Tuesday 15 February 2022

80 फीसदी मतदान करने वाले गोवा के मतदाता अभिनंदन के पात्र हैं



 जिन पांच   राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं  उनमें सबसे अधिक चर्चा उ.प्र की  है | उसके बाद क्रमशः पंजाब , उत्तराखंड , गोवा और मणिपुर आते हैं | हालाँकि इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं  कहा जायेगा  क्योंकि उ.प्र भारतीय  राजनीति को सबसे जयादा प्रभावित करने वाला राज्यं है | सबसे बड़ी  आबादी के कारण वहां विधानसभा की 403 सीटें हैं जो बाकी चार राज्यों की सीटें  मिलाने के बाद भी ज्यादा हैं | पंजाब की चर्चा इस बार किसान आन्दोलन के अलावा कांग्रेस में हुई टूटन के कारण ज्यादा हुई जबकि बाकी तीन राज्यों में उत्तराखंड पर भी चूंकि उ.प्र की छाप अभी भी जारी है और उसके मैदानी इलाके किसान आन्दोलन से  प्रभावित रहे इसलिए वहां  की राजनीति भी खबरों  में रहती है | मणिपुर पूर्वोत्तर के कारण  मुख्यधारा की राष्ट्रीय राजनीति से दूर होने से समाचार माध्यमों को उतना आकर्षित नहीं करता | इन सबसे अलग गोवा वह राज्य है जो अपने नैसर्गिक सौंदर्य और मौज - मस्ती वाली पश्चिमी संस्कृति के कारण पर्यटकों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है | देशी ही नहीं अपितु विदेशी पर्यटक भी यहाँ बड़ी संख्या में आते हैं | जिनके कारण इस छोटे से तटवर्ती राज्य की अर्थव्यवस्था को बीते कुछ दशकों में काफी बल मिला | महज चालीस विधानसभा सीटों वाले इस राज्य का चुनाव इस बार इसलिए कुछ ज्यादा चर्चा में आ गया क्योंकि आम आदमी पार्टी के अलावा तृणमूल कांग्रेस पार्टी भी वहां मैदान में है | इस प्रकार कांग्रेस और भाजपा के अलावा दिल्ली और बंगाल से आई इन दो पार्टियों ने चुनावी मुकाबले को बहुकोणीय बना दिया | बावजूद इसके राजनीति में रूचि रखने वाले विश्लेषकों और आम जनता के बीच  उ.प्र ही सुर्ख़ियों में बना हुआ  है | इस राज्य के आम नागरिक भी सियासत के बारे में खुलकर बोलते – बतियाते हैं | शहर में रहने वाले ही नहीं अपितु ग्रामीण इलाकों में भी राजनीति यहाँ आम चर्चा का सबसे प्रमुख विषय होता है परन्तु विधानसभा चुनाव के दो चरणों के बाद मतदान के जो आँकड़े सामने आये उन्हें देखकर हैरानी हुई | इस बार उ.प्र में किसान आन्दोलन के कारण विधानसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है | प्रधानमन्त्री खुद इस राज्य से सांसद हैं जिसके कारण  राष्ट्रीय राजनीति में उसकी परम्परागत वजनदारी बनी हुई है | लेकिन इतना सब होने के बावजूद दो चरणों में हुआ मतदान 2017 के चुनाव से भी या तो कम या फिर उसी के करीब है | मुस्लिम बहुल कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में यद्यपि थोड़ी बढ़ोतरी हुई किन्तु औसतन मत प्रतिशत में गिरावट या ठहराव देखा  गया जो इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक दृष्टि से जागरूक समझे जाने वाले इस राज्य के 35 से 40 फीसदी मतदाता निर्णय प्रकिया से दूर  रहे  | कमोबेश यही स्थिति उत्तराखंड में भी देखने मिली जहां पिछले चुनाव की तुलना में कम मतदान हुआ या फिर उसमें मामूली वृद्धि देखी गई | हालांकि  बीते पांच साल में सूचना तंत्र का जबरदस्त विस्तार हुआ है ,  बावजूद इसके यदि मतदान के  प्रति एक बड़ा वर्ग उदासीन है तो ये राजनीतिक दलों के लिए भी विचारणीय हैं  | लेकिन दूसरी तरफ गोवा में कल एक साथ सभी 40 सीटों के लिए हुए चुनाव में लगभग 80 फीसदी मतदाताओं ने लोकतंत्र के इस अनुष्ठान में अपनी सहभागिता दी | गोवा में साक्षरता केरल जैसी नहीं है | वहां भी बड़ी आबादी  सामाजिक , आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े लोगों की है | राजनीतिक अस्थिरता और  भ्रष्टाचार आदि को लेकर भी गोवा में बाकी राज्यों जैसा ही माहौल है | दलबदल की परिपाटी भी चली आ रही है | इस चुनाव के पहले भी बड़ी संख्या में नेताओं ने पार्टी बदलने का काम किया | लेकिन मतदान का प्रतिशत  देखने के बाद ये कहना गलत न होगा कि वहां के मतदताओं ने जागरूकता के मामले में देश के सबसे बड़े और राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक  महत्वपूर्ण और ताकतवर राज्य को पीछे छोड़ते हुए ये  साबित किया कि गोवा में केवल मौज - मस्ती नहीं होती , अपितु इस राज्य के लोग अपने भविष्य के प्रति चिंता और चिन्तन दोनों करते हैं | प्रजातंत्र में जनता को अनेकानेक अधिकार दिए जाते हैं किन्तु मताधिकार उन सबका मूल है | यही वह  अधिकार हैं जिसके जरिये आम जनता अप्रत्यक्ष रूप से ही सही किन्तु शासन तंत्र पर अपना नियन्त्रण रख सकती है और जिसके कारण संसद और विधानसभा में बैठने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को  जनता के कल्याण की फ़िक्र रहती है | हमारे देश के पिछड़े राज्यों में उ.प्र अग्रणी है | इसीलिए यहाँ से सबसे ज्यादा पलायन होता रहा है | देश के हर हिस्से में यहाँ के श्रमिकों की।मौजूदगी इसका प्रमाण है | अब तक चार को छोड़कर शेष सभी प्रधानमन्त्री इसी राज्य से बने | लेकिन इसके बावजूद यदि उ.प्र आज भी विकास की दौड़ में अव्वल न आ सका तो उसका सबसे बड़ा कारण यही लगता है कि पूरे पांच साल तो भरपूर  राजनीतिक चर्चा यहाँ के लोग करते हैं किन्तु जब चुनाव आते हैं तब मतदान करने के प्रति वैसा उत्साह नहीं दिखाते जिसकी जरूरत होती है |  उ.प्र में अभी कई चरणों का मतदान बाकी है | यदि वहां के मतदाता गोवा से प्रेरणा लेकर अपने मताधिकार का उपयोग करने में अपेक्षित उत्साह दिखाएँ तो उससे लोकतंत्र के प्रति उनकी सम्वेदनशीलता उजागर होगी वरना ये माना जायेगा कि वे बहस तो खूब करते हैं लेकिन जब  राय देने का अवसर  आता है तब खिसक लेते हैं | कम मतदान से परिणाम का आकलन करने वाले अपनी – अपनी तरह से विश्लेषण में जुटे हैं | कुछ का कहना है कि कम मतदान यथास्थिति बने  रहने का  संकेत है वहीं  कुछ मानते हैं सत्ता समर्थक मतदाता नाराजगी वश घर बैठे रहे जबकि परिवर्तन के इच्छुकों ने जमकर मतदान किया |  कौन सही है ये तो अंतिम परिणाम से ही स्पष्ट होगा लेकिन आगामी चरणों में भी  मतदान के आंकड़े ऐसे ही रहे तब ये मानना पड़ेगा कि उ.प्र के राजनीतिक दल और उनके स्वनामधन्य नेता जनता के एक बड़े वर्ग को उत्साहित करने में नाकामयाब साबित हुए हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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