Friday 8 January 2021

अमेरिका में दूसरे गृहयुद्ध का बीजारोपण हो चुका



हालाँकि बीते चार साल में पूरी दुनिया जान चुकी थी कि डोनाल्ड ट्रंप  अस्थिर दिमाग के साथ ही अदूरदर्शी राजनेता हैं लेकिन वे इतने गिरे हुए होंगे इसका अंदाज बीते कुछ समय से लगने के बावजूद  विश्वास करना कठिन था कि चुनावी हार उन्हें  पागलपन की हद तक पहुंचा देगी और वे महानता के आधुनिक प्रतीक कहलाने वाले अपने देश की छवि इस तरह तार - तार कर देंगे | लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि उसमें सत्ता का हस्तांतरण  संवैधानिक तरीके से शान्ति और शालीनता के साथ होता है | अमेरिका आज की दुनिया में लोकतंत्र का सबसे बड़ा उपदेशक बन बैठा था | अब्राहम लिंकन ने  लोकतंत्र को जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए जैसी परिभाषा देकर पूरे विश्व में अमेरिका के प्रति सम्मान की  जो भावना जगाई थी वह गत दिवस वाशिंगटन में हुए हादसे के बाद सवालों के घेरे में आ गयी | जनता के फैसले को सिर झुकाकर स्वीकार करने की बजाय ट्रंप ने जिस तरह की अड़ंगेबाजी की उसे उनकी  स्वभावगत विशेषता मानकर भले ही उपेक्षित कर दिया जाए लेकिन  कल अमेरिकी संसद में जो कुछ हुआ उसके बाद विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक महाशक्ति के भविष्य के बारे में पूरी दुनिया सोचने को बाध्य हो गयी | अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों के लिए पूरी दुनिया को नसीहत देने वाले देश के समाज का खुलापन पूरी दुनिया को आकर्षित करता रहा है | नेशन ऑफ नेशंस कहलाने वाले सवा दो सौ वर्ष पुराने इस देश की अपनी कोई मौलिक राष्ट्रीयता नहीं है | शायद वह  एकमात्र ऐसा देश है जिसमें दुनिया भर के लोग आकर बसते गए | अमेरिका के राष्ट्र निर्माताओं का ये नारा उसकी तरक्की का आधार बन गया कि आओ , बसो और पनपो | जिससे प्रभावित होकर दुनिया भर के उद्यमी , वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी यहाँ आकर बसे और उन्होंने इस देश की प्रगति को उच्चतम  शिखर तक पहुंचा दिया | लेकिन शक्ति और समृद्धि की दौड़ में अमेरिकी समाज में स्वछ्न्दता  का समावेश भी होता चला गया | अब्राहम लिंकन , जॉन. एफ. कैनेडी और डा. मार्टिन लूथर किंग जैसी हस्तियों की हत्या इस देश के माथे पर कलंक की तरह हैं | बीते कुछ वर्षों में छोटे बच्चों द्वारा शालाओं में अपने साथी विद्यार्थियों की हत्या की दर्जनों वारदातें इस बात का सांकेतिक प्रमाण रहीं कि भौतिक प्रगति के कारण  अमेरिका में पारिवारिक संस्कार अपनी मौत मरते जा रहे हैं | हालिया चुनाव के पहले हुए नस्लीय दंगे ट्रंप द्वारा करवाए गये या नहीं इस पर विवाद हो सकता है लेकिन उनसे ये बात तो साफ़ हो गई कि अमेरिका  आज भी मानवीय संवेदनाओं को लेकर दो फाड़ है | कल जो कुछ हुआ उसे क्षणिक आवेश मानकर भुला देना ठीक न होगा | भले ही हर तरह से असफल रहने के बाद ट्रंप ने शांतिपूर्वक सत्ता के हस्तांतरण का आश्वासन दे दिया लेकिन  चुनाव के पहले से अब तक उनका आचरण अमेरिकी समाज में आ रही विकृति का ताजा संकेत है | यद्यपि उनकी अपनी पार्टी और यहाँ तक कि उपराष्ट्रपति तक ने उनकी बात मानने से इनकार करते हुए लोकतान्त्रिक मर्यादा की रक्षा की लेकिन कहना गलत न होगा कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के बाद अमेरिका को अपने घरेलू मोर्चे पर ही अनेकानेक ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है जो अकल्पनीय हैं | अमेरिका में आकर बसे अप्रवासियों के विरुद्ध  समय - समय पर राष्ट्रवाद और नस्लीय श्रेष्ठता का भाव व्यक्त होता रहा है | लेकिन आज का अमेरिका केवल यूरोप से आये गोरी चमड़ी वालों का नहीं  रहा | उसमें अफ्रीका  , चीन , भारत  और लैटिन अमेरिकी देशों के करोड़ों  लोग नागरिकता ले चुके हैं| अमेरिका में  ज्ञान - विज्ञान ही नहीं अपितु आर्थिक क्षेत्र में भी अप्रवासियों का जबरदस्त आधिपत्य है | ये वर्ग सरकारी नीतियों को भी प्रभावित करने की स्थिति में आ चुका है | राष्ट्रपति चुनाव में ये अप्रवासी  उलटफेर करने की हैसियत में आ चुके हैं | यही वजह रही कि ट्रंप के प्रतिद्वन्दी जो वाईडेन ने उपराष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर भारतीय मूल की कमला हैरिस को चुना | विदेशी मूल के लोग अब वहां सांसद  और गवर्नर बनने  लगे हैं |  व्हाईट  हॉउस के स्टाफ सहित अमेरिकी प्रशासन की  नीति  निर्धारण से जुड़े  अनेक महत्वपूर्ण पदों पर भारतीय मूल के लोगों की नियुक्ति अपने आप में बहुत कुछ कहती है | ये सब देखते हुए माना  जा सकता है कि दुनिया  का चौधरी बनने के फेर में अमेरिका अपने घर को सँभालने के प्रति लापरवाह हो चला जिसके कारण डोनाल्ड ट्रंप सरीखे व्यक्ति राष्ट्रपति बन बैठे | यद्यपि उनके अपने सहयोगियों ने  जिस परिपक्वता का परिचय दिया वह अच्छा  संकेत है | 100 रिपब्लिकन सांसद तक उनके खिलाफ खड़े हैं | महाभियोग की चर्चा चल रही है | यहाँ तक कि कार्यकाल के अंतिम 10 - 12 दिन भी उनको पद पर न रहने देने की बातें हो रही हैं | हालांकि इस सबके बीच ये भी  जानकारी मिल रही है कि अमेरिकी  संविधान के विशेष प्रावधान का लाभ लेते हुए ट्रंप खुद को माफ़ करने के अधिकार का उपयोग करने जा रहे हैं | बावजूद इसके वे अमेरिका के  ऐसे  राष्ट्रपति  हैं जो बड़े बेआबरू होकर व्हाईट हाउस से निकलने जा रहे हैं | गत दिवस वहां की संसद में जो कुछ भी हुआ उसके बाद ये मान लेना गलत न होगा कि अमेरिका में लोकतंत्र के समानांतर अब दूसरी मानसिकता भी जन्म ले चुकी है | आधुनिक अमेरिका का जन्म गृहयुद्ध के बाद हुआ था | ऐसा लगता है उसकी पुनरावृत्ति का बीजारोपण हो चुका है | दुनिया भर में चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने के साथ ही ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को पालने - पोसने वाला अमेरिका भी अस्थिरता और अराजकता की ओर बढ़ रहा है | अमेरिका की ताजा घटनाओं के संदर्भ में भारत की देसी  कहावत प्रासंगिक हो गयी कि बुढ़िया मर गई इसकी चिंता नहीं लेकिन मौत ने घर देख लिया | वैसे भी समृद्धि और शक्ति का अहंकार पतन का कारण बन जाता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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