Friday 2 September 2022

महंगाई और बेरोजगारी दूर किये बिना आर्थिक विकास के दावे बेमानी



अगस्त माह में जीएसटी की वसूली से 1.44 लाख करोड़ सरकार के खजाने में आये | यद्यपि ये जुलाई से कुछ कम हैं लेकिन संतोष की बात है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में जीएसटी का आंकड़ा किसी भी महीने 1.40 लाख करोड़ से नीचे नहीं रहा | इसका प्रमुख कारण औद्योगिक उत्पादन और उपभोक्ता मांग में वृद्धि को माना जा रहा है परन्तु  इसका श्रेय महंगाई को भी है | कोरोना काल के बाद अर्थव्यवस्था में महंगाई की वजह से कीमतों में हुई  वृद्धि का असर जीएसटी की वसूली पर भी पड़ा | मूल्य वृद्धि का कारण कुछ हद तक यूक्रेन और रूस के बीच बीते अनेक महीनों से चला आ रहा युद्ध भी है जिसने खद्यान्न निर्यात का रास्ता तो खोला लेकिन उसकी वजह से घरेलू बाजार में दाम बढ़ने से जनता की जेब पर असर पड़ने लगा | जब तक सरकार निर्यात रोकने का निर्णय कर पाती तब तक देश में गेंहू की कीमतों में जबरदस्त उछाल आ चुका था | परिणामस्वरूप आटा , मैदा और सूजी जैसी दैनिक उपयोग की चीजें मंहगी होती गईं | निर्यात रोके जाने का कुछ असर तो कीमतों पर हुआ लेकिन वे पुराने स्तर से अभी भी ऊपर हैं | यही हालत खाने के तेलों की हुई क्योंकि यूक्रेन सूरजमुखी का सबसे बड़ा निर्यातक है लेकिन युद्ध में फंसे होने से उसका विदेशी व्यापार चौपट हो गया | बहरहाल भारत में इन दिनों आर्थिक क्षेत्र में अजीबोगरीब विरोधाभास देखा जा रहा है | एक तरफ  सरकार का दावा है कि औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हो रही है , जमीन - जायजाद का व्यवसाय भी तेजी पकड़ने लगा है , रेल गाड़ियों में प्रतीक्षा सूची लम्बी होने लगी है , हवाई यात्रियों की संख्या में आशातीत वृद्धि से नई – नई एयर लाइंस उड्डयन व्यवसाय में आ रही हैं , पर्यटन स्थलों में सैलानियों का सैलाब देखने मिल रहा है , होटल -  रेस्टारेंट आदि में भी आवक बढ़ी है , निजी और व्यावसायिक परिवहन कोरोना पूर्व की स्थिति से बेहतर होने से  पेट्रोल – डीजल की  बिक्री में लगातार उछाल आया है | यद्यपि बेरोजगारी के आंकड़े अभी भी चिंताजनक हैं  लेकिन आईटी सेक्टर और निर्माण के क्षेत्र में रोजगार की स्थिति सुधरने से चिंता कुछ कम हुई है | इन्हीं सबका असर है कि न सिर्फ  रिजर्व बैंक सहित अन्य सरकारी संस्थान अपितु अर्थव्यवस्था के  आकलन और अनुमान में लगी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां तक इस वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.5 फीसदी के आसपास रहने के साथ ही आगामी कुछ वर्षों  में उसमें और सुधार होने की उम्मीद जता रही हैं | बीते वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष करों से हुई आय  आशा से अधिक रहने से भी अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रमाण मिला था | जीएसटी की  मासिक वसूली जब 1 लाख करोड़ के पार निकली थी तब आर्थिक जगत में उत्साह का संचार हुआ था | लेकिन उसके  लगातार 1.40 लाख करोड़ से ज्यादा बने  रहने से  सरकार को राहत मिली होगी | इसे अर्थव्यवस्था में आये आत्मविश्वास का परिचायक भी कहा जा सकता है किन्तु दो मोर्चों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए | पहला मंहगाई और दूसरा बेरोजगारी | हालाँकि विकास और मूल्यवृद्धि के बीच चोली दामन का साथ माना जाता है किन्तु इस बारे में हमें विकसित देशों की नक़ल से बचना होगा क्योंकि वहां आम आदमी के लिए आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की जो व्यवस्था है वह कम से कम आगामी 25 सालों तक तो इस देश में असम्भव है | दूसरा रोजगार विहीन विकास रूपी जो नई समस्या मानव रहित उद्योग की तकनीक के कारण विकसित हो रही है उसकी तरफ ध्यान देना भी जरूरी है वरना हर हाथ को काम देने का सपना पूरा करना असम्भव  हो जायेगा | रोबोट नामक मशीनी मानव का उपयोग उन देशों के लिए तो आवश्यक है जहाँ आबादी कम है लेकिन हमारे देश में जहां करोड़ों की संख्या में शिक्षित युवा भी बेरोजगार हों और सरकारी नौकरियां तेजी से सिमटती जा रही  हों वहां मशीनों के साथ ही हाथ से किये जाने वाले काम को प्रोत्साहन देना बुद्धिमत्ता होगी | उस दृष्टि से आज की स्थिति में केंद्र सरकार को महंगाई घटाने और रोजगार बढ़ाने की दिशा में अपने आर्थिक नियोजन को केन्द्रित करना चाहिए | इसके लिए सबसे आवश्यक कदम है जीएसटी की विभिन्न दरों की  बजाय एक दर होना और दूसरा पेट्रोल – डीजल को भी जीएसटी के अंतर्गत लाना | यदि सरकार ये कदम उठाए तो इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था में सकारात्मक   सुधार के तौर पर सामने आएगा | उत्पादन की लागत घटने के कारण रोजगार का सृजन होना तय है और उससे भी बड़ी बात ये होगी  कि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति में वृद्धि होने से बाजार में मांग और बढ़ना तय है  | इस सबसे घूम फिरकर जीएसटी से होने वाली आय कम होने के बजाय बढ़ेगी वहीं उत्पादन लगत घटने से हमारे उत्पाद वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे | बीते कुछ समय से जीएसटी काउन्सिल की बैठक के पूर्व राहत की जो उम्मीदें की जाती रही हैं वे बाद में धरी की धरी रह गईं | पेट्रोल – डीजल को उसके दायरे में लाने के बारे में केंद्र सरकार राज्यों के पाले में गेंद डालकर अलग हो जाती है जबकि काउन्सिल के अध्यक्ष होने के नाते यदि केन्द्रीय वित्तमंत्री तदाशय का प्रस्ताव विचारार्थ रखें और भाजपा शासित राज्य ही उसका समर्थन कर दें तो बाकी के राज्य भी जनता की निगाहों में खलनायक बनने से बचने मजबूर होकर साथ खड़े होंगे | लेकिन केंद्र के साथ राजनीतिक मतभेद रखने वाले राज्य भी पेट्रोल –    डीजल सस्ता करने के बारे में उदासीन बने हुए हैं | ऐसे में ये कहना गलत न होगा  कि अर्थव्यवस्था का उजला पक्ष जनता से की जा रही जबरिया उगाही के कारण देखने मिल रहा है | स्वास्थ्य बीमा पर 18 फीसदी जीएसटी लगाया जाना निश्चित तौर पर औरंगजेब के जजिया कर जैसा है | बेहतर हो केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार  और अपने राजस्व में आशातीत वृद्धि से जनता को सीधे राहत देते हुए महंगाई और बेरोजगारी के मोर्चे पर प्रभावशाली नतीजों का प्रबंध करें क्योंकि करदाताओं के कन्धों पर बोझ बढ़ाते हुए रोजगार विहीन विकास अंततः जनअसंतोष में वृद्धि  का कारण बनेगा , जो देश हित में नहीं है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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