Thursday 3 February 2022

खाई तो उसी दिन बन गई थी जिस दिन टाटा को नमक बनाने का लाइसेंस मिला



कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गत दिवस लोकसभा में सरकार पर जोरदार  हमला किया | राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए उन्होंने बहुत सारी बातें कहीं |   विपक्षी सांसद होने के नाते श्री गांधी से सरकार की तारीफ अपेक्षित नहीं होती लेकिन उनके भाषण में एक बिंदु ऐसा था जिस पर राजनीति से परे हटकर विचार किया जाना चाहिए | देश में बढ़ती जा रही आर्थिक विषमता का बखान करते हुए उन्होंने कहा कि अमीर और गरीब नामक दो भारत बन गये हैं जिनके बीच खाई चौड़ी होती जा रही है | उनकी इस बात से शायद ही कोई असहमत होगा | जिस तरह से कुछ धनकुबेरों की सम्पन्नता में वृद्धि होती जा रही है उससे आर्थिक असमानता का दायरा बढ़ता जा रहा है | श्री गांधी की चिंता पूरी तरह जायज है | ये सवाल भी स्वाभाविक रूप से उठ रहा है कि जब कोरोना काल में पूरी अर्थव्यवस्था अस्त व्यस्त हो गयी और छोटे बड़े सभी प्रकार के काम धंधे ठन्डे पड़ गये थे तब भी कुछ उद्योगपतियों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई | चूंकि इनमें दो जो शीर्ष पर हैं वे केंद्र की वर्तमान सरकार के करीबी बताये जाते हैं इसलिए श्री गांधी सदैव उन पर निशाना  साधते हैं | गत दिवस के भाषण में उन्होंने अंगरेजी के AA का उल्लेख भी  किया जिसका सांकेतिक आशय अंबानी और अडानी नामक उद्योग समूहों से था | श्री गांधी के इस कथन में कुछ भी गलत नहीं है कि बीते कुछ सालों में उक्त दोनों के कारोबार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है | इस कारण से टाटा , बिरला , बजाज , डालमिया , गोयनका जैसे नाम पीछे चले गए | अब देश के सबसे रईस व्यक्तियों की दौड़ केवल इन्हीं  दो नामों के बीच सिमटकर रह गयी है | हालाँकि कुछ आईटी कम्पनियां और वैक्सीन बनाने वाले उद्यमी भी अरबपतियों की कतार में हैं | लेकिन मोदी सरकार आने के बाद जिस तरह से अंबानी और अडानी की कमाई को पंख लगे वह जनचर्चा का विषय तो है | देश की ज्यादातर संपत्ति कुल 100 परिवारों के कब्जे में होना भी समतामूलक समाज और सबका विकास की मूल अवधारणा का मखौल  है | लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सब बीते कुछ  सालों में ही हुआ और क्या इसके पहले देश में पूरी तरह समाजवाद था ? राहुल ने अपने परनाना , दादी और पिताजी का जिक्र करते हुए सरकार पर तंज कसा कि हम देश को आपसे ज्यादा जानते हैं | उनके इस कथन में ही सामन्तवाद झलकता है | जिसका शिकार होकर कांग्रेस आज इस दुरावस्था में  है कि उक्त्त तीनों की कर्मभूमि रहे उ.प्र में उसका मत प्रतिशत दहाई के आंकड़े से भी नीचे आ चुका है | इसमें दो राय नहीं है कि भारत में आर्थिक विषमता निरंतर बढ़ती जा रही है | कुछ घरानों के पास धन रखने की जगह नहीं है ,  वहीं करोड़ों लोग गरीबी रेखा से भी नीचे के स्तर पर रह रहे हैं | आजादी के बाद देश में समाजवादी रुझान रखने वाले नेहरु जी प्रधानमन्त्री बने जो सोवियत संघ की साम्यवादी क्रांति के साथ ही चीन में माओवादी सत्ता के बड़े समर्थक थे | सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योगों की नींव भी उनके दौर में रखी गई | उनके बाद का संक्षिप्त काल  शास्त्री जी के नाम लिखा गया लेकिन फिर नेहरू जी की पुत्री इंदिरा गांधी सत्ता में आईं जिन्होंने पार्टी के भीतर मिली चुनौतियों से निपटने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण  और राजाओं के प्रीवीपर्स खत्म करने जैसे कदम उठाकर लोकप्रिय बनने का दांव चला तथा  1971 का लोकसभा चुनाव गरीबी हटाओ नारे पर जीत लिया | 1977 से 1980 के बीच 27 महीने का कालखंड जनता पार्टी सरकार का था जिसके बाद इंदिरा जी पुनः लौटीं और 1984 में अपनी हत्या तक पद पर रहीं | पंडित नेहरु का जमाना देश में बिरला , बजाज और टाटा जैसे उद्योगपतियों का माना जाता था | इनमें टाटा को अगर अलग कर दें तो बिरला और बजाज महात्मा गान्धी के जमाने से कांग्रेस के करीब रहे | वर्धा में बजाज द्वारा बनवाया आश्रम बापू का ठिकाना था वहीं दिल्ली में वे बिरला हॉउस में रहा करते थे | आजादी के बाद बिरला और बजाज दोनों परिवारों ने खूब तरक्की की वहीं टाटा ने राजनीति से सीधे जुड़ने के बजाय व्यावसायिक प्रबंध कौशल का परिचय देते हुए अपना कारोबार बढ़ाया | लेकिन इंदिरा जी की सत्ता में जब प्रणव मुखर्जी का उदय हुआ तब अंबानी नामक औद्योगिक धूमकेतु उभरा जिसने देखते – देखते अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया | अडानी समूह का उत्थान भले ही ऊंची छलांग है लेकिन वह रातों – रात खड़ा हो गया हो ऐसा भी नहीं है | राजीव गांधी ने जरूर लायसेंस प्रणाली ख़त्म कर कुछ घरानों के एकाधिकार को तोड़ने का साहस किया किन्तु उनके राज में सत्ता के गलियारों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दलालों की जो आवाजाही बढ़ी उसकी वजह से  वे सत्ता गंवा बैठे | ये सब देखते हुए राहुल ने अमीर और गरीब भारत को लेकर जो पीड़ा व्यक्त की उन्हें उसकी बुनियाद कब और कैसे पड़ी उसका अध्ययन भी करना चाहिए | उनकी दादी ने जिस गरीबी  हटाओ का नारा दिया वह वास्तविकता क्यों नहीं बन सका ये बड़ा सवाल है | आजादी के दिन तक देश में गरीब ही होते थे लेकिन उसके बाद गरीब से भी गरीब जैसी स्थिति बन जाना क्या उन सत्ताधारियों की विफलता का प्रमाण नहीं है जिन्होंने अनेक दशकों तक निर्बाध होकर सत्ता का सञ्चालन किया | श्री गांधी को याद रखना चाहिए कि गलती उसी दिन हो गई थी जिस दिन टाटा को नमक बनाने की अनुमति दी गई | इस नमक को देश का नमक प्रचारित करने पर किसी ने भी आपत्ति नहीं की | बिरला की बनाई कार की सबसे बड़ी खरीददार सरकार ही थी और बजाज के बनाये स्कूटर की खुलकर कालाबाजारी होती थी | ट्रक बनाने में टाटा का वर्चस्व  था और जब अंबानी सामने आये तब पालिस्टर यार्न के व्यवसाय में उनका एकाधिकार किसकी कृपा से हुआ ये पूरा देश जानता है | कहने का आशय ये है कि अमीर और गरीब भारत के बीच की खाई तो आजादी के बाद ही बन गई थी | हालांकि चुनावी राजनीति के चलते समाजवाद और गरीबी हटाओ के नारे खूब सुनाई देते रहे लेकिन उनकी आड़ में पूंजीवादी ताकतों को मजबूत करने का काम भी जमकर हुआ | चुनावी चंदे का स्रोत पहले भी औद्योगिक घराने थे ,  आज भी हैं और आगे भी रहेंगे | जब तक देश की मौजूदा चुनाव व्यवस्था नहीं बदलती तब तक राहुल गांधी  सत्ता में आ जाएँ तो भी वे इस खाई को पाटने में सफल नहीं होंगे | इंदिरा जी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया और सोनिया गांधी ने खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था करवाकर गरीब हितैषी होने का दावा किया लेकिन 1971 से 2009 तक के लगभग चार दशक में गरीब यदि और गरीब होते हुए गरीबी के स्वीकृत मापदंड से भी नीचे चले गये तब उसके लिए किसी और को कसूरवार ठहराने की जगह श्री गांधी को आत्मावलोकन करते हुए आजादी के बाद से अब तक आई सभी सरकारों को कसौटी पर कसना चाहिए था | लेकिन वे चाहकर भी ऐसा नहीं कर  सकेंगे क्योंकि तब चार उँगलियाँ उनकी अपनी पार्टी और परिवार पर भी उठेंगीं | आज देश जिस स्थिति में  है  उसके लिए पूरा राजनीतिक कुनबा दोषी है क्योंकि राजनेता चाहे वे किसी भी दल के हों अगले चुनाव से आगे की सोच ही नहीं सकते | उनकी अपनी पार्टी उन पर येन केन प्रकारेण चुनाव जितवाने का दबाव बनाती रहती है | चुनाव में अनाप – शनाप धन और संसाधन लगते हैं जो उस जनता से नहीं मिलते जिसकी गरीबी  दूर करने का आश्वासन बीते सात दशकों से बांटा जाता रहा है | ऐसे में अंततः   टाटा  , बिरला , बजाज , अंबानी और अडानी जैसों की शरण ली जाती है जिन्हें बाद में गालियाँ भी दी जाती हैं | देश के तमाम उद्योगपति राज्यसभा में जिन राजनीतिक दलों  के समर्थन से जा पहुँचते हैं वे गरीबों के हमदर्द बनने का दावा करते नहीं थकते | ऐसे में उस खाई को कोई नहीं मिटा सकता जिसका रोना श्री गांधी आजकल कुछ ज्यादा ही रोते हैं | बेहतर होता वे उस दिन को भी याद कर लेते जब 2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के एक दिन पहले ही मुकेश अंबानी सोनिया जी से मिलने पहुंच गये थे | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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