Saturday 24 September 2022

हिन्दुओं के विरुद्ध वैश्विक षडयंत्र का हिस्सा हैं ये हमले



पूरी दुनिया में भारतीय मूल के लोगों  की मौजूदगी जिस तेजी से बढ़ी उसके बाद उसे वैश्विक समुदाय कहना गलत न होगा | सबसे महत्वपूर्ण ये है कि भारतवंशी तीसरी दुनिया कहे जाने अविकसित या विकासशील देशों में ही नहीं वरन अमेरिका , कैनेडा , ब्रिटेन , ऑस्ट्रेलिया आदि में भी बड़ी संख्या में न सिर्फ रह रहे हैं बल्कि अपनी योग्यता  और परिश्रम के बल पर सम्मान और समृद्धि  अर्जित करने में सफल रहे हैं | अनेक  देशों के शासन तन्त्र में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान है | एक जमाना था जब ब्रिटिश सत्ता के अधीन भारत से श्रमिकों को मॉरीशस , सूरीनाम , और कैरीबियन द्वीप समूह ( वेस्ट इंडीज ) ले जाया गया था | उन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा गया | गिरमिटिया शब्द अंग्रेजी के एग्रीमेंट का अपभ्रंश है | लेकिन  ब्रिटिश सत्ता के छल के चलते वे वापस नहीं आ सके और आज  मॉरीशस सहित अनेक  कैरीबियन देशों के राष्ट्राध्यक्ष बन जाने के बाद भी भारत को अपने पूर्वजों की भूमि मानकर भावुक  हो उठते हैं | उनके नामकरण भी हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर होना  दर्शाता है  कि भारत उनकी भावनाओं में गहराई तक समाया है | कालान्तर में गुजरात के व्यवसायी अफ्रीकी देशों में कारोबार के सिलसिले में जाने लगे | चूंकि वे देश भी ब्रिटेन के उपनिवेश थे इसलिए आवागमन सुलभ था | धीरे – धीरे वे वहीं बसते गये | महात्मा गांधी के वकालत हेतु दक्षिण अफ्रीका जाने के पीछे भी गुजराती समुदाय ही था | समय के साथ उन्हीं में से कुछ  ने ब्रिटेन में कामकाज जमाया तो कुछ दुस्साहसी कैनेडा और अमेरिका में जाकर बसते गए | हांगकांग , मलेशिया , सिंगापुर , आस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड में पीढ़ियों से रह रहे  भारतीय मूल के ज्यादातर लोग ब्रिटिश सत्ता के दौरान ही वहां जा बसे थे | आजादी के बाद परिदृश्य में धीरे – धीरे बदलाव होता गया | पहले  उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाना शुरू हुआ जिनमें  से ज्यादातार बेहतर अवसरों के कारण वहीं बसते चले गये | लेकिन बीते तीन दशक में विकसित देशों में भारत में  शिक्षित नौजवान पीढ़ी ने भी अपनी क्षमता और योग्यता का डंका पीटा | हालाँकि इसमें उदारवादी अर्थव्यवस्था और वैश्वीकरण की बड़ी भूमिका रही | बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में भी  अपना कारोबार जमाया तब उन्हें लगा कि यहाँ भी प्रतिभाएं हैं और फिर जो सिलसिला शुरू हुआ वह रुकने का नाम नहीं ले रहा | अप्रवासी भारतीय समुदाय का हमारी अर्थव्यवस्था में उल्लखेनीय योगदान है और सौभाग्य से ये राष्ट्रप्रेम से भरी हुई है | भारत सरकार ने इसी कारण  अप्रवासी विभाग बनाकर इनका लाभ लेने की नीति बनाई जो काफी हद तक सफल भी है | लेकिन बीते कुछ सालों से ऐसा लगने लगा है कि भारतीय मूल के लोगों की समृद्धि और उन देशों की व्यवस्था में बढ़ती दखल से वहाँ के स्थानीय रहवासी ईर्ष्यालु होने लगे हैं | नस्लीय भावना का प्रदर्शन भी गाहे - बगाहे होता रहा जिसे गंभीरता से नहीं लिया गया | लेकिन बीते कुछ महीनों से ब्रिटेन , ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका और कैनेडा में जिस तरह भारतीय समुदाय के ऊपर हमले हो रहे हैं वह  सुनियोजित षडयंत्र  है | विशेष रूप से हिन्दू धर्मस्थलों पर जिस तरह से आक्रमण हो रहे हैं  उससे लगता है इस्लामिक आतंकवाद ने भारत  विरोधी अपनी गतिविधियों का विकेंद्रीकरण वैश्विक स्तर पर करना शुरू कर दिया है | ब्रिटेन में हिन्दू समुदाय के मंदिरों पर जिस तरह आक्रमण किये जा रहे हैं  वे नस्लीय घृणा के साथ ही  इस्लामी आतंकवाद का हिस्सा है | इसकी बुनियाद में पश्चिम एशिया से पैदा हुआ शरणार्थी  संकट है जिसके चलते लाखों की संख्या में सीरिया साहित अन्य अरब देशों से मुस्लिम आबादी भागकर यूरोपीय देशों के साथ ही अमेरिका और कैनेडा में जाकर जम गई | कुछ समय तक तो इनका आचरण नियन्त्रण में रहा लेकिन जैसे ही इनकी संख्या बढ़ी वैसे ही ये नासूर बनने लगे | जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार यूरोपीय देश इन मुस्लिम शरणार्थियों को  बसाकर पछता रहे हैं | इनके आने से उनकी आन्तरिक शान्ति और सुरक्षा खतरे में पड़ रही है |  लेकिन बीते कुछ समय से देखने में आ रहा है कि उक्त जिन भी देशों में भारत से गए हिन्दू बड़ी संख्या में हैं जिन्होंने अपनी संस्कृति को जीवंत बनाये रखने के लिए मन्दिर और प्रार्थना स्थल बना रखे हैं उन पर इस्लामी समुदाय के लोगों द्वारा हमले होने लगे हैं | ये भी कहा जा सकता है कि कैनेडा ,अमेरिका , ब्रिटेन से ऑस्ट्रेलिया तक एक जैसी घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि ये सब किसी योजना का हिस्सा है क्योंकि इन सबमें साम्यता साफ़ नजर आ रही है |  अब तक ये माना जाता था कि तीसरा विश्वयुद्ध ईसाइयत और इस्लाम के बीच होगा | इस्लामिक  आतंकवाद के सारे बड़े प्रवक्ता इसीलिये अमेरिका को सबसे बड़ा दुश्मन मानते आये हैं | लेकिन विकसित देशों में अपने संयमित आचरण की वजह से एक तरफ जहाँ भारतीय मूल के लोगों का  सत्ता और समाज दोनों में सम्मान बढ़ता जा रहा है वहीं मुस्लिम देशों से आये लोगों को शक की  निगाह से देखा जाता है | इस्लामी संगठनों ने शायद इसीलिये अपने निशाने हिन्दुओं पर केन्द्रित कर दिए जिससे वे नस्लीय उग्रवाद के प्रवर्तक ईसाई संगठनों की सहानुभूति अर्जित कर सकें | सच्चाई जो भी हो लेकिन जिस तरह से हाल ही में भारतीय मूल के हिन्दुओं और उनके आस्था केन्द्रों को विदेशों में निशाना बनाया जाने लगा है वह साधारण बात नहीं है | इस बारे में ये कहना गलत न होगा कि भारत के भीतर इस्लामिक आतंकवाद की जड़ों में जिस तरह से मठा डाला जा रहा है उसकी प्रतिक्रिया देश के बाहर रह रहे हिन्दुओं पर हमलों के रूप में सामने आ रही है | हालाँकि वहां के सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक दायरे में भारतीय मूल के लोगों की पकड़ इतनी मजबूत है कि आसानी से उनका मनोबल नहीं टूटेगा | लेकिन इन घटनाओं को आने वाले बड़े खतरे का संकेत मानकर भारत सरकार को उन देशों की सरकारों के साथ समन्वय बनाकर भारतीय समुदाय की सुरक्षा का इंतजाम करना चाहिये ताकि समस्या और बड़ी न होने पाए |

- रवीन्द्र वाजपेयी


                 

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