पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस की कीमतें भाजपा के विरोध में बड़ा मुद्दा है | जिन हितग्राहियों को मोदी सरकार ने मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन दिए उनकी भी ये शिकायत है कि वे 900 रु. का सिलेंडर खरीदने में असमर्थ हैं | महंगाई की ऊंची उड़ान के लिये भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को ही जिम्मेदार माना जा रहा है | मौजूदा केंद्र सरकार जब 2014 में पहली मर्तबा सत्ता में आई थी तब इन चीजों के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में घटने का सिलसिला चल रहा था | फिर भी पिछले घाटे की भरपाई का हवाला देते हुए दाम कम नहीं किये गये | कुछ साल बाद जब पेट्रोलियम कम्पनियों का खजाना लबालब होने लगा तब भी आम उपभोक्ता को राहत देने से सरकार पीछे हटती रही | यद्यपि मौजूदा हालात में पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस की कीमतें अपने सर्वकालीन उच्च स्तर पर आ चुकी हैं जिसका कारण वैश्विक स्तर पर आई उछाल को बताया जा रहा है | लेकिन सरकार ये स्वीकार करने से बचती है कि पेट्रोलियम पदार्थों पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये कर भी कीमतों को आसमान पर पहुंचाने का कारण बने हुए हैं | गत वर्ष दीपावली पर प्रधानमन्त्री ने अचानक करों में कमी का ऐलान कर लोगों को खुश होने का मौका दे दिया | उसके बाद राज्यों ने भी कीमतें घटाने में सहयोग दिया | एक झटके में 10 से 12 की कमी आने से लोगों ने बड़ी राहत महसूस की | उस समय ये उम्मीद भी जताई गई कि प्रधानमन्त्री का वह कदम शायद पेट्रोल – डीजल को भी जीएसटी के अंतर्गत लाने की शुरुआत है | लेकिन उसके बाद हुईं जीएसटी काउंसिल की अनेक बैठको में इस आशय का कोई निर्णय नहीं हुआ | हालाँकि दीपावली पर कीमतों में कमी किये जाने के बाद मूल्य स्थिर बने हुए है परन्तु अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वृद्धि के बावजूद भारत में मूल्यवृद्धि से जो परहेज किया जा रहा है उसके पीछे विशुद्ध चुनावी रणनीति ही है | अन्यथा बीते 103 दिनों से दाम अपरिवर्तित रखने का और कोई कारण नजर नहीं आता | इसी बीच गत दिवस अचानक एक समाचार ने लोगों का ध्यान खींचा कि चुनावी दौर खत्म होते ही पेट्रोल – डीजल एक बार फिर महंगे किये जायेंगे और वृद्धि 10 से 15 रु. प्रति लिटर हो सकती है | यदि ये सच है तो वह दीपावली पर दी गयी राहत को ब्याज सहित वसूलने जैसा होगा | यद्यपि इस बारे में केंद्र सरकार या किसी पेट्रोलियम कम्पनी ने कुछ भी नहीं कहा लेकिन चुनाव वाले राज्यों में भी ये प्रचार जमकर हो रहा है कि मतदान खत्म होने के बाद न सिर्फ पेट्रोल – डीजल महंगे किये जा सकते हैं अपितु गरीबों को बांटा जाने वाला मुफ्त राशन भी बंद कर दिया जावेगा | क्या होगा , क्या नहीं ये फ़िलहाल तो कोई नहीं बता सकता | लेकिन दूसरी तरफ ये भी जरूरी है कि इस बारे में अफवाहों को फैलने से रोका जावे | उल्लेखनीय है पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस की कीमतें स्थिर रखने से भी जनता की नाराजगी कम नहीं हुई है | पांच राज्यों में यदि भाजपा का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा तो उसके लिए पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस के ऊंचे दाम बड़ा कारण कहलायेंगे | कोरोना काल में तो सरकार के पास संसाधनों की कमी के चलते पेट्रोलियम पदर्थों को महंगा रखने का कारण भी था किन्तु बीते कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था पुरानी रफ्तार पर आती जा रही है | जीएसटी सहित अन्य प्रत्यक्ष करों का संग्रह भी लक्ष्य को हासिल कर रहा है | अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति पर विकास दर का आँकड़ा 8 फीसदी के ऊपर ही जाएगा | ऐसे में जबकि बुरे समय में जनता ने तकलीफ सहते हुए भी सरकार का साथ दिया तब उसे भी ये सोचना चाहिए कि वह उस उपकार का बदला कैसे चुकाए ? वैसे ये बात अच्छी है कि केंद्र सरकार पेट्रोलियम के विकल्पों का उपयोग बढ़ाकर कच्चे तेल के आयात को कम करने के काम में जुटी हुई है | इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के अलावा पेट्रोल में एथनाल के मिश्रण से उसके दाम कम करने पर भी काम चल रहा है | लेकिन इसके पूरी तरह से लागू होने में अभी समय लगेगा | तब तक उपभोक्ताओं को भारी – भरकम कीमतों से राहत दिलाने के लिए केंद्र सरकार को आगे आना चाहिए | जिस तरह प्रधानमन्त्री ने दीपावली के मौके पर जनता को राहत का सन्देश दिया वैसी ही मेहरबानी होली के समय की जानी अपेक्षित है | बेहतर तो यही होगा कि पेट्रोल - डीजल और रसोई गैस को जीएसटी के अंतर्गत लाकर उनके कीमतों को लेकर बना हुआ रहस्य खत्म कर दिया जाये | अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों के अनुसार घरेलू बाजार में घट – बढ़ होती रहेगी किन्तु जीएसटी के कारण सरकारी मुनाफाखोरी पर तो लगाम लग ही सकेगी | रही बात राज्यों को मिलने वाले राजस्व में कमी की तो इस बारे में अर्थशास्त्र का सीधा – सरल नियम ये है कि उपभोक्ता को होने वाली बचत किसी न किसी रूप में बाजार में आती ही है जिससे सरकार को कर मिल जाता है | महंगाई को विकास के साथ जोड़कर भी देखा जाता है परन्तु हमारे देश में अधिक कराधान महंगाई का सबसे बड़ा कारण है | मोदी सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक सुधार किये है लेकिन अभी भी कर ढांचे में वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी जिससे लगता वह जनता के कन्धों का बोझ कम करने के प्रति ईमानदार है | उसे अपने दिमाग से ये अवधारणा निकालनी होगी कि पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस विलासिता की वस्तुएं हैं | जिस तरह मोबाइल फोन अब आम आदमी की जरूरत बन गया है उसी तरह पेट्रोल – डीजल और रसोई गैस भी उसकी दैनिक आवश्यकताओं में शामिल है | ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए वह कीमतों में अनाप – शनाप वृद्धि की आशंकाओं को दूर करने के साथ ही इस बात का आश्वासन दे कि वाकई वे अच्छे दिन आने वाले हैं जिनका आश्वासन 2014 में दिया गया था।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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