Saturday 17 September 2022

जगन और नवीन से सीखें उत्तरी राज्यों के मुख्यमंत्री



उद्योग धंधे आर्थिक विकास की आधारभूत आवश्यकता हैं लेकिन वह तभी सम्भव है जब उसके लिए  धन हो | इसीलिये आजकल सभी सरकारें निवेशकों की मिजाजपुर्सी में लगी रहती हैं | बड़े  – बड़े सम्मलेन बुलाकर उद्योगपतियों को सहयोग , संरक्षण और रियायतों के आश्वासन दिए जाते हैं | चीन में हुए आर्थिक विकास की देखासीखी सर्वसुविधा सम्पन्न औद्योगिक क्षेत्र भी विकसित किये जा रहे हैं | धीरे – धीरे ये समझ में आने लगा है कि केवल बातों के जमा खर्च से जनता को अपने पक्ष में बनाये रखना संभव नहीं है | सूचना क्रांति और सोशल मीडिया के विकास के कारण सत्ता में बैठे लोगों के कार्यों की समीक्षा हर समय होती रहती है | इसलिए दुनिया भर की आर्थिक गतिविधियाँ बिना देर किये सबकी जानकारी में आ जाती हैं | इसका ताजा उदाहरण है 2022 में जनवरी से जुलाई तक देश में आये औद्योगिक निवेश के आंकड़ों की राज्यवार जानकारी का सार्वजनिक हो जाना | इसके अनुसार 1.71 लाख करोड़ के निवेश में आंध्र ने 40 हजार करोड़ और उड़ीसा ने 36 हजार करोड़  हासिल कर सबको चौंका दिया | सबसे ज्यादा आबादी वाले उ.प्र और बिहार इस दौड़ में काफी पीछे हैं | औद्योगिक दृष्टि से अग्रणी राज्य महाराष्ट्र और गुजरात भी आन्ध्र और उड़ीसा से पिछड़ गए | निश्चित रूप से इन राज्यों के मुख्यमंत्री क्रमशः जगनमोहन रेड्डी और नवीन पटनायक बधाई के हकदार हैं क्योंकि निवेशकों को आकर्षित करने में राज्य सरकार की नीति और नौकरशाही दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है | इस बारे में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा और अविभाजित आन्ध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का उल्लेख प्रासंगिक होगा जिन्होंने अपने शासनकाल में भविष्य को देखने की बुद्धिमत्ता दिखाई और क्रमशः बेंगुलुरु और हैदराबाद को सूचना तकनीक पर आधारित उद्योगों का केंद्र बना दिया | आज ये  दोनों शहर पूरी दुनिया में जाने – पहिचाने जाते हैं और बीते तीन दशक के भीतर इनकी वजह से पूरे देश की अर्थव्यवस्था को ताकत मिली | इनके पहले भी अनेक मुख्यमंत्री हुए जिन्होंने राजनीतिक उठापटक के बावजूद अपने राज्य की आर्थिक प्रगति को सबसे ऊपर रखा जिसके अनुकूल परिणाम भी आये | एक समय था जब पंजाब ने कृषि के साथ ही उद्योगों के क्षेत्र में भी सराहनीय प्रगति की थी | हरियाणा जब अलग राज्य बना तो उसने भी दिल्ली से निकटता का लाभ उठाया | स्व. बंशीलाल ने बतौर मुख्यमंत्री  इस राज्य के आर्थिक विकास को जो ऊँचाइयाँ प्रदान कीं वे सबके सामने हैं | गुजरात के  मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने भी ये साबित किया कि केवल वोट बैंक की राजनीति ही  लोकप्रियता का आधार नहीं होती | विकास के मायने भी बदलते जा रहे हैं | सड़क , बिजली , पानी कहने को तो सामान्य बातें हैं लेकिन  ये विकास की मूलभूत जरूरतें हैं | ये भी देखने वाली बात है कि कहाँ और कौन सा उद्योग लगाया जाना चाहिए |  मसलन पर्यटन भी वह क्षेत्र है जिससे बड़ी मात्रा में रोजगार बढ़ता है तथा सरकार को भी अच्छी खासी आय होती है | राजस्थान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जिसका बड़ा हिस्सा रेगिस्तानी होने से पानी और हरियाली का अभाव था | लेकिन समुचित सुविधाओं के विकास ने पूरे राज्य को सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बना दिया | अधिकृत आंकड़ों के  अनुसार भारत में आने वाले ज्यादातर विदेशी पर्यटक राजस्थान जाये बिना नहीं रहते | ये देखते हुए वहां बड़े – बड़े होटलों ने अपना कारोबार जमाया | पूर्व राजा -  महाराजाओं ने भी अपने महलों और हवेलियों आदि को होटल का रूप देकर आय के साधन तलाश लिए | दो – तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घरेलू पर्यटन विकसित करने हेतु भारत दर्शन कार्यक्रम के तहत लोगों से ये अपील की कि वे विदेशों का आकर्षण त्यागकर पहले अपना देश तो देखें |  आशय ये है कि  चिमनी से निकलता धुँआ ही अब उद्योगों का प्रतीक नहीं रहा |  सवाल ये है कि उ.प्र और बिहार जैसे राज्य जहाँ के करोड़ों लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं तब वे जन - संसाधन रूपी  पूंजी को अपनी ताकत क्यों नहीं बनाते ? प्रधानमंत्री bhee अपनी विदेश यात्राओं में भारत के विशाल  मानव संसाधन का बखान करना नहीं  भूलते | एक समय था जब उक्त दोनों राज्यों में  वहाँ के परम्परागत उद्योगों में  आसानी से रोजगार  उपलब्ध था | लेकिन राजनेताओं की रुचि आर्थिक  विकास से ज्यादा वोट बैंक का जुगाड़ करने में होने से सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य अपने राजनीतिक महत्व का  विकास के लिए उपयोग करने में विफल रहे | इसका सबसे ज्वलन्त उदाहरण फूलपुर , रायबरेली , और अमेठी हैं जहाँ  से क्रमशः पं. जवाहरलाल नेहरु , इंदिरा गांधी और राजीव गांधी लोकसभा सांसद रहे | उनके अलावा विजय लक्ष्मी पंडित , शीला कौल , सोनिया गांधी , कैप्टन सतीश शर्मा और  राहुल गांधी ने उन सीटों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया | उनके प्रयासों से कुछ प्रतीकात्मक उद्योग भी आये लेकिन  इतने नामचीन सांसदों के रहते जैसा विकास अपेक्षित था , उसका अभाव है | इसके विपरीत नरेंद्र मोदी ने महज आठ साल में न सिर्फ वाराणसी अपितु पिछड़ेपन के प्रतीक पूर्वांचल में विकास की बयार बहा दी | देखने वाली बात ये है कि आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के मुख्यमंत्री राष्ट्रीय राजनीति से दूर ही रहते हैं | श्री पटनायक तो बेहद अन्तर्मुखी होते हुए भी लगातार पांचवी मर्तबा मुख्यमंत्री बने और निकट भविष्य में भी उनके हारने की सम्भावना न के बराबर है | इसी तरह आंध्र के  युवा मुख्यमंत्री जगनमोहन भी अपने सूबे के प्रति अपने दयित्व का निर्वहन कर रहे हैं | वैसे भी अपने राज्य के प्रति स्वार्थी होना दक्षिण भारत की राजनीति की खूबी है जिसका उत्तर भारतीय राज्यों में अभाव है । दरअसल यहाँ के मुख्यमंत्री बने  नेताओं को  राष्ट्रीय नेता बन जाने की इतनी जल्दबाजी रहती है कि वे राज्य के विकास की जिम्मेदारी को नजरंदाज करते रहे हैं |  हालाँकि अनेक राजनेताओं का ये मानना है कि विकास के भरोसे चुनाव नहीं जीते जा सकते | उसकी तुलना में जातीय समीकरण कहीं ज्यादा कारगर साबित हुए हैं |  मोदी – शाह की जोड़ी ने भाजपा को भी सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान  देने के लिये तैयार किया जो उसकी सफलता का आधार है | लेकिन सत्ता की राजनीति करने वालों को ये समझना चाहिए कि वे मुफ्त उपहारों की खैरात बांटने का मौजूदा  फार्मूला स्थायी सफलता नहीं दिलवा सकेगा क्योंकि बिना आर्थिक विकास के रोजगार सृजन संभव नहीं |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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