Monday 28 February 2022

युद्ध के बाद गृहयुद्ध में फंस सकता है यूक्रेन : पुतिन की हेकड़ी से रूस भी संकट में



यूक्रेन पर रूस का कब्जा हो या न हो किन्तु  बुरी तरह बर्बाद होने के बाद वह लम्बे समय तक उबरने की स्थिति में नहीं रहेगा | भले ही युद्धविराम हो जाये लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन कब्जाए इलाके खाली कर देंगे ये मान लेना जल्दबाजी होगी | पुतिन का ये कदम  सद्दाम हुसैन द्वारा कुवैत पर किये गये कब्जे जैसा ही है जो अंततः उकी मौत का कारण भी बना | यद्यपि  विश्व बिरादरी चाहकर भी   पुतिन को सद्दाम जैसे अंजाम तक नहीं पहुंचा सकती क्योंकि उस  स्थिति में विश्व  युद्ध की आशंका सही साबित हो सकती है जो शायद ही कोई चाहेगा | लेकिन इससे हटकर देखें तो अमेरिका  ने इस  विवाद  में सीधे हस्तक्षेप न करते हुए भी अपना उल्लू तो सीधा कर ही लिया | अफगानिस्तान से उसको जिस तरह से हटना पड़ा वह किसी अपमान से कम नहीं था | जिस पर रूस ने भी खुशियाँ मनाई थीं | पुतिन का सोचना  था कि अफगानिस्तान में विकास संबंधी परियोजनाओं के जरिये वे वहां रूस  की मौजूदगी बनाये रखेंगे जो मध्य और पश्चिम एशिया पर नजर रखने में सहायक होगा | हालाँकि कुछ समय बाद ही वे समझ गये कि तालिबानी मानसिकता कुत्ते की पूंछ जैसी है जिसे सीधा करना असंभव है | लेकिन इसी बीच यूक्रेन के अमेरिका के निकट जाने की सम्भावना ने उनको  विचलित कर दिया जिसका परिणाम मौजूदा युद्ध है | शुरुवात में ये लगा था कि यूक्रेन के बचाव में अमेरिका और उसके साथी आकर मोर्चा संभालेंगे लेकिन वह उम्मीद हवा – हवाई होकर रह गई | इस नीति से वैश्विक स्तर पर अमेरिका की खूब थू – थू भी हुई लेकिन कूटनीति के जानकार  समझ रहे हैं कि अफगानिस्तान से बेइज्जत होकर निकला अमेरिका इतनी जल्दी दूसरी जगह उलझना नहीं चाहता था | इसीलिये उसने शुरुवाती स्तर पर तो यूक्रेन की पीठ पर हाथ रखा किन्तु जब पुतिन ने आक्रामक कदम  उठाया तब मदद करने से पीछे हट गया | यद्यपि इस संकट की जड़ में तो अमेरिका द्वारा रूस के दरवाजे पर जाकर बैठ जाने की योजना ही थी किन्तु पुतिन ने जिस तरह जल्दबाजी में युद्ध जैसे अंतिम हथियार से ही शुरुवात की उसके कारण उनका देश जीतता दिखते हुए भी पराजय जैसी स्थिति में फंस गया है | ये युद्ध वैसे भी बेमेल है क्योंकि यूक्रेन के पास खुद का सैन्यबल इतना नहीं था  जिससे वह रूस का मुकाबला कर सके |  खबर है दोनों के बीच  वार्ता की सम्भावना बन रही है | बेलारूस या अन्य किसी जगह दोनों देशों के प्रतिनिधि मिल बैठकर युद्द को रोकने और आपसी विवाद हल करने का प्रयास करेंगे | इसका जो परिणाम सतही तौर पर समझ आ रहा है वह यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन ही है | उसके मौजूदा राष्ट्रपति कहें कुछ भी किन्तु वे रूसी हमले का सामना करने में पूरी तरह असमर्थ साबित हो चुके हैं | रूसी सेना को रोकने की कोशिश में निरपराध यूक्रेनी नागरिकों की जान सस्ते में जा रही है | प्रारम्भ में तो  रूसी सेना  नागरिकों को मारने से बची लेकिन अब वह भी बर्बरता पर उतरकर  लूटपाट तथा निर्दोष नागरिकों  की हत्या  में लिप्त होने लगी है | दरअसल अमेरिका भी यही चाहता रहा है और इसीलिये संरासंघ सुरक्षा परिषद में रूसी वीटो के कारण उसे दबाने में असफल रहने के बाद आर्थिक प्रतिबंधों के जरिये उसकी कमर तोड़ने का दांव चल दिया गया जिसका असर दिखाई देने लगा है | इस बारे में उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में  रूस की उपस्थिति अमेरिका जैसी कभी नहीं रही | सात दशक तक चली साम्यवादी व्यवस्था के कारण रूसी जनता भी विश्व बिरादरी में उतनी घुली मिली नहीं है |  भले ही वहां कहने को लोकतंत्र आ गया है लेकिन अब भी साम्यवादी सोच के अवशेष विद्यमान हैं जिनका प्रत्यक्ष अनुभव पुतिन के रवैये से हो रहा है | जैसी खबरें आ रही हैं उनके अनुसार यूक्रेन पर किये गये हमले के बाद रूस की जिस तरह से नाकेबंदी हो रही है उसका अंदाज शायद पुतिन नहीं लगा सके | इसीलिए बर्बादी के मंजर भले  ही यूक्रेन में  दिखाई दे रहे हों लेकिन रूस की  अर्थव्यवस्था अचानक जिस तरह संकट में आ गई है और विश्व बाजार में उसका बहिष्कार हो रहा है उसकी वजह से पुतिन यूक्रेन  पर सैन्य विजय के बावजूद अपने घर में घिरने लगे हैं | भले ही  उनके राजनीतिक प्रभुत्व को हाल – फ़िलहाल कोई खतरा न हो लेकिन रूस की वैश्विक छवि खराब होने से उसका व्यापार बुरी तरह प्रभावित होने लगा है | अमेरिका के साथ खड़े देशों ने रूस के वायुयानों को आने -- जाने से रोककर उसकी एयर लाइंस को आर्थिक नुकसान उठाने बाध्य कर दिया है | बीते तीन दशक में जिन निजी क्षेत्र की कंपनियों ने वैश्विक बाजार में अपना  कारोबार जमाया वे इन प्रतिबंधों के कारण बेकार होकर रह  गईं हैं | रूसी मुद्रा की कीमत तेजी से गिरने के कारण अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी है तथा महंगाई बढ़ने से आम रूसी नागरिक भी युद्ध के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं |  पुतिन द्वारा युद्ध विराम के लिए सहमत होने के पीछे रूसी जनमत का दबाव भी हो सकता है जो इस बात  से आशंकित है कि कहीं उनका देश यूक्रेन में  उसी तरह न फंस जाए जैसा अमेरिका साठ – सत्तर के दशक में वियतनाम में उलझा रहा | अफगानिस्तान में  टांग फ़साने का जो नुकसान रूस ने उठाया उसकी यादें भी ताजा हो उठी हैं | कुल मिलाकर यूक्रेन में भले ही पुतिन को पूरे तौर पर जीत हासिल हो जाये या  रूस वहां काबिज न होते हुए भी अपने मनमाफिक सरकार बनवाकर उसे अमेरिका के गोद में जाकर बैठने से रोक ले किन्तु  जिस तरह के प्रतिबन्ध उस पर दुनिया के अनेक देशों ने लगाये हैं यदि वे जारी रहे तब वह  विश्व बिरादरी में अलग – थलग पड़ जाएगा  | इस विवाद का सबसे बड़ा नुकसान शीत युद्ध के पुनर्जन्म के रूप में होगा | पुतिन को ये याद रखना चाहिये था कि सोवियत संघ ने दूसरे महायुद्ध के बाद अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने के लिए अन्तरिक्ष कार्यक्रमों और रक्षा तैयारियों  पर  तो  बेतहाशा खर्च किया लेकिन मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी  तकनीक के विकास में असफल रहने से आर्थिक महाशक्ति न बन सका | बीते तीन दशक में वह दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगा था | जी – 8 और ब्रिक्स जैसे संगठनों में उसकी उपस्थिति अनिवार्य बन गई थी किन्तु उनकी इस हठधर्मिता के कारण  जिन देशों को इस  विवाद से कुछ भी लेना देना नहीं था  उनकी सहानभूति भी यूक्रेन के साथ हो गई है | अनेक  देशों की जनता संकट में फंसे यूक्रेन को आर्थिक सहायता देने आगे आ रही है | कुछ  देशों ने हथियार भी वहां  भेजे हैं | इन सबसे लगता है यदि  युद्ध जारी रहा तब रूस के सामने भी नई समस्या पैदा हो जायेगी | हो सकता है अमेरिका सहित जो देश  अब तक इस जंग से प्रत्यक्ष रूप से दूर रहे वे भी देर – सवेर अपनी भूमिका का निर्वहन करने आगे आयें | भले ही पुतिन यूक्रेन  में सत्ता परिवर्तन करवाने में कामयाब हो जाएँ लेकिन जिस तरह से उनकी सेना ने यूक्रेन में तबाही की और आम जनता  को खून के आंसू रोने मजबूर किया उसके बाद वहां बनी  रूस समर्थक सरकार जनता का कितना भरोसा जीत सकेगी ये बड़ा सवाल है ? ऐसे में ये कहा जा सकता है कि अमेरिका ने यूक्रेन को धोखा देकर उसे तो बर्बादी की राह पर धकेला ही लेकिन उसके साथ ही रूस को भी ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया जिससे निकलना उसके लिए काफी कठिन होगा और उसकी बड़ी कीमत भी उसे चुकाना होगी | बड़ी बात नहीं युद्ध में परास्त होने के बाद यूक्रेन गृहयुद्ध की चपेट में फंस जाये क्योंकि अमेरिका रूस को परेशान  करने के लिए ऐसा करना पसंद करेगा | जिस तरह के हालात बीते कुछ दिनों में देखने मिले उनके मद्देनजर ये कहा जा सकता है कि  यूक्रेन को आग में झोंकने के प्रयास में पुतिन ने रूस के हाथ भी  जलवा दिए | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


No comments:

Post a Comment