Tuesday 19 January 2021

नये मेडीकल कालेजों का स्वागत लेकिन पढ़ाने वाले प्राध्यापक कहाँ से आएंगे



 

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत दिवस दिल्ली में केन्द्रीय मंत्रियों से मिलकर प्रदेश की अनेक योजनाओं को शुरू करने के साथ ही बजट में नये प्रकल्पों की स्वीकृति हेतु आग्रह किया | इनमें लघु और मध्यम उद्योगों के साथ ही , राजमार्ग विकास और सैनिक स्कूल के साथ ही सिवनी में मेडिकल कालेज आदि हैं | लेकिन श्री सिंह द्वारा जो सबसे  महत्वपूर्ण मांग की गयी वह थी दमोह अथवा छतरपुर में एम्स  ( अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ) की स्थापना | कोरोना काल में  चिकित्सा  सुविधाओं का जाल पूरे देश में फ़ैलाने की जरूरत महसूस की गई | भले ही हम इस बात पर इतरा लें कि भारत  कोरोना के विरुद्ध जंग में  न्यूनतम जनहानि के साथ जीत की देहलीज पर आ पहुंचा है और रिकॉर्ड समय में उसने टीकाकरण का महाभियान भी प्रारम्भ कर  दिया है लेकिन जैसी कि खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि कोरोना भले ही जाता हुआ दिखाई दे रहा है किन्तु उस जैसे या उससे भी ज्यादा खतरनाक वायरस मानव जाति को चुनौती देने को तैयार हैं | कोरोना को लेकर अभी भी ये आशंका है कि वह चीन की शरारत थी लेकिन ये मान लेने के बाद भी ऐसी किसी  भी आपदा से निपटने के लिए उसी तरह की मुस्तैदी आवश्यक है जैसी  सीमा पर तैनात सैनिक सदैव दिखाते  हैं | उस दृष्टि से ये आवश्यक हो गया है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का उन्नयन तो हो ही लेकिन उनका विकेन्द्रीकरण भी किया जावे | एक ज़माना था जब एम्स केवल दिल्ली में था | उसके समकक्ष समझे जाने वाले पीजीआई की स्थापना चंडीगढ़ में की गई | उक्त दोनों  संस्थान उच्च स्तरीय चिकित्सा शिक्षा और इलाज के सबसे बड़े सरकारी संस्थान बन गये | एम्स की स्थापना के पीछे उद्देश्य दिल्ली में रहने वाले अति विशिष्ट महानुभावों को अच्छा इलाज उपलब्ध करवाना था | हालाँकि कालान्तर में अधिकाँश वीआईपी इलाज हेतु सरकारी खर्च पर विदेश जाने  लगे लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि एम्स तथा पीजीआई देश में उच्च स्तरीय चिकित्सा और इलाज के पहले सरकारी प्रतीक बन गये | लेकिन देश के बाकी हिस्सों को ये सुविधा मिलने में दशकों लगे | केंद्र में अटलबिहारी  वाजपेयी की सरकार का राजनीतिक मूल्यांकन अलग - अलग हो सकता है किन्तु एक बात निर्विवाद तौर पर मानी जा सकती है कि देश में  अत्याधुनिक राजमार्गों के अतिरिक्त पक्की ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाने का जो काम अटल जी  की सरकार ने किया वह ऐतिहासिक बन गया | लेकिन उनके कार्यकाल की एक और उपलब्धि जिसकी चर्चा अपेक्षाकृत कम ही होती है वह है आईआईटी और आईआईएम के अलावा  नये एम्स और पीजीआई खोलने  का निर्णय | उसका जबर्दस्त लाभ भी हुआ | देश में उच्च शिक्षित इंजीनियरों के अलावा विश्वस्तरीय प्रबन्धक तैयार करने में जहाँ आआईटी और आईआईएम का उल्लेखनीय योगदान रहा वहीं उच्च स्तरीय चिकित्सा शिक्षा और  इलाज के क्षेत्र में एम्स और पीजीआई की भूमिका को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता |  उस दृष्टि से श्री चौहान द्वारा मप्र के अति पिछड़े कहे जाने वाले बुन्देलखंड के दमोह अथवा छतरपुर में एम्स खोलने का आग्रह स्वागतयोग्य है |  सिवनी में मेडिकल कालेज खोलने का फैसला भी इस आदिवासी अंचल  के लिए बड़ी सौगात होगी | हालांकि नजदीकी  जिले छिंदवाड़ा को मेडिकल कालेज पहले ही मिल चुका था | लेकिन चिकित्सा सुविधाओं का जाल बिछाने में सबसे बड़ी परेशानी चिकित्सकों की कमी है | उसकी वजह से जो मेडिकल कालेज पहले से ही चल रहे हैं उनमें मेडिकल काउन्सिल के मापदंडों के आधार पर सीटें बढ़ाना संभव नहीं होता | प्रोफेसरों की किल्लत एमबीबीएस के बाद एमएस या एमडी करने वाले छात्रों के लिए बाधा  बन जाती है | ऐसे में ये प्रश्न उठता रहा है कि चाहे एम्स हो या मेडीकल कालेज , जब तक उनमें पढ़ाने के लिए योग्य और समर्पित शिक्षक नहीं मिलते तब तक वे गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते | ये देखते हुए बेहतर होगा कि नए संस्थान खोलने की बजाय सरकार अपने वर्तमान मेडीकल कालेजों का ही उन्नयन करते हुए आगामी पांच सालों की कार्ययोजना बनाकर देश में चिकित्सकों की कमी  दूर करने का अभियान चलाये | सरकार के समानांतर निजी क्षेत्र में भी  चिकित्सा शिक्षा और इलाज के बड़े - बड़े केंद्र खुल गये हैं लेकिन उनका असली मकसद पैसा बटोरना है | ऐसे में सरकार के लिए यही उचित होगा कि नए मेडिकल कालेज  खोलने से पूर्व  वर्तमान की दशा सुधारे | देश के हर व्यक्ति को  प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाना समय की मांग है | कोरोना ने इसकी जरूरत को और प्रतिपादित कर दिया है किन्तु चिकित्सकों की कमी के चलते ग्रामीण तो छोड़िये कस्बों तक में साधारण  चिकित्सा उपलब्ध नहीं है | सरकार झोला छाप चिकित्सकों के विरुद्ध अभियान चलाती है लेकिन कटु सत्य ये है कि सुदूर इलाकों में जरूरत पड़ने पर वे ही लोगों को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाते हैं | हाल ही में जिला स्तर पर मेडीकल कालेज खोलने की चर्चा भी सुनने में  आई | निश्चित रूप से ये बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा किन्तु उसके पहले पढ़ाने वाले प्राध्यापकों के बारे में सोचा जाना चाहिए | हालंकि एक विकल्प मेडीकल कालेजों से सेवा निवृत्त हो चुके प्राध्यापकों की सेवाएं लेना भी है | विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहे देश में जब तक चिकित्सा सुलभ नहीं होती तब तक सारी उपलब्धियां अधूरी रहेंगीं | कोरोना काल के बाद इस दिशा में महत्वाकांक्षी प्रयास जरूरी हो गए हैं लेकिन उसके लिए व्यवहारिक सोच भी जरूरी है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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