दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इण्डिया गेट तक जाने वाले मार्ग का नाम राजपथ से बदलकर कर्तव्य पथ होने के साथ ही समूचे इलाके का पूरा स्वरूप ही बदल दिया गया है | सेन्ट्रल विस्टा प्रकल्प के अंतर्गत न सिर्फ संसद अपितु सचिवालय सहित अनेक महत्वपूर्ण शासकीय कार्यालय एक जगह लाये जा रहे हैं | संसद का शीतकालीन सत्र भी नई संसद में होगा | तकरीबन 19 एकड़ में फ़ैली इस परियोजना में उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवास भी बनाये गये हैं | आम जनता के आमोद - प्रमोद को दृष्टिगत रखते हुए सभी राज्यों के व्यंजनों के स्टाल लगाये जायेंगे | अभी तक सचिवालय के तौर पर उपयोग हो रहे नॉर्थ और साउथ ब्लॉक संग्रहालय में बदल जायेंगे | कुल मिलाकर ये व्यवस्था केन्द्रीय सत्ता के विभिन्न अंगों में बेहतर समन्वय और प्रशासनिक कसावट लाने के उद्देश्य से बनाई गई है | मौजूदा संसद भवन में स्थानाभाव महसूस किया जाने लगा था | उसके समीप बनाई गई एनेक्सी भी बढ़ती संसदीय जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही थी | सबसे बड़ी समस्या विभिन्न मंत्रालयों के अलग – अलग भवनों में होने से थी जिसकी वजह से सुरक्षा प्रबन्ध पर भी खर्च ज्यादा होता रहा | लेकिन सेंट्रल विस्टा के निर्माण के पीछे सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है सांसदों की संख्या में वृद्धि होने पर उनके बैठने के लिए पर्याप्त स्थान की व्यवस्था | हालाँकि इस बारे में अभी तक कोई नीतिगत संकेत तो सामने नहीं आये लेकिन प्रधानमंत्री नर्रेंद्र मोदी की कार्यशैली चौंकाने वाले बड़े निर्णय करने की रही है | और जैसी कि चर्चा है उसके मुताबिक 2024 का लोकसभा चुनाव वर्तमान 545 की बजाय ज्यादा सीटों के लिए करवाया जा सकता है और उसके लिए बाकायदा संसद में प्रस्ताव लाकर नए सिरे से परिसीमन कराया जाएगा | निश्चित रूप से ये मोदी सरकार का तुरुप का पत्ता होगा जिसका विरोध विपक्ष भी नहीं कर सकेगा क्योंकि लोकसभा की सीटें बढ़ने से उसके अवसर भी बढ़ जायेंगे | प्रश्न ये है कि इसकी जरूरत क्या है तो इस बारे में हुए अनेक अध्ययनों में ये बात निकलकर आ चुकी है कि देश की जनसंख्या के मद्देनजर लोकसभा की सदस्य संख्या में वृद्धि आवश्यक है | ये कितनी हो ये विचार का मुद्दा हो सकता है लेकिन नई लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था किये जाने से इस दिशा में बड़ा निर्णय होने की प्रबल संभावना है | हालाँकि सांसदों की संख्या में वृद्धि से वेतन - भत्तों , यात्रा और आवास पर होने वाला खर्च भी बढ़ेगा परंतु मतदाताओं की संख्या हर चुनाव में बढ़ती जा रही है जिसे देखते हुए संसद में उनके प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाया जाना उचित ही कहा जाएगा | लेकिन केवल संख्या बढाने मात्र से सांसदों की कार्य शैली में सुधार हो जायेगा और वे जनता के प्रति पहले से अधिक जवाबदेह हो जायेंगे ये उम्मीद पाल लेना अपने आप को धोखा देना होगा | दुर्भाग्य से आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे देश में ज्यादातार जनप्रतिनिधि कसौटी पर खरे नहीं उतरे | इसका सबसे बड़ा कारण उनमें सीखने की प्रवृत्ति का अभाव है | संसद का पुस्तकालय बहुत ही समृद्ध है लेकिन अवकाश के समय सेंट्रल हॉल अथवा कैंटीन में बतियाते सांसद तो बहुतेरे मिल जायंगे परन्तु पुस्तकालय में वैसी भीड़ शायद ही किसी ने देखी होगी | नए - नवेले सांसदों को पुराने सांसदों के अलावा संसद में अधिकारी रहे पूर्व नौकरशाह संसदीय प्रक्रिया का प्रशिक्षण देते हैं | लेकिन इसका समुचित लाभ होता नहीं दिखाई देता | यही वजह है कि संसद और सांसदों के प्रति आम जनता के मन में अपेक्षित सम्मान नहीं रहा | मोदी सरकार ने संसद में होने वाले कामकाज की मात्रा बढ़ाई है | अनेक अवसरों पर सदन अतिरिक्त घंटों तक कार्यरत रहा | इसका लाभ भी हुआ लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि संसद में शोरशराबा तो दोनों पक्षों से होता है लेकिन अच्छे भाषण सुनने नहीं मिलते | राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट जैसे विषयों पर भी औपचारिकता ही पूरी की जाती है | उस दृष्टि से प्रधानमंत्री से ये अपेक्षा की जाती है कि वे भाजपा के सांसदों और मंत्रियों की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में भी कदम उठायें | ये कहना गलत न होगा कि सांसदों की संख्या में वृद्धि से राजनीतिक दलों को भले ही ज्यादा उम्मीदवार उतारने की सुविधा मिल जायेगी किंतु बहस का स्तर नहीं सुधरा तब उसका लाभ ही क्या ? भाजपा से ये उम्मीद इसलिए है क्योंकि वह अपने आपको सबसे अलग बताने का दावा करती है और उसकी एक स्पष्ट और स्थायी विचारधारा भी है | 21 वीं सदी के भारत को यदि विश्व का सिरमौर बनना है तब संसद और सांसद उससे अछूते रहें , ये संभव नहीं है | प्राधानमंत्री हर चीज पर बारीकी से नजर रखते हैं | ऐसे में उन्हें भाजपा के भीतर अच्छे जनप्रतिनिधि तैयार करने पर भी ध्यान देना चाहिए | भारत में नई पीढ़ी की सोच , जानकारी और अपेक्षाएं भी समय के साथ बदल रही हैं | ऐसे में पुराने ढर्रे की संसद और सांसद उसे प्रभावित नहीं कर सकेंगे | आजकल हर जगह ये सुनने को मिलता है कि अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए | लेकिन ऐसा न होने देने के लिए राजनीतिक दल ही जिम्मेदार हैं क्योंकि उनकी नजर में योग्यता का मापदंड शैक्षणिक योग्यता , पेशेवर अनुभव और उज्ज्वल छवि की बजाय चुनाव जीतने की क्षमता बन गयी है | होना तो ये चाहिए कि सांसदों की गुणवत्ता में सुधार सभी राजनीतिक दलों के चिंतन का विषय बने | लेकिन सत्ता में होने से भाजपा की जिम्मेदारी है कि वह इसको राष्ट्रीय विमर्श का विषय बनाकर संसदीय राजनीति को उच्च कोटि का बनाने आगे आये | प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी ने अनेक नवाचार किये हैं | यदि वे सांसदों की गुणवत्ता में सुधार का बीड़ा उठा लें तो नये संसद भवन से नई राजनीति की शुरुवात हो सकती है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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