Wednesday 2 February 2022

कमजोरी दूर करने ग्लूकोज की बोतल भी चढ़ाई जाती है वित्तमंत्री जी



वित्तीय वर्ष 2022 – 23 का जो आम बजट गत दिवस वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रस्तुत किया उसे न सिर्फ सत्ता पक्ष अपितु आर्थिक विशेषज्ञ और उद्योग जगत भी दूरगामी लक्ष्यों से प्रेरित बता रहा है | इस बात के लिए केंद्र सरकार  की प्रशंसा भी हो रही है कि उसने पांच राज्यों के चुनाव सिर पर होने के बावजूद बजट को लोक - लुभावन बनाने की बजाय पिछली आर्थिक नीतियों को जारी रखने के दिशा में केन्द्रित रखा | बेतहाशा  महंगाई , घटती आय , बेरोजगारी का संकट , उद्योग – व्यापार पर कोरोना की मार , किसानों और युवाओं में नाराजगी आदि वे मुद्दे थे जिन पर बजट में सीधे ध्यान दिए जाने की अपेक्षा वही लोग कर रहे थे जो आज इस बजट के अभिनंदन गीत गा रहे हैं | बीते एक सप्ताह से बजट से  जिस तरह की उम्मीदें की जा रही थीं वे ठीक उसी तरह से फुस्स साबित हुईं जिस तरह से अनेक  चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और एग्जिट पोल  गलत हो जाते हैं | अभी तक का जो चलन रहा है उसमें लगभग सभी वित्तमंत्री बजट के छोटे से हिस्से में आम जनता को सीधे लाभान्वित करने वाली बातें समाहित किया करते थे | बजट का बड़ा हिस्सा आर्थिक मामलों के जानकारों और बड़े कारोबारियों की  तो  समझ में आ जाता है लेकिन जहां तक आम जनता का सवाल है तो उसके लिए आयकर की दरें और महंगाई पर बजट का प्रभाव ही मायने रखते हैं | वैसे भी बजट जैसे गूढ़ विषय का  सतही तौर पर विश्लेषण करना आसान  नहीं होता | चूंकि इसका प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समाज के हर वर्ग पर पड़ता है इसलिए औसत रूप से शिक्षित  और जागरूक लोग भी बजट की प्रतीक्षा और समीक्षा करने लगे हैं | उस लिहाज से श्रीमती सीतारमण का यह बजट  जटिलताओं से भरा है | आर्थिक समीक्षक इसे भविष्य पर केन्द्रित मान रहे हैं | सरकार ने जिस तरह से इन्फ्रास्टक्चर , शहरी  और ग्रामीण विकास के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के आधुनिकीकरण का लक्ष्य रखा है वह निश्चित तौर पर दूरदर्शिता का प्रतीक है | लघु और मध्यम उद्योग – व्यवसाय के विकास के साथ ही फसल की सरकारी खरीद बढ़ाकर  उसका भुगतान सीधे  किसान के खाते में जमा करने जैसे प्रावधान व्यवस्थाजनित विसंगतियों को दूर करने में सहायक होंगे  | डिजिटल करेंसी का प्रादुर्भाव भी एक क्रन्तिकारी कदम कहा जा सकता है | करदाताओं को होने वाली परेशानियाँ दूर करने की मंशा भी स्वागतयोग्य है | वित्तमंत्री के साथ ही बजट समर्थकों का ये कहना पूरी तरह सही है कि अर्थव्यवस्था को तदर्थवाद और तात्कालिक उद्देश्यों तक सीमित रखने की बजाय लम्बी दूरी की यात्रा की तैयारी इसमें झलकती है | लेकिन सरकार से अपेक्षा की जा रही थी कि वह कोरोना काल के घावों पर मरहम लगाने की दरियादिली भी दिखायेगी | उस दौरान लगाये गए लॉक डाउन से उद्योग व्यापार जगत को हुए घाटे , और बड़ी संख्या में रोजगार छिन  जाने के बाद किसान आन्दोलन का  जो  मानसिक दबाव सरकार पर था उससे बीते कुछ महीनों में वह उबरती नजर आ रही थी | आयकर और जीएसटी के रूप में आने वाला राजस्व भी आशा से ज्यादा होने से उसके हाथ खुलने लगे थे | ओमिक्रोन नामक संकट आया तो जरूर लेकिन उसने  अर्थव्यवस्था पर  प्रारंभिक तौर पर भले ही थोड़ा असर छोड़ा हो लेकिन जल्द ही स्थितियों पर नियन्त्रण पा लिया गया |  चूंकि हमारे देश में सरकार का हर काम चुनाव के मद्देनजर किया जाता है  इसलिए  भी हर कोई ये मानकर चल रहा था कि पांच राज्यों के चुनाव देखते हुए वित्तमंत्री उपहारों की झड़ी लगा देंगी | विशेष रूप से उ.प्र , उत्तराखंड और पंजाब वे राज्य हैं जिनकी किसान आन्दोलन में बड़ी हिस्सेदारी रही इसलिए वहां राहत की बरसात करना केंद्र सरकार की मजबूरी थी किन्तु वित्तमंत्री ने इन कयासों को किनारे रखते हुए पूरा ध्यान  भविष्य केन्द्रित रखने का जो दुस्साहस किया वह आर्थिक नियोजन की दृष्टि से तो  प्रशंसित हो सकता है | प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था को  लोकप्रिय नीतियों के दबाव से मुक्त करने की जो नीति अपनाई है वह भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने में सहायक भी है और सक्षम भी | कोरोना जैसे अकल्पनीय संकट का देश ने जिस तरह सामना किया उससे पूरी दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ा है | महीनों तक लगे रहे लॉक डाउन के दौरान करोड़ों लोगों के घर बैठ जाने से देश में अराजकता फ़ैल सकती थी लेकिन सरकार ने उस स्थिति को पूरी तरह टालकर सराहनीय कार्य किया | लेकिन उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि संकट के उस दौर में जनता ने भी अप्रतिम  धैर्य और अनुशासन का परिचय देते हुए सरकार की  भरपूर मदद की | जरूरतमंदों की सहायता के लिए समाज में जिस तरह की संवेदनशीलता देखने मिली उससे सरकार का हौसला मजबूत हुआ | लगभग दो साल तक चले उस संकट के गुजरने के बाद ये सरकार का फर्ज बनता है कि वह ऐसा कुछ करे जिससे जनता के चेहरे पर  मुस्कुराहट लौट सके | पिछली दीपावली के पहले प्रधानमंत्री ने पेट्रोल – डीजल के दाम घटाने की जो घोषणा की उसने त्यौहार की खुशियाँ दोगुनी कर दी  थीं |  बजट से आम जनता ऐसी ही किसी राहत की उम्मीद लगाये बैठी थी जिस पर वित्तमंत्री ने लेशमात्र भी ध्यान नहीं दिया | ऊपर से उनका ये कटाक्ष जले पर नमक का काम  कर गया कि दो साल से आयकर बढ़ाया नहीं ये क्या कम है | सरकार की नीतियों से देश में विकास नजर आने लगा है |  हाईवे पर चलते हुए हर व्यक्ति इस सरकार की तारीफ़ करता है | रेलवे में ढांचागत सुधार के कार्य भी बड़े पैमाने पर हुए हैं | सीमावर्ती दुर्गम पहाडी क्षेत्रों के साथ ही उत्तर पूर्वी राज्यों में विकास की किरणें पहुंच रही हैं | रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार ने पिछली कमियों को दूर करने का जो काम किया वह निश्चित रूप से सराहनीय है | लेकिन ये कहने में कुछ भी  गलत नहीं है कि बीते दो साल में आम आदमी ही नहीं अपितु समाज के हर वर्ग के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हुई हैं | ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से  कुछ नहीं किया गया लेकिन वह इस प्रचार  को गलत साबित करने में सफल नहीं हो पा रही कि ये सरकार उद्योगपतियों की हितैषी है | कोरोना काल में जब हर किसी की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई तब कुछ उद्योगपतियों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि से उक्त अवधारणा को बल ही मिला है | ये देखते हुए यदि वित्तमंत्री  आयकर की दरों में कुछ कमी कर देतीं या पेट्रोल – डीजल की कीमतों में कटौती जैसी दरियादिली दिखा देती तब ये बजट आम जनता द्वारा भी उतना ही सराहा जाता जितना अर्थशास्त्री उसे पसंद कर रहे हैं | जहाँ तक बात दूरगामी फायदों की है तो उससे किसी को ऐतराज नहीं है लेकिन बीमारी से उठे मरीज की कमजोरी दूर करने के लिए लम्बे समय तक विटामिन और प्रोटीन की गोलियां खाने की सलाह देने के साथ ही उसे ग्लूकोज की बोतल भी चढ़ाई जाती है जिससे वह चलने - फिरने में आसानी महसूस कर सके |  जहां तक बात  दूरदृष्टि की है तो वाहन चालक का सड़क को दूर तक देखना अच्छा होता है लेकिन इसी के साथ उसे आस पास के गड्ढों की ओर भी ध्यान देना चाहिए अन्यथा दुर्घटना का खतरा बना रहता है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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