Tuesday 8 February 2022

राजनीति के मैदान में अपराधियों के डेरे : राम रहीम के बाहर आने से उठे सवाल



भारतीय प्रजातंत्र वाकई बहुरंगी है | इसीलिए केवल राजनीतिक दल और नेता ही नहीं वरन साधु – संत और मठाधीश भी चुनावी राजनीति को प्रभावित करते हैं | गुजरात में सोमनाथ का मंदिर नेताओं के लिए पूजनीय बन जाता है वहीं कर्नाटक में मठ , मतदाताओं को नियंत्रित और निर्देशित करते हैं | उ.प्र में अयोध्या , मथुरा और काशी के बिना चुनावी वैतरणी पार नहीं होती | म.प्र में उज्जैन के महाकालेश्वर , दतिया की पीताम्बरा पीठ और नर्मदा का पूजन - अर्चन राजनेताओं की जरूरत बन गया है | देश के अन्य हिस्सों में भी धार्मिक स्थल और उनमें बैठे महंत चुनावी मौसम में महत्वपूर्ण हो जाते हैं | इसी तरह पंजाब और हरियाणा में कुछ डेरे और आश्रम हैं जिनके प्रमुख हजारों - लाखों श्रद्धालुओं को प्रभावित करते हैं | वैसे तो ये धर्म के साथ ही समाजसेवा के क्षेत्र में काम करते हैं लेकिन बीते कुछ सालों में इनके प्रमुख अपनी अपराधिक और आपत्तिजनक गतिविधियों के कारण विख्यात कम कुख्यात ज्यादा हो चले हैं | इन्हीं में से एक है डेरा सच्चा सौदा जिसका पंजाब के मालवा अंचल में जबरदस्त प्रभाव बताया जाता है | इसके बहुचर्चित प्रमुख बाबा राम रहीम दुष्कर्म और ह्त्या के अपराध के लिए 20 साल की सजा काट रहे हैं | उनकी रंगीनियों के किस्से काफी पहले से चर्चा में आ चुके थे | हत्या और दुष्कर्म में जेल की हवा खा रहे राम रहीम को गत दिवस हरियाणा सरकार ने 21 दिन का फरलो ( अवकाश ) दे दिया | जेल में बंद कैदियों को समय – समय पर पारिवारिक कार्य अथवा इलाज आदि के लिए सीमित समय के लिए जेल से छुट्टी दी जाती है | राम रहीम को भी उसी के अंतर्गत यह अवकाश दिया गया | लेकिन इसमें एक पेंच ये फंस गया कि कुछ समय पूर्व जब उन्होंने अपनी माँ की चिकित्सा के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति माँगी तब मात्र एक दिन के .लिए वह दी गई जबकि इस बार परिवार से मिलने के नाम पर 21 दिन के लिए उन्हें जेल से बाहर आने दे दिया गया | इस पर विवाद खड़े किये जा रहे हैं क्योंकि राम रहीम के बाह्रर आने के समय पंजाब में विधानसभा चुनाव पूरे जोर पर है | जैसी की खबरें आ रही हैं उनके अनुसार बाबा के लाखों अनुयायी उनके फतवे का इंतजार कर रहे हैं | राम रहीम की बीते दो चुनावों में भी सक्रिय भूमिका थी | कहा जाता है 117 में से तकरीबन 50 सीटों पर उनके अनुयायी बड़ी संख्या में हैं | बाबा किसका समर्थन करेंगे ये स्पष्ट नहीं है | वैसे भी पंजाब के चुनाव इस बार सही मायनों में बहुकोणीय हो गए हैं | ऐसे में किसी भी क्षेत्र में कुछ हजार मत भी थोक में किसी एक प्रत्याशी को मिल जाएँ तो उसका बेड़ा पार हो जाएगा | सवाल ये है कि राम रहीम को जेल से बाहर आने की अनुमति ऐसे समय दी गई जबकि चुनाव आयोग के निर्देशन पर स्थानीय प्रशासन अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों पर कड़ी नजर रखता है | बाबा तो हत्या और दुष्कर्म जैसे अपराध की सजा भुगत रहा है | राजनीति का अपराधीकरण रोकने के प्रति तो चिंताएं बहुत व्यक्त की जाती हैं लेकिन चुनाव में अपराधी प्रकरणों के आरोपियों की उम्मीदवारी इस आधार पर उचित ठहराई जाती है कि जब तक अदालत दंड न दे तब तक किसी को दोषी नहीं माना जा सकता | लेकिन जहाँ तक राम रहीम को चुनाव के समय जेल से बाहर आने की सुविधा दिये जाने का सवाल है तो वे तो गंभीर अपराधों के लिए 20 साल का कारावास भुगत रहे हैं | ऐसे में उनका अतीत देखते हुए चुनाव के कुछ समय पूर्व उनका जेल से बाहर आना चुनाव को प्रभावित किये बिना नहीं रहेगा | वे किसके पक्ष में हैं ये तो वे ही जानें , लेकिन हरियाणा सरकार का ये तर्क बेमानी है कि इसे चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि कैदियों को मिलने वाली अवकाश सुविधा उनका अधिकार है | राम रहीम कोई साधारण अपराधी न होकर एक शातिर व्यक्ति है जिसने साधु का मुखौटा धारण कर शैतानी हरकतें कीं | उन जैसे और भी अनेक बाबा इसी तरह के आरोपों के चलते जेलों में बंद हैं | सवाल ये भी है कि राजनीतिक दलों और नेताओं को क्या अपने संगठन और जनाधार पर भरोसा नहीं रहा जो वे राम रहीम जैसे लोगों के मोहताज बनकर रह गये हैं | राम रहीम के अनुयायियों की उनके प्रति आस्था का जो भी कारण हो लेकिन एक जघन्य अपराधी हमारे लोकतंत्र को नियंत्रित करे ये बात अपमानजनक है | दुर्भाग्य से राजनीति करने वालों की विश्वसनीयता इस हद तक घट गयी है कि उनको चुनाव जीतने के लिए भी राम रहीम जैसे घटिया इंसान का सहारा लेना पड़ता है जो साधु की शक्ल में शैतानी सोच रखते हैं | राजनीति के अपराधीकरण को रोकने पर प्रवचन देने वाले जिस तरह इन राम रहीम जैसों के सामने घुटना टेक होत्ते हैं ये देखकर दुःख भी होता है और गुस्सा भी आता है | चिंता का विषय ये है कि राजनीति में अपराधियों के डेरे घटने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं |


- रवीन्द्र वाजपेयी

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