Friday 18 February 2022

मुफ्त बिजली ने विद्युत मंडलों में अंधेरा कर दिया : अमरिन्दर ने क्या गलत कहा था



चुनाव के समय अनेक ऐसी बातें उजागर होती हैं जिन पर अन्यथा पर्दा पड़ा रहता है | इसका ताजा उदाहरण कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पेश किया | पंजाब में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन  अमरिंदर सिंह को हटाये जाने का कारण ये बताया कि वे मुफ्त बिजली नहीं देना चाहते थे | हालाँकि कुछ समय पूर्व  उन्होंने इसका कारण भाजपा से उनकी मिली भगत बताया था | गत दिवस श्री गांधी ने पंजाब में हुए सत्ता परिवर्तन का जो कारण बताया उसे अब तक क्यों छिपाकर रखा गया ये बड़ा सवाल है | उनके अनुसार कैप्टन ने ये कहते हुए मुफ्त बिजली देने से मना  किया था कि उनके बिजली कम्पनियों के साथ अनुबंध हैं | पंजाब में दो दिन बाद मतदान होने वाला है | इस बार मुकाबला बहुकोणीय  है | अमरिन्दर ने जहां अपनी नई  पार्टी बनाकर भाजपा से गठजोड़ कर लिया वहीं अकाली दल  बसपा के साथ मिलकर मैदान में है | आम आदमी पार्टी सत्ता की प्रमुख दावेदार बनकर कांग्रेस के सामने है तो किसान आन्दोलन से जुड़े कुछ संगठनों ने भी अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं | कांग्रेस ने पार्टी  की अंतर्कलह खत्म करने का जो प्रयास किया वह उल्टा गले पड़ गया क्योंकि जिस तरह श्री सिद्धू ने कैप्टन के लिए मुसीबतें पैदा कीं वैसी ही स्थितियां उन्होंने नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ बना रखी हैं | ऐसे में कांग्रेस को कुछ सूझ नहीं रहा | उसके अनेक वरिष्ठ प्रादेशिक नेता पार्टी आलाकमान से नाराज हैं | सांसद मनीष तिवारी तो खुलकर बयानबाजी भी कर रहे हैं | हाल ही में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने पार्टी छोड़ते हुए कैप्टन को हटाये जाने के तरीके पर भी  सवाल उठाये | ऐसा लगता है उनके आरोपों की सफाई देने हेतु श्री गांधी ने उसका  वह कारण उद्घाटित किया जिसे वे अब तक न जाने किस कारण से छिपाए रहे |  लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो वही बात पार्टी शासित अन्य राज्यों में कितनी   लागू है ये बड़ा सवाल है | गत दिवस उनके  बयान के बाद ही अनेक लोगों ने राजस्थान में महंगी बिजली पर कटाक्ष करते हुए श्री गांधी से सवाल किया कि वे अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से कब हटायेंगे ? इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये है कि  म.प्र में स्व. अर्जुन सिंह ने झुग्गी – झोपड़ियों में रहने वालों को मुफ्त एक बत्ती कनेक्शन देकर इसकी शुरुवात की थी | उन दिनों म.प्र का विद्युत मंडल देश में सबसे समृद्ध माना जाता था | उस निर्णय के साथ ही  स्व. सिंह तो गरीबों के मसीहा बन बैठे लेकिन धीरे – धीरे म.प्र का विद्युत मंडल गरीब होता गया  | अर्जुन सिंह जी ने गरीबों को मुफ्त जमीनों का पट्टा देने की योजना भी चलाई जिसके कारण खाली सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण की बाढ़ आती गई जिसे  वोट बैंक के फेर में  वैध स्वरूप प्रदान करने की भेड़ चाल पूरे देश में चल पड़ी | देखा – सीखी उस समय  अमरिन्दर सिंह ने भी पंजाब में किसानों को मुफ्त बिजली का खेल शुरू किया जिससे उन्हें तो सत्ता मिल गई किन्तु धीरे – धीरे समृद्धि का प्रतीक पंजाब भी आर्थिक दृष्टि से विपन्न होता गया | मौजूदा दौर में मुफ्त बिजली नामक अस्त्र का  प्रयोग कर  आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में जिस तरह सत्ता हासिल की तो अन्य पार्टियों को भी उसका चस्का लग गया | पंजाब और गोवा में इसी फार्मूले को अपनाकर अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी को सत्ता की दौड़ में ला खड़ा किया | जिसकी नकल करते हुए उ.प्र में सपा ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वायदा कर दिया | दूसरी पार्टियाँ भी घुमा – फिराकर मुफ्त या सस्ती बिजली देने का लालच मतदाताओं को दे रही हैं | इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये है कि मुफ्त बिजली बांटने वाली सरकारों को भी कालान्तर में जनता ने सत्ता से बाहर कर दिया | म.प्र में तो कांग्रेस बीते लम्बे समय से विपक्ष में बैठी है | स्व. अर्जुन सिंह के मुफ्त बिजली के कदम ने हालात यहाँ तक बिगाड़ दिए थे कि उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने दिग्विजय सिंह की सत्ता में म.प्र का बिजली  संकट अपने चरम पर आ पहुंचा और वही उनकी सत्ता जाने का बड़ा कारण बना | ऐसे में पंजाब में मुफ्त बिजली देने से अमरिन्दर ने इंकार किया तब उनके निर्णय को बजाय राजनीति के आर्थिक कसौटी पर भी  परखा जाना चाहिए था | बिजली के मामले में उ.प्र कभी बेहद बदनाम था | शहरों और गाँवों में जनरेटरों की कानफोडू आवाज और धुंआ हलाकान करते थे | लेकिन वहां स्थिति में जबरदस्त सुधार हुआ है जिसे पक्ष – विपक्ष सभी स्वीकार करते हैं | लेकिन मुफ्त बिजली के वायदे यदि प्रदेश को अँधेरे युग में लौटा दें तो आश्चर्य नहीं  होगा क्योंकि बिजली मुफ्त भले ही बाँट दी जाए लेकिन उसका उत्पादन मुफ्त नहीं होता | आजकल निजी क्षेत्र से भी राज्य सरकारें बिजली खरीदती हैं जिसके लिए दरों संबंधी दीर्घकालीन अनुबन्ध किये जाते हैं | ऐसे में पैसा देकर खरीदी जाने वाली चीज मुफ्त या सस्ते दाम पर बाँटने  या बेचने से जो आर्थिक हानि होती है उसकी भरपाई राज्य रिज्रर्व बैंक से कर्ज लेकर करते हैं और उसका दंड अन्य उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है | राहुल गांधी विदेश में पढ़े और वहां काम भी किया  है | अभी  भी समय – समय पर विदेश यात्रा करते रहते हैं | इसलिये  ये मानना गलत न होगा कि उनको देश और दुनिया के बारे में समुचित जानकारी है | मौजूदा परिदृश्य में गरीबों को मुफ्त खैरात बांटकर उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाना भले ही चुनाव जीतने में सहायक हो जाता है किन्तु दरअसल वह गरीब विरोधी कदम ही होता है क्योंकि मुफ्त बिजली , पानी या अनाज देने के कारण सरकारी खजाने को होने वाले  नुकसान की भरपाई  करों के रूप में की जाती है | जिसका अंतिम परिणाम महंगाई के रूप में सामने आये बिना नहीं रहता |  जिन लोगों को मुफ्त बिजली मिलती है वे भी दैनिक उपयोग की कोई चीज खरीदते हैं तब महंगाई उन्हें भी कष्ट देती है | बेहतर होगा राहुल जैसे युवा पीढी के नेता राजनीति को ढर्रे से निकालकर अपने सुशिक्षित होने का परिचय दें | अमरिन्दर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया  जाना कांग्रेस पार्टी का आन्तरिक मसला था | लेकिन जब श्री सिद्धू उनके विरुद्ध अभियान चला रहे थे तब मुफ्त बिजली का मुद्दा किसी भी रूप में सामने नहीं आया था | पूर्व मुख्यमंत्री अनुभवी राजनेता हैं जो मुफ्त बिजली के कारण अपने राज्य की आर्थिक बदहाली का अनुभव  कर चुके थे | इसीलिए शायद उनके द्वारा उसके लिए मना किया जाता रहा होगा | बेहतर तो ये होता  इसके लिए कैप्टन की तारीफ़ की जाती  | आने वाले समय में बिजली उत्पादन में निजी क्षेत्र की भूमिका और बढ़ने वाली है | राज्य सरकारें अनुबंधित दरों पर उनसे जो बिजली खरीदती हैं वह बेहद सस्ती होती है किन्तु उसके वितरण पर  होने वाला खर्च जोड़ने से उसके दाम बढ़ते हैं | बावजूद उसके यदि मुफ्तखोरी न हो तो वह आज के आधे दाम पर जनता , किसानों और उद्योगों को दी जा सकती है | लेकिन दिन -  रात वोटों के  मायाजाल में फंसे राजनेता आर्थिक विषयों में जिस तरह  राजनीति की घुसपैठ करवाते हैं वही अंततः महंगाई का कारण बनती है | यदि आने वाले समय में भी इसी तरह की मुफ्तखोरी को वे  बढ़ावा देते रहे तब पूरी व्यवस्था की वही हालत  होगी जिससे आज म.प्र विद्युत् मंडल सहित देश के  अन्य सरकारी बिजली संस्थान गुजर रहे हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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