Thursday 29 September 2022

उधमपुर में धमाके : विधानसभा चुनाव में व्यवधान की कोशिश



कल सुबह इस्लामिक संगठन पी.एफ.आई पर प्रतिबंध लगा और कल ही रात और  आज सुबह जम्मू के निकट उधमपुर में बम विस्फोट हुए | हालाँकि इसमें किसी की मौत की खबर तो नहीं हैं | कश्मीर घाटी के प्रवेश द्वार पर किये गये धमाके पी.एफ.आई की करतूत है या किसी अन्य आतंकवादी संगठन की , ये तो जांच में पता चल सकेगा लेकिन ऐसे समय जब जम्मू कश्मीर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के कारण प्रशासनिक और राजनीतिक गतिविधियाँ तेजी पर हों तब हिन्दू बहुल ऊधमपुर में हुए बम विस्फोट साधारण नहीं माने जा सकते | स्मरणीय है अबकी बार वहां के राजनीतिक समीकरण काफी बदले हुए होगे | मसलन कांग्रेस  के सबसे बड़े नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ने के बाद अपना नया दल गठित कर लिया है | और जो नया परिसीमन हुआ उसके अनुसार जम्मू अंचल में सीटों की संख्या बढ़ने से मुस्लिम बहुल घाटी का वर्चस्व पहले जैसा नहीं रहेगा | इसके अलावा केंद्र सरकार ने वाल्मीकि समाज के उन लोगों को मताधिकार दे दिया जो तीन पीढ़ी पहले पंजाब से सफाई मजदूर के तौर पर लाये गये थे |  उनके परिजन सफाई कर्मी की सरकारी नौकरी तो पाते रहे लेकिन आज तक इस वर्ग को मत देने का अधिकार नहीं मिला | इसी तरह जो शरणार्थी विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये उनको भी जम्मू कश्मीर का नागरिक नहीं माना गया |  अब इनके नाम भी मतदाता सूची में दर्ज हो गए हैं | यही नहीं तो जिन कश्मीरी पंडितों को 1990 में घाटी छोड़ने पर मजबूर किया गया था वे भी बाहर से आकर मतदान कर सकेंगे | ताजा खबर ये है कि बकरवाल और गुज्जर जैसी घुमंतू जातियों को आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था भी की जा रही है | जैसी कि खबर है घाटी के भीतर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के अलावा अन्य छोटी  – छोटी पार्टियों में गठबंधन के प्रयास कारगर नहीं हो पा रहे | गुलाम नबी के अलग दल बना लेने के बाद ये संभावना भी बन रही है कि उनका भाजपा से गठबंधन हो सकता है | यदि ऐसा हुआ तब घाटी के भीतर अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के दबदबे में कमी आना तय है | कांग्रेस के ज्यादातर नेता श्री आजाद के साथ आ जाने से पार्टी के पास कोई बड़ा प्रभावशाली चेहरा बचा ही नहीं है | धारा 370 हटने के बाद कोरोना आ गया जिसकी वजह से  पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ा | लेकिन हालात सामान्य होते ही सैलानी टूट पड़े जिससे दो दशक का रिकॉर्ड टूट गया | अमरनाथ यात्रा भी एक प्राकृतिक विपदा को छोड़कर निर्विघ्न सम्पन्न होने से धरती का स्वर्ग कही जाने वाली घाटी में चिर – परिचित बहार लौट आई है | कानून व्यवस्था की स्थिति काफी सुधरी  है | यद्यपि अभी भी आतंकवादी यदा - कदा घाटी में रह रहे हिन्दुओं  की हत्या कर देश के बाकी हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडितों को घाटी में लौटने का इरादा त्यागने की चेतावनी देने से बाज नहीं आते लेकिन सुरक्षा बल भी आये दिन उन्हें मारकर उनकी कमर तोड़ रहे हैं | इस वजह से जुमे की नमाज के बाद मस्जिदों से निकली भीड़ न तो पाकिस्तानी झंडा लहराती है और न ही भारत विरोधी नारे लगाने का साहस कोई करता है | श्रीनगर के हृदयस्थल लाल चौक पर स्वाधीनता दिवस के दिन तिरंगा उतारकर पाकिस्तानी ध्वज फहराने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ी |  इस वर्ष तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर शोभा यात्रा भी निकली और खीर भवानी में पूजा करने कश्मीर के साथ ही बाहर से भी हिन्दू श्रृद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र हुए | इस तरह  कश्मीर घाटी पूरी तरह न सही किन्तु काफी हद तक नियन्त्रण में आ चुकी है | अब तो पाक नियंत्रित कश्मीर  के निकट तक पर्यटकों को जाने की अनुमति दी जा रही है | सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित परीक्षाओं में कश्मीरी युवा खुलकर भाग ले रहे हैं | केंद्र सरकार द्वारा संचालित विकास योजनाओं के लिए मिल रहे धन की वजह से घाटी में उत्साह का संचार हुआ है | राष्ट्रपति शासन लगने के बाद श्रीनगर से दिल्ली तक के राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण तीव्र गति से चलने से  घाटी का शेष भारत से सम्पर्क और करीबी हो रहा है | रेल सुविधा से भी घाटी को जोड़ने का काम तेजी पर  है | हालाँकि बीच में हुई  सिलसिलेवार घटनाओं के बाद घाटी में रहने वाले हिन्दू सरकारी अमले ने जम्मू स्थानान्तरण करने की जिद ठान ली थी | इसे लेकर भाजपा को उनका विरोध भी झेलना पड़ा | बड़ी संख्या ऐसे कर्मचारियों की है जो घाटी छोड़कर जम्मू में आने के बाद वापस जाने का नाम नहीं  ले रहे | यही बात देश भर में फैले कश्मीरी पंडितों के साथ भी है जो तमाम आश्वासनों के बाद भी घाटी आकर अपने उजड़े आशियाने को आबाद करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे | इस बारे में ये कहना भी गलत न होगा कि राज्य में चुने हुए जनप्रतिनिधि न होने से जनता और प्रशासन के बीच संवादहीनता भी अनेक समस्याओं का कारण बनती है | इसलिए ये अपेक्षा की जा रही है कि चुनी हुई सरकार बनने के बाद हालात और सुधरेंगे | इसी डर से आतंकवादी संगठन चुनाव प्रक्रिया में व्यवधान डालने से बाज नहीं आयेंगे | उन्हें पता है कि राज्य में स्थायी तौर  पर शान्ति - व्यवस्था कायम हो गयी  तब उनका कारोबार सिमटते देर नहीं लगेगी | सैयद अली शाह गिलानी की मौत और यासीन मलिक के जेल जाने के बाद से घाटी में अलगाववादी ताकतें पूर्व की तरह ताकतवर नहीं रहीं |  उनकी स्थिति दरअसल बिना राजा की फौज जैसी हो गई जिसे आतंकवादी हजम नहीं कर पा रहे और इसीलिए वे विधानसभा चुनाव में व्यवधान डालने का हरसंभव प्रयास करेंगे | उधमपुर में किये गये धमाके उसी की शुरुआत हो सकती है | सुरक्षा बलों को इस बारे में काफी सतर्कता बरतनी होगी क्योंकि अलगाववाद रूपी दिए की लौ का बुझने से पहले तेज होना अस्वाभाविक नहीं है |

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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