Tuesday 22 February 2022

चाहें न चाहें किन्तु मानना तो संविधान को ही पड़ेगा क्योंकि धार्मिक आजादी उसी की देन है



कर्नाटक के शिमोगा में एक हिन्दू युवक की हत्या के बाद पैदा हुए तनाव ने सांप्रदायिक रूप ले लिया | चूंकि हत्या के आरोप में जिसे पकड़ा गया वह भी मुस्लिम है इसलिए तनाव और बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता | इस घटना की पृष्ठभूमि माना  जा रहा हिजाब संबंधी  विवाद राज्य के उच्च न्यायालय में विचाराधीन है | एक  शिक्षण संस्थान की कक्षा में कुछ मुस्लिम छात्राओं द्वारा अचानक हिजाब पहिनकर आने के बाद प्रबन्धन ने उसका विरोध किया तो मामला और बढ़ गया | क्रिया की प्रतिक्रिया का असर धीरे – धीरे   देश के अन्य  हिस्सों में भी नजर आने लगा और बहस मुस्लिम परम्पराओं के पालन की  अनिवार्यता पर आकर टिक गयी | हिजाब के उपयोग के  प्रति मुस्लिम समुदाय की जो युवतियां उदासीन हो चली थीं वे भी अचानक पर्दानशीं दिखने  लगीं | जाहिर है इसके पीछे धर्मिक कट्टरपन ही है अन्यथा इस समाज की नई पीढ़ी  धर्म का पालन करते हुए भी दकियानूसीपन से बाहर  निकलने को बेताब नजर आने लगी है | लेकिन कर्नाटक में जो हुआ उसकी शुरुआत किसी धार्मिक आदेश या परंपरावश न होकर किसी ऐसे संगठन के इशारे पर हुआ जो  धार्मिक कट्टरता के फैलाव का काम कर रहा है | यही वजह थी कि कक्षा में अचानक हिजाब के  उपयोग की जिद पकड़ ली गई | पूर्व में वही छात्राएं संस्थान के नियमों के अनुसार परिसर में आने तक ही हिजाब का उपयोग करती थीं किन्तु कक्षा में उसके उपयोग का हठ उन्हें क्यों और कहाँ से सूझा इसका संतोषजनक उत्तर मिलना बहुत जरूरी है क्योंकि इसी में वह राज छिपा हुआ है जिससे बात इस हद तक बढ़ी | जहाँ तक इसके चुनाव से जुड़ने की बात है तो ध्यान देने योग्य बात ये है कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वे सब कर्नाटक से काफी दूर हैं | सबसे करीबी राज्य गोवा में भी मुस्लिम मत उतने प्रभावशाली नहीं हैं | लेकिन जिस तरह से हिजाब को लेकर मुस्लिम समुदाय खुलकर सामने आया और काफी हद तक उसने आक्रामक रुख प्रदर्शित किया , वह चौंकाने वाला रहा | देश भर के मुस्लिम संगठन और धर्मगुरु शरीयत के मुताबिक चलने की बात कहते हुए हिजाब के औचित्य को अधिकार की शक्ल में साबित  करने में जुट गए | इस बारे में ये कहना गलत न होगा कि मुस्लिम समाज में नई पीढ़ी की लडकियां तक अपने विचार खुलकर व्यक्त करने में डरती हैं , इसलिए उनकी इच्छा सही रूप में बाहर नहीं आ पाती | 21 वीं सदी में भी इस  समुदाय के ज्यादातर लोग मुल्ला – मौलवियों की हिदायतों को बिना जांचे – परखे मान लेने की मानसिकता वाले हैं | हालांकि नेता या नौकरशाह बने अनेक  मुस्लिमों  में आधुनिक जीवन शैली का पालन करने की प्रवृत्ति विकसित होने लगी है लेकिन बहुतायत उन्हीं की है जो शरीयत से इतर सोचने का साहस नहीं कर पा रहे | सबसे बड़ी बात ये है कि मुल्ला  – मौलवी   धार्मिक नियमों और रीति – रिवाजों का जो हवाला देते हैं  उनके बारे में भिन्न विचार व्यक्त करने वालों को खलनायक मानकर किनारे कर दिया जाता है | हिजाब को लेकर चल रहा विवाद दरअसल एक शिक्षण संस्थान के  अनुशासन को तोड़ने की  जिद पर आधारित है जिसे धार्मिक अधिकार का नाम दे दिया गया | जहाँ तक बात धर्म के पालन की स्वतंत्रता की है तो वह संस्थागत अनुशासन और देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकती | इसीलिये सऊदी अरबी जैसे कट्टर इस्लामी देश में सड़क चौड़ी करने के लिए यदि मस्जिद हटा दी जाती है तो कोई विरोध नहीं होता | वैसे मुस्लिम समुदाय में भी मुल्ला – मौलवियों का वैसा ही प्रभाव है जैसा हिंदुओं  में साधू – सन्यासियों और ईसाइयों में पादरियों का | जैन मुनि भी अपने  धर्म को मानने वालों को प्रेरित और प्रभावित करते हैं जबकि सिखों में गुरुद्वारों से कही गयी बात का वजन होता है | इन धर्मों में भी कट्टर सोच वाले धर्माचार्य और अनुयायी न हों ऐसा सोचना सच्चाई से मुंह चुराना होगा परन्तु  ये कहना सौ फीसदी सही है कि भारत के  मुस्लिम समुदाय में सुधारवादी सोच का विकास तुलनात्मक तौर पर  धीमा होने से ये समाज शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर मुख्यधारा में आने से वंचित है |  ये देखकर आश्चर्य होता है कि आज तक मुसलमानों को ये बात  समझ नहीं आ रही कि उनको पिछड़ा रखना बड़े षडयंत्र का हिस्सा है , जिसे रचने वाले उनके कतिपय धर्मगुरु और राजनेता हैं | इन दोनों की संगामित्ती ने इस समुदाय को वोट बैंक रूपी छोटी सी  हैसियत देकर आत्ममुग्ध  कर रखा है | बजाय हिजाब जैसी बहस में उलझने के यदि मुस्लिम समुदाय अपनी बदहाली के असली कारणों को समझकर उन्हें दूर करने के बारे में प्रयासरत हो तो वह अपने धर्म का बेहतर तरीके से पालन कर सकेगा | आज इस समुदाय की जो शैक्षणिक और सामाजिक बदहाली है उसकी वजह वही मुद्दे हैं जिनमें उलझकर उसके नौजवान भी अपने भविष्य को असुरक्षित और अनिश्चित बना रहे हैं | कर्नाटक में एक छोटे से विवाद को स्थानीय स्तर पर सुलझाने की समझदारी दिखाई जाती तब गत दिवस हुई हत्या जैसी वारदात से बचा जा सकता था | अब उसकी प्रतिक्रया में वैसी ही जघन्यता दिखाई गई तब बात और बढ़ेगी | राजनीति की अपनी कार्यशैली है जो वोट से शुरु होकर उसी पर खत्म भी हो जाती है | हिजाब विवाद के पीछे और आगे भी यही नजर आ रहा है | इसलिए बेहतर तो यही होगा कि उच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार किया जावे | उससे असंतुष्ट पक्ष चाहे तो सर्वोच्च न्यायालय भी जा सकता है | लेकिन सड़क पर ही ऐसे मामलों को घसीटा जाता रहा  तो फिर खून – खराबे  जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ होती रहेंगी | चुनाव का मौजूदा दौर तो कुछ  दिनों के बाद खत्म हो जायेगा लेकिन ऐसी घटनाओं के घाव नहीं  भरते | मुसलमान भी इस देश के हिस्से हैं और  उनको भी जो धार्मिक आजादी प्राप्त है वह  संविधान ने ही दी है | इसलिए उन्हें अपने बीच के उन लोगों को रोकना चाहिए जो ये कहते हैं कि वे शरीयत को मानेंगे संविधान को नहीं | ऐसे लोगों को ये समझाने की जिम्मेदारी मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों के साथ सुधार के पक्षधर धर्मगुरुओं की है कि संविधान की अवहेलना करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा क्योंकि जिस धर्म निरपेक्षता का राग दिन रात अलापा जाता है वह किसी धार्मिक ग्रन्थ की नहीं अपितु  इसी संविधान की ही देन है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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