Monday 26 September 2022

गहलोत ने गांधी परिवार तक को ठेंगा दिखा दिया



राजस्थान में चल रहे राजनीतिक नाटक के कारण राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की चर्चा कम हो गई है | पहले पूरी पार्टी का ध्यान राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव पर केन्द्रित हो गया | राहुल द्वारा मना करने के बाद गांधी परिवार के भरोसेमंद अशोक गहलोत का नाम प्रमुखता से उछला | दूसरी तरफ केरल के सांसद और जी 23 से जुड़े शशि थरूर ने भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई | म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री और यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह सहित कुछ और नाम भी चर्चा में आये | लेकिन मामला तब पेचीदा हुआ जब पहले दिग्विजय और बाद में राहुल ने कह दिया कि अध्यक्ष बनने पर श्री गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा | हालाँकि उन्होंने  इसके विरोध में अनेक दृष्टांत और तर्क दिये लेकिन  जब उनको लगा कि राजस्थान का राज हाथ से चला जायेगा तब उन्होंने  मनमाफिक उत्तराधिकारी चुनने की इच्छा जताते हुए  आलाकमान पर दबाव बना दिया | गत दिवस जयपुर में नया मुख्यमंत्री चुनने  कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी | दिल्ली से पर्यवेक्षक भी पहुंच गए | लेकिन जादूगर से राजनेता बने श्री गहलोत ने हाथ की वह सफाई दिखाई कि देखने वाले हतप्रभ रह गये | जैसे ही संकेत आया कि आलाकमान ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का मन बना लिया है वैसे ही पहले तो श्री गहलोत ने कहा कि बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव लाकर निर्णय आलाकमान पर छोड़ दिया जावेगा लेकिन दूसरी तरफ समर्थक विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष के पास उनको मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के विरोध में इस्तीफ़ा लेकर भेज दिया |  बैठक में सचिन पायलट और पर्यवेक्षक बैठे रह गये लेकिन गहलोत समर्थक विधायक पहुंचे ही नहीं जिससे वह रद्द कर दी गई | गहलोत खेमे ने दूसरा पैंतरा ये चला कि मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद हो | शायद श्री गहलोत को  आशंका हो चली है कि उन्हें अध्यक्ष का चुनाव हरवाकर राजनीतिक दृष्टि से निहत्था कर दिया जावेगा | इसीलिये चुनाव होने तक  सत्ता नहीं छोड़ने की शर्त उनकी तरफ से आ गई | समूचा घटनाचक्र  जिस तेजी से घूमा उससे  साबित हो गया कि श्री गहलोत आलाकमान पर पूरी तरह हावी हैं | जिस तरह से उनकी ओर से श्री पायलट को सत्ता से बाहर रखने की जिद पकड़ ली गई उससे ये लगता है कि गांधी परिवार के करीबी कहे जाने वाले इस नेता ने उसकी कोई न कोई नस दबा रखी है वरना क्या वजह है कि राहुल और प्रियंका की इच्छा के बावजूद श्री पायलट को हाशिये पर  धकेलने में वे लगातार कामयाब होते रहे हैं | उन्हें पता है कि यदि परिवार चाह लेगा तब उनका अध्यक्ष बनना तय है परन्तु तब तक मुख्यमंत्री बने रहने की जिद ये दर्शाने के लिए काफी है कि वे गांधी परिवार के घटते प्रभाव को भांप चुके हैं | ऐसे समय जब राहुल पार्टी को मजबूती देने के लिए पदयात्रा के जरिये पसीना बहा रहे हैं तब राजस्थान में पार्टी की लड़ाई इस तरह से सामने आ जाना उनके प्रयासों को मिट्टी में मिला सकता है | विधायकों द्वारा  थोक में इस्तीफ़ा देने की पेशकश दरअसल ये दिखाने की कोशिश है कि राजस्थान में श्री गहलोत की मर्जी चलेगी न कि आलाकमान की | इसे बगावत कहें या  चेतावनी इसका विश्लेषण करने वाले कर रहे होंगे लेकिन श्री गहलोत ने अपने पैंतरे से गांधी परिवार के साथ ही पूरी पार्टी को ये सन्देश दे दिया है कि वे कठपुतली नहीं रहेंगे | मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस सवाल से भी बड़ी बात अब ये उठ खडी हुई है कि  श्री गहलोत द्वारा गांधी परिवार को चुनौती दिए जाने के बावजूद भी क्या वह उनको पार्टी का अध्यक्ष बनाने तैयार होगा ? राजनीति के जानकार ये भी कह रहे हैं कि अध्यक्ष न बनने की रणनीति के तहत ही श्री गहलोत ने ये दांव चला है | यदि वे अपनी जिद पूरी करने में कामयाब हो गये तब श्री पायलट के सामने ज्योतिरादित्य सिंधिया का रास्ता अपनाने का विकल्प ही बचेगा जिन्हें म.प्र की सत्ता में आने से रोकने में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने ऐसी ही चालें चली थीं | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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