Thursday 1 September 2022

भारत माता , गांधी जी या भगत सिंह को सरकारी या अदालती प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं



सरकारी रिकॉर्ड महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता नहीं मानता | भारत को माता कहने संबंधी कोई प्रावधान भी हमारे संविधान में नहीं है | लेकिन देश के करोड़ों लोगों के मन में उक्त संबोधान पत्थर पर लकीर की  तरह अंकित हैं | ऐसा ही भाव देश की  आजादी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले जाने – अनजाने दीवानों के लिए है | इसीलिये जब कोई सरकार अथवा अदालत से ये गुहार लगाता है कि सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिया जावे तब हंसी आती है | उल्लेखनीय है कि गत दिवस पंजाब – हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस आशय की याचिका इस आधार पर निरस्त कर दी कि उसके पास ऐसा कोई अधिकार या आधार नहीं है जिसके बल पर वह भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा दे सके | मुख्य न्यायाधीश रविशंकर झा और अरुणा पल्ली की पीठ ने वह  याचिका  खारिज करते हुए  कहा कि उसके पास ऐसा करने के सिवाय और कोई विकल्प भी नहीं है | इसी विषय पर एक यचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में भी पेश की गई थी | याचिकाकर्ता की शहीदों के प्रति श्रद्धा सम्माननीय है | देश में करोड़ों लोग हैं जो भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु , चंद्रशेखर आजाद , ऊधम सिंह , मदनलाल धींगरा और ऐसे ही न जाने कितने बलिदानियों को अपना आदर्श मानकर उनकी स्मृति को  किसी न किसी  रूप में जीवित रखे हुए हैं | लेकिन इस बारे में अदालत जाने का उद्देश्य ये है कि उनकी शहादत को कानूनी मान्यता अर्थात शासकीय स्वीकृति प्राप्त हो | भावनात्मक तौर पर तो ऐसा करने का औचित्य साबित किया जा सकता है लेकिन वास्तविकता के आधार पर देखें तो गांधी जी और भारत माता की तरह से ही भगत सिंह और उन जैसे अन्य क्रान्तिकारियों के बलिदान को किसी अदालत या सरकार की मुहर से प्रमाणित किये जाने की जरूरत नहीं है | संविधान में इण्डिया जो कि भारत है को एक क्षेत्र कहा गया है | उसमें कहीं भी भारत माता जैसा उल्लेख नहीं है | लेकिन इससे इस भूमि  के साथ जुड़ी भारत के लोगों की भावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ता , फिर वे यहाँ रह रहे हों या दुनिया के किसी भी कोने में | यही सोच उन शहीदों के प्रति भी कायम है जिन्होंने फांसी के फंदे को  हँसते – हँसते चूमा | इस बारे में सुभाष चन्द्र बोस का उल्लेख भी प्रासंगिक होगा जो देश के आजाद होने के पहले ही चल बसे | लेकिन उसके बावजूद भी पूरा भारतवर्ष उन्हें नेताजी के नाम से जानता पहिचानता है | ऐसे और भी उदहारण हैं जिनमें देश के लिए कुछ कर गुजरने वालों को सरकार या क़ानून के बजाय जनता की ओर से भरपूर सम्मान प्राप्त हुआ | बापू के अनन्य शिष्य  विनोबा भावे को राष्ट्र संत  कहा गया | सम्मानसूचक  ये संबोधन उनके प्रति जनमानस में व्याप्त कृतज्ञता के भाव का परिचायक हैं | ऐसे में ये अटपटा लगता है कि शहीदों के बलिदान को अदालत के जरिये प्रमाणित करवाया जावे | हो सकता है ऐसी कोशिशों के पीछे क्रांतिकारियों के योगदान की उपेक्षा किया जाना हो | ये बात तो पूरी तरह सही है कि गांधी जी के सत्याग्रह रूपी तरीके से असहमत उग्रवादी विचारधारा से प्रेरित स्वाधीनता सेनानियों और उनके परिजनों को स्वाधीन भारत  में अपेक्षित महत्त्व नहीं मिला |  बीते सप्ताह दिल्ली स्थित बापू की समाधि पर जाकर बैठने वाले अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद ये आदेश दिया कि दिल्ली सरकार के सभी  कार्यालयों में केवल  डा. आंबेडकर और भगत सिंह का चित्र लगाया जावे | पंजाब में सत्ता हासिल करने के बाद पार्टी ने ऐसा ही वहां भी किया | महात्मा गांधी का चित्र हटाये जाने का विरोध भी हुआ | लेकिन इससे गांधी जी छोटे नहीं हुए | उसी तरह यदि सरकारी दस्तावेज भगत सिंह और उन जैसे अनगिनत लोगों को शहीद नहीं मानते और अदालत भी वैसा करने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर देती है तो इसमें नाराजगी अथवा चिंता की बात नहीं होनी चाहिए | क्रांतिकारियों के महान बलिदान के प्रति इस देश के करोड़ों लोगों के मन  में जो असीम श्रद्धा है उसके आगे सरकारी या अदालती मान्यता मायने नहीं रखती | देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वालों के योगदान का मूल्यांकन परीक्षा में मिलने वाले अंकों जैसा नहीं किया जा सकता | उनमें कौन छोटा था , कौन बड़ा ये विवाद खड़ा करना भी बेमानी है | बेहतर हो सरकार इस बारे में निष्पक्ष और उदार हो | इसी के साथ इतिहासकार भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करें | भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को शहीद कहे  जाने के लिए सरकार या अदालत की चौखट पर जाकर अर्जी लगाने की इस लिहाज से कोई जरूरत नहीं है | जिस तरह संविधान की नजर में इण्डिया और भारत  महज एक क्षेत्र का नाम है , लेकिन करोड़ों भारतवासी उसे अपनी माँ मानते हैं ठीक वैसे ही कानून की अदालत के पास भगत सिंह और उनके साथियों को शहीद मानने का कोई अधिकार न हो लेकिन ये देश उनकी शहादत के प्रति कृतज्ञ है और जब तक स्वाधीनता संग्राम की यादें बनी रहेंगी तब तक उन बलिदानियों के सम्मान में नत मस्तक रहेगा |

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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