस्फोट हुआ और नए संक्रमणों की संख्या एक लाख तक पार करने लगी । इसका कारण बड़े पैमाने पर जाँच होना बताया गया । उल्लेखनीय है लॉक डाउन के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से प्रवासी श्रमिकों के पलायन की अभूतपूर्व स्थिति भी उत्पन्न हुई और ये माना जाने लगा कि अपने गाँव या कस्बे में लौटकर वे संक्रमण को महामारी में बदल देंगे जिससे हमारे यहाँ भी इटली जैसे हालात बन जायेंगे । लेकिन अब जबकि भारत में कोरोना प्रतिरोधक टीकाकरण शुरू होने जा रहा है और प्रतिदिन पाए जाने वाले नए मरीजों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है तब चिकित्सा विज्ञान के लिए ये शोध का विषय है कि वे कौन सी वजहें थीं जिनके कारण भारत जैसी बड़ी आबादी और घनी बसाहट वाला देश कोरोना को महामारी में बदलने से रोकने में कामयाब हो सका ? यद्यपि ये मान लेना मूर्खता होगी कि कोरोना पूरी तरह विलुप्त हो चुका है क्योंकि एक भी संक्रमित के रहते वह दोबारा तेजी से फ़ैल सकता है और उसका टीका आम जनता तक पहुँचने में अभी काफी समय लगेगा । बावजूद उसके पूरी दुनिया में इसे लेकर कौतुहल है कि भारत में जहाँ मलेरिया और डेंगू जैसे बीमारियों की रोकथाम संभव नहीं हो पाई वहां कोरोना जैसे अपरिचित वायरस से बचाव कैसे संभव हो सका ? यही नहीं उसका टीका बनाने के बारे में भी जिस तेजी से काम हुआ वह भी चौंकाने वाला रहा । भारत में बनी वैक्सीन की मांग दुनिया के वे विकसित देश भी कर रहे हैं जहां हमारे नेता और धन्ना सेठ अपना इलाज करवाने जाते हैं । ये देखते हुए चिकित्सा विज्ञान को आम भारतीय की जीवन शैली , खान - पान , आवासीय परिस्थितियों , जलवायु आदि का अध्ययन करना चाहिये । सबसे बड़ी बात ये है कि इन सभी में जबरदस्त विभिन्नता भी है । जिसके कारण भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है । दुनिया के लिए ये अचरज की बात है कि जो गरीब तबका बहुत ही दयनीय स्थितियों में रहते हुए कुपोषण का शिकार हो और जिसे न्यूनतम चिकित्सा सुविधाएँ तक उपलब्ध न हों , वह इस जानलेवा संक्रमण से कैसे सुरक्षित रह सका ? आज जब भारत में कोरोना के नए मामले निरंतर घटते जा रहे हैं और ठीक होने वालों का प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है तब अमेरिका जैसे देश में प्रतिदिन लाखों नए मरीज सामने आ रहे हैं और ब्रिटेन , फ्रांस तथा जर्मनी आदि में लॉक डाउन का नया दौर शुरू करना पड़ा । कहने का आशय ये है कि बात - बात में भारत के पिछड़ेपन का हवाला देने वालों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ऐसा कुछ न कुछ तो हमारे यहाँ है जिसकी वजह से जबरदस्त विकट परिस्थिति को भी भारत झेल गया जबकि उसकी क्षमता पर उसी के लोगों को संदेह था । कोरोना अभी भी बना हुआ है । टीकाकरण की प्राथमिकताओं के अनुसार आम जनता तक पहुंचने में समय भी लगेगा लेकिन ये देश के आत्मविश्वास का ही परिचायक है कि उसे लेकर किसी भी तरह की आपाधापी नजर नहीं आ रही । आपदा के ऐसे समय में ही किसी समाज और देश के अन्त्तर्निहित गुण- दोष उजागर होते हैं । उस दृष्टि से ये कहना गलत न होगा कि 135 करोड़ की विशाल आबादी को इस अप्रत्याशित विपदा से न्यूनतम नुकसान के साथ निकाल लाना मामूली बात नहीं थी । शासकीय इंतजाम , चिकित्सा तंत्र की मुस्तैदी और जरूरत के मुताबिक प्रबन्धन में सुधार की वजह से आपदा को सीमित और नियंत्रित रखा जा सका किन्तु भारतीय जीवन शैली भी इस सफलता के पीछे कहीं न कहीं जरूर रही । बेहतर हो विकसित देशों की चमक और दमक से नजर हटाकर हम एक बार फिर भारत की ताकत को पहिचानें । कोरोना के बाद पूरी दुनिया भारत के प्रति अपना नजरिया बदलने को मजबूर हुई है । अब ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम उसका कितना लाभ उठा पाते हैं ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment