Monday 12 September 2022

ताकि हमारे युवाओं को उच्च शिक्षा हेतु विदेश न जाना पड़े



हमारे देश में विश्वस्तरीय कारें बन रही हैं | मोबाइल उत्पादन में भी हम सबसे आगे निकल आये हैं | सॉफ्टवेयर बनाने के काम में भी भारत दुनिया भर में अग्रणी है | हमारे अंतरिक्ष केंद्र अब दूसरे देशों के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम है | ब्रह्मोस मिसाइल और तेजस लड़ाकू विमान के जरिये हम रक्षा उपकरणों के निर्यात में भी आगे बढ़ रहे हैं | अमेरिका , कैनेडा , ब्रिटेन , जर्मनी , आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में भारतीय चिकित्सक , अन्तरिक्ष वैज्ञानिक , साफ्टवेयर इंजीनियर और वितीय विशेषज्ञ बड़ी संख्या में कार्यरत हैं | गूगल और माइक्रोसाफ्ट जैसी विश्वस्तरीय कम्पनियों के उच्च प्रबन्धन में भी भारतीय लोगों की मौजूदगी देखे जा सकती है | कहने का आशय ये है कि वर्तमान विश्व में भारत से गये लोग अपनी योग्यता और परिश्रम के बलबूते सम्मान , प्रसिद्धि और धन अर्जित कर रहे हैं | अमेरिका के राष्ट्रपति की सलाहकार मंडली में अनेक भारतीय  महत्वपूर्ण स्थानों पर बैठे हैं | ब्रिटेन में तो भारतीय  मूल के ऋषि सुनाक प्रधानमंत्री बनते – बनते रह गये | लेकिन इसके साथ ही ये बात भी  सामने  आई है कि लाखों भारतीय छात्र प्रतिवर्ष उच्च शिक्षा ग्रहण करने विदेश जाते हैं | बीते साल के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका ,ब्रिटेन , ऑस्ट्रेलिया , कैनेडा और जर्मनी में ही लगभग 6 लाख भारतीय विद्यार्थी थे | इस साल की शुरुआत में जब रूस द्वारा किये गए हमले के बाद यूक्रेन में हालात बिगड़ने लगे तब वहां से हजारों भारतीय छात्रों की वापसी के लिए केंद्र सरकार को जबरदस्त मशक्कत करनी पड़ी थी | कोरोना काल के दौरान अमेरिका सहित अन्य देशों ने वीसा देना बंद कर दिया था परन्तु ताजा खबरों के अनुसार इस साल अमेरिका ने भारतीय छात्रों को दिए जाने वीसा की संख्या बढ़ाकर दोगुनी कर दी है | इसे भारत के प्रति अमेरिका के दोस्ताना रवैये के तौर पर देखा जा रहा है | लेकिन सवाल ये है कि विकास के बड़े – बड़े दावों के बावजूद हमारे देश में उच्च शिक्षा के इतने प्रबंध नहीं हो सके जिससे विदेश जाकर पढ़ने का चलन बढ़ता ही जा रहा है | इसके अलावा समाज के एक तबके में विदेश जाकर पढ़ना प्रतिष्ठा सूचक माना जाता है | यदि छात्र उन  तकनीकी और वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करने विदेश जावे जिसकी सुविधा  भारत में न हो , तब तो समझा जा सकता है लेकिन महज दिखावे और रईसी के लिए विदेशों में शिक्षा हासिल करना अटपटा लगता है | इस बारे में चिंता का विषय ये भी है कि विदेशों में शिक्षा करने वाले ज्यादातर युवा वहीं काम करने लगते हैं जिससे उनकी प्रतिभा का लाभ देश को नहीं मिल पाता | प्रतिभा पलायन का ये सिलसिला उन मेधावी छात्रों और शोधकर्ताओं के साथ भी जुड़ा है जो भारत में शिक्षित होने के बाद बेहतर अवसर की तलाश में परदेस जाकर बस जाते हैं | ये सब देखने के बाद जरूरत इस बात की है कि हमारे देश में न सिर्फ ज्यादा से ज्यादा उच्च शिक्षण संस्थान खोले जाएँ अपितु जो पहले से मौजूद हैं उनका स्तर इस हद तक ऊंचा किया जावे जिससे न सिर्फ हमारे छात्रों का विदेश जाना रुक जाए बल्कि विदेशी छात्र यहाँ शिक्षा और शोध हेतु आने लगें | भारत में आईआईटी और आईआईएम की अनेक शाखाएँ वैश्विक मापदंडों पर खरी उतरती हैं | इनमें विकासशील देशों के छात्र और शोधार्थी आते भी हैं लेकिन सभी के साथ ये स्थिति नहीं है | और यही विचार का विषय होना  चाहिए | इस बारे में उल्लेखनीय है कि अमेरिका के सुप्रसिद्ध हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पास इतना संचित धन है कि उसे पूंजी बाजार में निवेश करने से करोड़ों डालर प्रतिवर्ष की आय होती है | जिसका स्रोत विदेशी छात्रों से मिलने वाले शुल्क के अलावा शोध और पेटेंट से होने वाली कमाई है | हमारे देश में आईआईटी और आईआईएम भी पेशेवर  सेवाओं से धनोपार्जन करते हैं लेकिन कुछ को छोड़कर जितने भी सरकारी विश्वविद्यालय हैं उनमें से अधिकतर धनाभाव से जूझने के कारण पूर्णकालिक प्राध्यापक तक नहीं रख पाते  | संविदा नियुक्ति पर आने वाले शिक्षक अपने भविष्य को लेकर ही चिंतित बने रहते हैं जिससे अध्यापन और शोध दोनों पर बुरा असर पड़ रहा है | ऐसे में समय की मांग है कि  उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर के अनुरूप संस्थान विकसित  किये जाएँ | जिस तरह विज्ञान और अनुसन्धान के क्षेत्र में देश अपनी खुद की व्यवस्था कर रहा है ठीक वैसी ही सोच उच्च शिक्षा के लिए भी होनी चाहिए | आजकल  देश में निजी क्षेत्र के अनेकानेक विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर  गुणवत्ता युक्त शिक्षा की बजाय व्यवसायीकरण में लिप्त हैं | आजादी के 75 साल का जश्न शिक्षा के स्वदेशीकरण के बिना अधूरा है | यूक्रेन संकट से सबक लेकर हमें अपने देश में उच्च शिक्षा के वे सारे प्रबंध युद्धस्तर पर करने चाहिए जिससे हमारी युवा पीढी़ को पढ़ने के लिए वतन से दूर न जाना पड़े | अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में नस्लीय हमलों की घटनाएँ  जिस तेजी से बढ़ती जा रही हैं उन्हें भविष्य का संकेत मानकर समुचित कदम उठाना जरूरी है |  इसके लिए सबसे पहले ये विश्वास पैदा करना होगा  कि भारत में वैश्विक स्तर की शिक्षा संभव है |  लेकिन इसके लिए नितिन गडकरी जैसे किसी सक्षम और दूरदृष्टि रखने वाले प्रशासक की जरूरत है |  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का जो नारा दिया है उस पर काफी काम होने के दावे किये जाते हैं लेकिन ये पता चलते ही कि लाखों छात्रों ने विदेशों का रुख किया तब ये सोचने को बाध्य होना पड़ता है कि बीते 75 सालों में शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक मापदंडों की बराबरी करने के प्रति हम कहीं न कहीं उदासीन रहे | लेकिन अब जबकि हम वैश्विक शक्ति के तौर पर तेजी से उभर रहे हैं तब भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी आकर्षण का केंद्र बने ये आवश्यक प्रतीत होता है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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