Wednesday 9 February 2022

घोषणापत्र : ये भी बताया जाए कि वायदे पूरे करने पैसे कहाँ से आयेंगे ?




उ.प्र में पहले चरण का प्रचार बंद होने के कुछ घंटों पहले ही  भाजपा और सपा के घोषणापत्र पेश किये गये | भाजपा ने वृद्ध महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा , होली – दीपावली पर दो मुफ्त गैस सिलेंडर , सिंचाई के लिए निःशुल्क बिजली , छात्रों के लिए स्कूटी जैसे वायदे उछाले तो सपा ने हर माह दो पहिया वालों को एक और ऑटो चालकों को तीन लिटर पेट्रोल – सीएनजी , लड़कियों को मुफ्त शिक्षा , लैपटॉप , 300 यूनिट मुफ्त बिजली और एक करोड़ नौकरियों का आश्वासन दे डाला | दोनों के घोषणापत्र में गन्ना किसानों के भुगतान दो सप्ताह में किये जाने की बात भी है  | और भी ऐसे आश्वासन हैं जो देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं | जिन क्षेत्रों में कल मतदान होना है वहाँ के मतदाताओं को ये वायदे किस तरह मलूम होंगे ये सोचने वाली बात है क्योंकि संचार क्रांति के इस युग में भी समाज का एक हिस्सा है जिनके  मन में ये बात गहराई तक बैठ चुकी है कि सरकार किसी की भी बने उनकी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आने वाला |   सपा और भाजपा बीते दस साल में  बारी – बारी उ.प्र की सरकार चला चुके हैं | ऐसे में उनकी ये जवाबदेही भी बनती है कि पिछले घोषणापत्र के वायदों को पूरा किये जाने के प्रमाण पेश करते हुए अगला जनादेश  मांगे | मसलन उ.प्र में गन्ना  किसानों को चीनी मिलों द्वारा किये जाने वाले भुगतान में कभी - कभी एक साल तक लग जाता है |  अखिलेश यादव और योगी आदित्य नाथ दोनों ने पूरे पांच साल तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाई किन्तु गन्ना किसानों की समस्या नहीं सुलझी तब किस मुंह से वे दोनों ये आश्वासन दे रहे हैं कि दोबारा सत्ता मिलते ही वे दो हफ्ते में भुगतान का इंतजाम करवा देंगे | इसी तरह से सपा ने एक करोड़ रोजगार देने का जो वायदा किया है वह भी आसमानी पुलाव पकाने जैसा है | अखिलेश से ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि 2012 से 17 के शासनकाल में उनकी सरकार ने उ.प्र में कितनी नौकरियां दीं और निजी क्षेत्र में कितने रोजगार उत्पन्न किये ? जहाँ तक बात मुफ्त सिलेंडर ,स्कूटी , लैपटॉप , पेट्रोल – सीएनजी और बिजली , खाद जैसे वायदों की है तो ये खुले आम घूस नहीं तो और क्या है ?  बेहतर हो घोषणापत्र चुनाव के ऐलान के साथ ही  पेश किये जाएं जिनसे इनका अध्ययन करने के साथ ही मतदाता उनको पूरा करने के बारे में अपनी शंकाएं और सवाल राजनीतिक दलों के सामने रख सके | लेकिन जानबूझकर वह ऐसे समय पेश किया जाता है जब  चुनाव दूसरे मुद्दों में उलझ चुका होता है | उदाहरण के लिये उ.प्र का पूरा चुनाव यादव, जाट, मुस्लिम , अगड़े - पिछड़े और दलितों के बीच सिमटकर रह गया है | महंगाई और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं लेकिन किसी भी दल के पास इनको हल करने का जादुई चिराग नहीं है | उ.प्र के लाखों लोग दूसरे राज्यों में जाकर काम करते हैं | मुम्बई में तो उ.प्र के लाखों लोग दूसरी और तीसरी पीढी से रह रहे हैं | आज भी वहां से पलायन जारी है | कोरोना की पहली लहर में मुम्बई सहित अनेक महानगरों से जो लाखों श्रमिक बेहद मुश्किल हालातों में घर लौटे उनमें सर्वाधिक उ.प्र के ही थे | उनमें से बहुतों ने कहा कि दोबारा नहीं लौटेंगे किन्तु कुछ समय बाद वे फिर महानगरों की तरफ चल पड़े |   ये देखते हुए नई नौकरियों का वायदा करने वालों को ये बताना चाहिए कि ये नौकरियां किस खदान से निकाली जायेंगी ? लड़कियों और छात्रों को स्कूटी देने जैसे वायदे अपनी जगह ठीक हैं लेकिन त्यौहारों पर गैस सिलेंडर और हर माह मुफ्त पेट्रोल  जनता को बहलाने की चाल है | यदि भाजपा और सपा वाकई लोगों को रसोई गैस और पेट्रोल जैसी चीज मुफ्त देकर  मदद करना चाह रही हैं तो वे पेट्रोल , डीजल और गैस को अपने राज्य में सस्ता करने की घोषणा कर देतीं ताकि समाज के हर वर्ग को उसका लाभ मिले | लेकिन राजनीतिक दलों का लक्ष्य ऐसे वायदे करना मात्र है जिससे कि मतदाताओं को भ्रमित करते हुए समर्थन हासिल कर लिया जाए क्योंकि चुनाव  के बाद जनता के पास घोषणापत्र को लागू करवाने का कोई जरिया नहीं होता | ये देखते हुए बेहतर तो यही होता है कि घोषणापत्र ऐसा हो जिससे पूरे समाज को स्थायी लाभ हो और जिसका अमल सम्भव हो सके | यदि भाजपा और सपा उ.प्र में महंगाई कम करने का ठोस उपाय सुझाते हुए पेट्रोल , डीजल , रसोई गैस , बिजली के साथ ही रोजमर्रे की अन्य चीजों पर लगने वाले कर कम करने का वायदा करते तो वह सभी  को राहत देने वाला होता | महीने में एक लीटर पेट्रोल मुफ्त देने जैसा वायदा रोते हुए बच्चे को एक बिस्किट देकर बहलाने जैसा ही है |  इसी तरह पूरे साल महंगी रसोई गैस करने के बाद दो सिलेंडर मुफ्त देना भी चालाकी है | इस बारे में  ध्यान देने योग्य है कि मोदी सरकार ने रसोई गैस के जो कनेक्शन मुफ्त दिये उनकी भरपाई सिलेंडर के दाम बढ़ाकर कर ली गई | नतीजा ये हुआ कि अधिकतर लाभार्थी  नया सिलेंडर लेने में असमर्थ हो गये | इसी तरह की स्थिति मुफ्त बिजली की है | गरीबों और किसानों को सस्ती या मुफ्त बिजली देने का भार बाकी उपभोक्ताओं पर महंगी बिजली के तौर पर पड़ता है | इस तरह वोटों की मंडी के अर्थशास्त्र ने सरकारों पर कर्ज का ऐसा बोझ लाद दिया है जिसे चुकाने का भार  भावी पीढ़ियों पर होगा | ऐसे में जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक दल मतदान के काफी पहले घोषणापत्र पेश करें ताकि उसके बारे में उनसे सवाल पूछे जा सकें | सपा और भाजपा दोनों चूंकि उ.प्र की सत्ता में रह चुकी हैं इसलिए उनके पास जनता को ये बताने का भरपूर अवसर था कि उन्होंने ऐसा क्या किया जिसके आधार पर उनको दोबारा सत्ता सौंप दी जावे | इसी के  साथ ही वे दोनों ये भी बता सकते थे कि ऐसा कौन सा जनहितैषी कार्य उन्होंने किया जो दूसरी सरकार नहीं कर पाई | अखिलेश और योगी यदि नये  वायदे करने के बजाय अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को मुद्दा बनाते तब चुनाव वास्तविक मुद्दों पर केन्द्रित होता और मतदाताओं को उनके पिछले प्रदर्शन के आधार पर  पुनः अवसर देने न देने का विकल्प रहता | गन्ना किसानों को चीनी मिलों द्वारा समय पर भुगतान नहीं किये जाने की शिकायत पूरे प्रदेश में आम है | सपा और भाजपा दोनों ने अपने घोषणापत्र में 14 दिन के भीतर भुगतान करवाने का वायदा किया है | लेकिन  अखिलेश और योगी दोनों को इस बात का स्पष्टीकरण देना चाहिए था कि वे पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद जब ये नहीं कर सके तब  दोबारा सत्ता में आकर  वे इस वायदे को पूरा करेंगे इसकी क्या गारंटी है ? वैसे भी घोषणापत्र कोई कानूनी दस्तावेज तो होता नहीं जिसका पालन नहीं किये जाने पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज हो सके | सबसे बड़ा सवाल ये है कि जो राज्य अरबों – खरबों के कर्ज में डूबे हों वहां के राजनीतिक दल चुनाव में मुफ्त उपहार बाँटने का वायदा किस अधिकार से कर सकते हैं ? बेहतर हो उन पर ये बताने की भी कानूनी जिम्मेदारी डाली जाए कि वे घोषणापत्र के वायदों को पूरा करने के लिए आर्थिक संसाधन कहां से जुटाएंगे और उनका जनता पर कितना बोझ पड़ेगा ?

- रवीन्द्र वाजपेयी

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