Tuesday 20 September 2022

सांसदों – विधायकों की तरह ही सरकारी पदों को भरने की व्यवस्था हो



 
म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत दिवस प्रदेश के लाखों बेरोजगार युवाओं की नाराजगी  दूर करते हुए म.प्र लोक सेवा आयोग के अलावा व्यवसायिक परीक्षा मंडल के जरिये होने वाली सरकारी भर्तियों में सामान्य वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 से  बढाकर 43 और आरक्षित तबके के लिए 45 की जगह 48 वर्ष कर दी | ये सुविधा केवल एक बार के लिए होगी | कोरोना काल में भर्ती हेतु की जाने वाले परीक्षा एवं अन्य प्रक्रिया  संपन्न नहीं हो पाने की वजह से हजारों युवा अधिकतम आयु सीमा पार करने की वजह से सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य हो गये | ये देखते हुए मुख्यमंत्री का निर्णय हर दृष्टि से उचित और स्वागत योग्य है | वैसे भी  विधानसभा चुनाव करीब होने के कारण  इस वर्ष सरकारी सौगातों की बरसात होना अपेक्षित है |  बेरोजगारों का गुस्सा दूर करने के लिए और भी घोषणाएं की गईं | ये भी कहा जा रहा है कि विभिन्न सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों पर भर्त्ती की प्रक्रिया भी जल्द पूरी की जावेगी | कुल मिलाकर मामला राजनीतिक लक्ष्यों पर केन्द्रित है | जहां तक बात कोरोना काल में भर्ती न हो पाने के कारण आयु सीमा बढ़ाने की है तो वह पूरी तरह न्यायोचित कही जावेगी लेकिन इसके लिये इतना समय क्यों गंवाया गया , ये सोचने वाली बात है | ये सवाल पहले भी उठता रहा है कि जब प्रदेश में लोक सेवा आयोग और व्यवसयिक परीक्षा मंडल जैसी पूर्णकालिक सरकारी  संस्थाएं कार्यरत हैं तब  हजारों पद खाली क्यों रहते हैं ? कार्मिक प्रशासन के पास सेवा निवृत्त होने वाले कर्मचारी या अधिकारी की पूरी जानकारी रहती है | इसी वजह से किसी कर्मचारी को निर्धारित तिथि से एक भी दिन अतिरिक्त सेवा में नहीं रखा जाता | लेकिन  सेवा काल समाप्त होने की अग्रिम जानकारी होने पर भी रिक्त हुए स्थान को तत्काल भरने की पुख्ता व्यवस्था विकसित क्यों नहीं की जाती , इस प्रश्न का उत्तर मिलना चाहिए | इस बारे में दो उदाहरण दिए जा सकते हैं | पहला तो ये कि किसी सांसद - विधायक की मृत्यु या उसके द्वारा स्तीफा दिए जाने के कारण रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए छह माह में उपचुनाव करवाया जाता है | संसद के सचिवालय में राज्यसभा से निवृत्त होने वाले सांसदों का पूरा रिकॉर्ड होने के कारण समय के पहले ही नए सदस्यों का चुनाव करवा लिया जाता है | दूसरा उदाहरण संघ लोकसेवा आयोग का है जिसके द्वारा ली जाने वाली लिखित परीक्षाएं और साक्षात्कार समय पर होने के साथ ही परिणाम की घोषणा  और नियुक्तियाँ भी अपवाद छोड़कर नियत समय पर होती हैं |  लेकिन राज्यों में इस बारे में घोर लापरवाही देखने मिलती है | अव्वल तो परीक्षाएं समय पर आयोजित नहीं होतीं और हो जाने के बाद उनके परिणाम , साक्षात्कार और फिर नियुक्तियों में लगने वाले समय की सीमा नहीं है | कोरोना काल तो असाधारण परिस्थिति थी लेकिन उसके पूर्व भी न सिर्फ म.प्र अपितु पड़ोसी राज्यों में भी बेरोजगार युवाओं को जिस तरह अनिश्चितता में जीने मजबूर किया जाता रहा वह शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी | चुनाव घोषणापत्र में लाखों सरकारी नौकरियों का वायदा तो होता है लेकिन उसे पूरा करने की जो समय सीमा बताई जाती है उसका पालन शायद ही किसी राज्य में होता होगा | म.प्र में 1 लाख पदों पर इस वर्ष भर्ती किये जाने की बात कही जा रही है | ये पद अब तक खाली क्यों हैं इसकी जवाबदेही किसी की नहीं है | प्रदेश में  विधानसभा के दो दर्जन से ज्यादा उपचुनाव कोरोना प्रकोप की छाया में करवाए गए किन्तु सरकारी नौकरियों की चयन प्रक्रिया  रुकी रही | अधिकतम आयु सीमा एक बार के लिए बढाने  से हजारों युवाओं के सपने बिखरने से रुक जायेंगे लेकिन उनकी ज़िन्दगी के जो साल बेरोजगारी में रहते हुए गुजरे वे तो नहीं लौटेंगे | 43 और 48  वर्ष की आयु में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थी को सफल होने के बाद भी नियुक्ति पाने में कितना समय लगेगा ये भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता | ऐसे में उसके पास नौकरी करने  के लिए बहुत कम साल बचेंगे जिसका असर सेवा निवृत्ति से जुड़े लाभों पर पड़ना तय है | ये देखते हुए कहना पड़ेगा कि लोकतंत्र के तीन अंगों में अधिकारों और अवसरों को लेकर विषमता बनी हुई है | विधायिका अपने अधिकारों और सुख सुविधाओं के प्रति तो  बेहद सतर्क और सजग रहती है लेकिन कार्यपालिका और न्यायपालिका में खाली  पड़े पदों के बारे में वैसा ही जिम्मेदार रवैया नजर नजर नहीं आता | देश में आईएएस , आईपीएस और उनके समकक्ष कहे जाने वाले पदों को छोड़ दें तो अन्य वर्गों के कर्मचारियों और अधिकारियों खास तौर पर राज्य सरकारों के अमले में लाखों पद खाली पड़े रहते हैं | वोट बैंक की राजनीति के चलते नये – नये जिले बना तो दिए जाते हैं किन्तु उनका प्रशासनिक ढांचा आधा - अधूरा रखा जाता है | बढ़ती जनसँख्या के मद्देनजर नये – नये थाने खोल दिए जाते हैं किन्तु उनमें पर्याप्त बल न होने से वे अपने दायित्व का समुचित निर्वहन नहीं कर पा रहे | नए – नए मेडीकल कालेज प्रारम्भ किये जा रहे हैं लेकिन शिक्षक नहीं हैं | विद्यालयीन स्तर से लेकर तो विश्वविद्यालयों तक में अस्थायी संविदा शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है | ये स्थिति किसी भी शासन व्यवस्था के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती | इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तो निचले स्तर की अदालतों तक में न्यायाधीशों के पद बड़ी संख्या में रिक्त पड़े हैं जिसकी  वजह से लंबित प्रकरणों के ढेर लगते जा रहे हैं | देश और जनता दोनों के हित में है कि सरकारी अमले में खाली पदों को जितनी जल्दी  हो सके भरा जावे क्योंकि इसकी वजह से शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर विपरीत असर पड़ता है | म.प्र के मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा अधिकतम आयु सीमा में एक बार के लिए की गयी वृद्धि एक आपातकालीन अनिवार्यता है जिस पर किसी को ऐतराज नहीं होगा | लेकिन समय आ गया है जब सरकारी पदों को खाली रखने वाली मौजूदा संस्कृति को तिलांजलि देकर प्रशासनिक व्यवस्था को पेशवर तौर पर दक्ष बनाया जाए | यदि किसी पद की जरूरत नहीं है तो उसे समाप्त कर  दिया जावे और यदि है तो उसे निश्चित समय सीमा के भीतर भरने की  अनिवार्यता होनी चाहिए | देश के राष्ट्रपति का पद जब एक दिन भी रिक्त  नहीं रहता तब किसी छोटे से कर्मचारी और अधिकारी की कुर्सी सूनी  पड़ी रहे , ये सरकार में बैठे हुक्मरानों के लिए बड़ी चुनौती है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment