Monday 11 January 2021

किसान आन्दोलन : विघ्नसंतोषियों का पर्दाफाश जरूरी



हरियाणा में गत दिवस किसानों के  विरोध के कारण मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को सभा रद्द करना पड़ी। आन्दोलनकारियों ने मंच और हैलीपेड को भी नुकसान पहुँचाया। हालांकि सरकारी दावे के अनुसार मौसम की वजह से सभा रद्द की गई किन्तु सही बात ये है कि किसानों के विरोध के चलते ही मुख्यमंत्री का कार्यक्रम नहीं हुआ।  सर्वोच्च न्यायालय  विभिन्न मामलों में कह चुका है कि लोकतंत्र में विरोध के लिए आन्दोलन का अधिकार सभी को है लेकिन उसकी भी कोई सीमा होनी चाहिए। किसानों का जो आन्दोलन दिल्ली की सीमा पर चल रहा है उसकी वजह से व्यस्त मार्ग को अवरुद्ध कर रखा गया है जिससे लोगों को असुविधा हो रही है। चूंकि अब तक आन्दोलनकारी शान्ति के साथ डटे हुए हैं इसलिए सरकार ने भी उन्हें हटाने का प्रयास नहीं किया किन्तु पंजाब और अब हरियाणा से जैसी  खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि किसानों की आड़ में असामाजिक और उपद्रवी किस्म के लोग भी आन्दोलन में घुस आये हैं। पहले निजी मोबाइल कम्पनी के टावरों तथा रिटेल स्टोर्स में तोड़फोड़ और अब मुख्यमंत्री सहित दूसरे राजनीतिक आयोजनों में हंगामा करने की घटनाएँ आन्दोलन के रास्ते से भटकने  का संकेत है। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत द्वारा भी गत दिवस सार्वजनिक  रूप से ये स्वीकार किया गया कि सरकार के साथ हो रही बातचीत में दो-चार लोग ऐसे हैं जो सहमति का आसार बनते देख दूध में नींबू निचोड़ने से बाज नहीं आते। यद्यपि उन्होंने ऐसे लोगों का नाम नहीं लिया परन्तु उनकी बात से ये स्पष्ट हो जाता है कि किसान संगठनों में कुछ विघ्नसंतोषी है जो समाधान नहीं चाहते। श्री टिकैत की बात पर इसलिए विश्वास किया जा सकता है क्योंकि कानून वापिसी के बिना किसी भी मुद्दे पर बातचीत करने से साफ़ इंकार किये जाने के बावजूद किसान संगठन एक वार्ता विफल होने के बाद भी  अगली के लिए तैयार हो जाते हैं। इसे लेकर पूरे देश में ये सवाल उठने लगा है कि जब दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं और बार-बार बातचीत  बेनतीजा खत्म हो जाती है तब दोबारा बातचीत की तारीख तय करने का मतलब क्या है ? लेकिन अब श्री टिकैत की टिप्पणी से ऐसा लगता है कि चाहते तो किसान संगठन भी हैं कि समाधान निकल आये क्योंकि बातें चाहे कितनी भी बड़ी-बड़ी हो रही हैं लेकिन आन्दोलन को पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उप्र और राजस्थान के कुछ हिस्से सहित उत्तराखंड से ही कुछ समर्थन अब तक हासिल हो सका है। ये भी सही है कि किसानों का कोई गैर राजनीतिक संगठन ऐसा नहीं है जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहिचान हो। यही वजह है कि 40 संगठन मिलकर भी सरकार पर मनमाफिक दबाव नहीं बना पा रहे। ये भी साफ़ हो चला है कि आन्दोलन को मुख्य सहायता पंजाब से मिल रही है और जिसका कारण अकाली दल और बादल परिवार है जिनका गुरुद्वारों पर खासा प्रभाव है। श्री टिकैत के पहले भी इस तरह की बात दूसरे लोगों द्वारा कही जा चुकी है कि जब सरकार  सुझाव मांग रही है तब अड़ियलपन दिखाते हुए बातचीत को विफल करना नुकसानदेह हो सकता है। लेकिन आन्दोलन के साथ कुछ ऐसे लोग जुड़ गए हैं जिनका खेती और किसानों से कुछ लेना-देना नहीं है। बीते कुछ वर्षों में ये देखने में आया है कि अव्यवस्था फ़ैलाने वाले किसी भी प्रयास को समर्थन देने में कुछ जाने-पहिचाने चेहरे बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनकर शामिल हो जाते हैं। फिर चाहे छात्र आन्दोलन हो या कश्मीर से 370 और 35 ए हटाने का मामला। सीएए का विरोध करने के लिए शाहीन बाग़ जैसे जो आन्दोलन हुए उनके पीछे भी यही तत्व सक्रिय थे। इनका काम दरअसल किसी न किसी विवाद को जीवित रखना है जिससे इनको तवज्जो मिलती रहे। शाहीन बाग़ नामक मुहिम तो कोरोना के कारण अपनी मौत मर गई जिससे विघ्नसंतोषियों का तबका खुद को बेकार महसूस कर रहा था। और इसीलिये उसने किसानों के बीच घुसकर उन्हें ऐसी लड़ाई में उलझा दिया जिसका अंजाम उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा। आन्दोलन के जो मुद्दे हैं उन पर सहमति बनना बड़ी बात नहीं थी किन्तु जब भी आग ठंडी होने की उम्मीद दिखी तब-तब उसमें पेट्रोल डालने का काम जो लोग कर रहे हैं वे ही पंजाब और हरियाणा में हो रही तोड़फोड़ के पीछे  हैं। बेहतर होगा किसान संगठनों में जो समझदार और सुलझे हुए नेता हैं वे अनिर्णय की स्थिति से बाहर निकलकर सरकार के सामने अपने सुझाव पेश करें। दिल्ली के दरवाजे पर धरना दिए बैठे रहने या गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने जैसे निर्णय आन्दोलन को भटकाव के रास्ते पर ले जायेंगे जिससे अंतत: किसानों का नुकसान होगा। इसलिए जरूरी है  श्री टिकैत उन लोगों का पर्दाफ़ाश करें जो वार्ता को विफल करवाने की कुटिलता दिखाते हैं। किसान संगठनों को भी ये समझना चाहिए कि  हवा में लाठी भांजने से कुछ हासिल नहीं होगा। पिछली बैठक के बारे में ये बात प्रचारित हुई कि उसमें किसान नेताओं ने कृषि मंत्री  की एक नहीं सुनी। दूसरी ओर बैठक से बाहर निकलकर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पत्रकारों को बताया कि  बातचीत जारी है  और  अगली बैठक की तिथि किसान संगठनों की सहमति से ही तय की गई। उससे पहले बेहतर होगा किसान संगठन अपने बीच बैठे  उन तत्वों को बाहर करें जो किसानों के नाम पर पर अपनी कुंठाएं निकाल रहे हैं। यदि ऐसा नहीं किया गया तब बड़ी बात नहीं आन्दोलन पर  विघटनकारी मानसिकता वालों का कब्जा हो जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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