Wednesday 7 September 2022

बिल्डर , लीडर और अफसर की तिकड़ी है अवैध निर्माणों की जिम्मेदार


बीते दिनों जब दिल्ली का हिस्सा बन चुके नोएडा में 29 और 32 मंजिला दो गगनचुम्बी आवासीय इमारतें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर गिराई गईं तब ये सवाल उठा था कि नियमों को धता बताते हुए स्वीकृत नक़्शे से अलग निर्मित उन अट्टालिकाओं के खड़े हो जाने तक सम्बंधित विभाग के अधिकारयों ने उनका निर्माण रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ? गत सप्ताह उ.प्र की राजधानी लखनऊ के एक होटल में आग लगने से चार लोगों की मृत्यु हो गयी | जाँच में सामने आया कि उसका नक्शा ही स्वीकृत नहीं था | अब उसे गिराए जानेकी कार्रवाई हो जा रही है | साथ ही होटल मालिक के विरुद्ध भी मामला दर्ज कर लिया गया | ये होटल लखनऊ के सबसे प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र हजरतगंज में स्थित था | आज खबर आ गयी कि कर्नाटक की राजधानी बेंगुलुरु में उन 600 इमारतों को गिराया जायेगा जो पानी की निकासी में बाधक साबित हुईं | दरअसल बीत दिनों बेंगुलुरु में बारिश ने 90 साल का कीर्तिमान ध्वस्त कर दिया | परिणामस्वरूप पूरा आई . टी कारीडोर जल प्लावित हो गया | उसके बाद प्रशासन की नींद खुली और तब ये बात सामने आई कि अवैध रूप से किये गये सैकड़ों निर्माणों के कारण बरसाती पानी की निकासी के रास्ते अवरुद्ध हो जाने की वजह से समस्या उठ खड़ी हुई | ये बात भी सामने आई कि बेंगुलुरु के ज्यादातर निर्वाचित जनप्रतिनिधि बिल्डर बन बैठे हैं जिनके दबदबे के सामने प्रशासन लाचार बना रहा और गैरकानूनी निर्माण होते चले गये | बीते माह म.प्र में जबलपुर नगर के एक निजी अस्पताल में आग लगने से अनेक लोग मारे गए | उसके बाद ये बात उजागर हुई कि अस्पताल में आग बुझाने के न तो समुचित इंतजाम थे और न ही निकासी का दूसरा द्वार | हादसे के बाद जबलपुर सहित पूरे प्रदेश के अस्पतालों एवं होटलों आदि में अग्निशमन के प्रबंधों का ऑडिट शुरू किया गया और बहुत सारे लायसेंस भी रद्द किये गए | उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि हमारे देश में आग लगने के बाद कुआ खोदने वाली कहावत आये दिन चरितार्थ होती रहती है और हादसों के बाद ही ऑंखें खोलने का रिवाज है | उक्त सभी घटनाओं में कानून तोड़ने का दुस्साहस और उसका पालन करवाने के लिए जिम्मेदार अमले का हाथ पर हाथ पर धरे बैठे रहना सामान्य है | जिसके पीछे या तो राजनीतिक प्रभाव होता है या फिर पैसे का दबाव | ऊपर दिए सभी उदाहरण बड़े शहरों से सम्बंधित हैं | नोएडा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रमुख केंद्र है , वहीं लखनऊ उ.प्र की राजधानी | बेंगुलुरु तो आई. टी उद्योग की वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर का महानगर बन गया है | जबलपुर भी म.प्र के प्रमुख शहरों में से है जहां उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ है | ऐसे में इन शहरों में प्रशासन के बड़े ओहदेदार भी पदस्थ होते हैं | बावजूद उसके यदि इतने बड़े - बड़े अवैध निर्माण हो जाएं जिनके कारण लोगों की जान चली जाए या शहर पानी में डूब जाए तो मोटी – मोटी तनख्वाह और दीगर सुविधाएँ हासिल करने वाले सरकारी अमले की उपयोगिता ही क्या है ? ऊंची – ऊंची गैर कानूनी इमारतें तन जाएँ , बिना फायर ऑडिट के अस्पताल – होटल चलते रहें और किसी महानगर की जल निकासी अवैध निर्माण और अतिक्रमणों के कारण अवरुद्ध हो तो निश्चित रूप से इसे स्थानीय प्रशासन और उसके अधीन काम करने वाले सम्बंधित विभागों का अपराध मानकर वैसी ही दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए जैसे अवैध निर्माण करने वाले के विरुद्ध की जाती है | हालाँकि ये बात भी बेहिचक स्वीकार करनी होगी कि इस तरह के अवैध काम राजनीतिक संरक्षण और समर्थन के बगैर अपवादस्वरूप ही होते हैं | बिल्डर , लीडर और अफसर की तिकड़ी ही ज्यादातर गैरकानूनी निर्माणों के लिए जिम्मेदार होती है | किसी भी हादसे के बाद जब हल्ला मचता है तब निर्माण करवाने वाला तो लपेटे में आ ही जाता है और ज्यादा से ज्यादा निचले स्तर के अधिकारियों पर गाज गिराने का दिखावा होता है परंतु जो बड़े अधिकारी और नेता इस सबके पीछे होते हैं वे दूध के धुले बने रहते हैं | ये कहना गलत न होगा कि व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास खत्म होने के लिए इस तबके को मिला रक्षा कवच ही है | जब तक ये स्थिति बनी रहेगी तब तक इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति भी होती रहेगी | इसलिए जरूरी है कि दुर्घटना के बाद सख्त कदम उठाये जाने के कर्मकांड के बजाय शासन और प्रशासन अवैध निर्माण और अतिक्रमण को प्रारंभिक स्थिति में ही रोकें | हालाँकि भीड़तंत्र इसमें बाधक बनता है लेकिन प्रशासन चाह ले तो किसी भी तरह का अवैध निर्माण नामुमकिन है | इसी तरह अतिक्रमण के मामले में भी शुरुआती सख्ती से समस्या की जड़ों को ही काटा जा सकता है | ये बात इसलिए कही जा सकती है कि राजधानी और अन्य शहरों में जहाँ मंत्री , न्यायाधीश , प्रशासनिक अधिकारी और दूसरे प्रभावशाली लोग रहते हैं , वहां अतिक्रमण और अवैध बस्तियां नजर नहीं आतीं | ये सब देखते हुए हादसों का इंतजार किये बिना गैरकानूनी निर्माणों की जाँच कर उनके अवैध हिस्से को तोड़ा जाए और अतिक्रमण की प्रवृत्ति को भी योजनाबद्ध तरीके से समाप्त किया जावे | अन्यथा आग में लोग जलकर मरते रहेंगे और वैश्विक शहर कहे जाने वाले महानगरों में भी बाढ़ जैसे हालात बनते रहेंगे | सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने का सिलसिला बंद होना चाहिए |

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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