Tuesday 22 August 2023

5 फीसदी मत मिले तो भी कमलनाथ का खेल खराब कर देंगे केजरीवाल




आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीते रविवार म.प्र के विंध्य अंचल में चुनाव प्रचार किया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान उनके साथ थे। इसके पूर्व वे दोनों भोपाल और ग्वालियर में भी रैली कर चुके हैं। पार्टी इसके पहले भी म.प्र में चुनाव लड़ चुकी है किंतु उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। नगरीय चुनाव में जरूर सिंगरौली में महापौर के साथ ही कुछ जगह उसके पार्षद  जीत गए। गुजरात विधानसभा में इस पार्टी ने  जिस तरह   प्रचार किया उस लिहाज से तो उसे कामयाबी नहीं मिली किंतु उसने कांग्रेस की लुटिया जरूर डुबो दी। कर्नाटक के हालिया  चुनाव में भी उसकी जमानत जप्ती का सिलसिला जारी रहा । इसके पूर्व पंजाब में भारी बहुमत के बावजूद हिमाचल में उसके हाथ पूरी तरह से खाली  रहे। उस समय तक आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस दोनों को अपना दुश्मन मानकर चलती थी । लेकिन दिल्ली की स्थानीय परिस्थितियों ने केजरीवाल एंड कम्पनी की अकड़ निकालकर रख दी और वह कांग्रेस के साथ गठजोड़ के लिए हाथ - पांव मारने लगी। यही नहीं तो जो गैर भाजपाई नेता उसके  द्वारा जारी भ्रष्टाचारियों की सूची में सबसे ऊपर थे उन्हीं के साथ गलबहियां करने  लालायित हो उठी । दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले और पद स्थापना को लेकर केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के बाद जब श्री केजरीवाल को लगा कि वे अकेले नहीं लड़ पाएंगे तब वे विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बन गए। लेकिन उक्त अध्यादेश को राज्यसभा में पारित होने से रोकने की उनकी सारी कोशिशें विफल हो गईं। वहीं  दिल्ली तथा पंजाब के कांग्रेस नेताओं तक ने आम आदमी पार्टी के साथ रिश्ता रखने का खुलकर विरोध कर दिया । कांग्रेस के कुछ नेताओं ने तो दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान तक कर दिया ।  इस घटनाक्रम के बाद श्री केजरीवाल और श्री मान का म.प्र के दौरे पर आकर चुनाव प्रचार करना इस बात का संकेत है कि अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद आम आदमी पार्टी का विपक्षी एकता के प्रति नजरिया बदलने लगा है। विंध्य के दौरे में श्री केजरीवाल ने  मुफ्त बिजली , बेरोजगारी भत्ता के साथ विद्यालय और अस्पताल जैसे वायदे ही किए किंतु उनकी विधानसभा चुनाव में मौजूदगी निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए नुकसानदेह होगी , जिसका अनुभव गुजरात में हो चुका है। हालांकि हिमाचल और कर्नाटक में आम आदमी पार्टी के मैदान में होने के बावजूद कांग्रेस को सफलता मिली किंतु उसका कारण ये रहा कि उसने  पंजाब पर ज्यादा ध्यान दिया वहीं कर्नाटक में जनता दल (से) की उपस्थिति ने उसके लिए जगह नहीं बनने दी । लेकिन  इस वर्ष के अंत तक जिन तीन राज्यों मसलन म.प्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में  विधानसभा चुनाव होने वाले हैं वहां की राजनीति अभी तक कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीमित रही है । सपा , बसपा या ऐसी ही कुछ ताकतें मैदान में आईं किंतु उनको ज्यादा समर्थन नहीं मिला । उस दृष्टि से आम आदमी पार्टी चूंकि दिल्ली  के साथ ही पंजाब में  भी सत्ता में आ गई है इसलिए वह तीसरी ताकत के तौर पर उक्त तीनों राज्यों में हाथ आजमाकर 2024 के महा मुकाबले के लिए अभ्यास करना चाह रही है। श्री केजरीवाल जानते हैं कि इन तीनों में सरकार बनाना तो दूर रहा उनकी पार्टी मान्यता प्राप्त विपक्ष तक नहीं बन सकेगी । लेकिन इससे उत्तर भारत में बतौर राष्ट्रीय पार्टी उसका संज्ञान लिया जाने लगेगा और जो मतदाता भाजपा विरोधी और कांग्रेस से निराश हैं वे उसे विकल्प के रूप में स्वीकार कर लेंगे। इस लिहाज से श्री केजरीवाल का म. प्र दौरा  मायने रखता है क्योंकि उक्त तीनों में से यही ऐसा राज्य है जहां भाजपा सत्तासीन है।  आम आदमी पार्टी यहां जितने मत बटोरेगी उसका बड़ा हिस्सा कांग्रेस के खाते से ही निकलेगा। इसीलिए ये चौंकाने वाली बात है कि इंडिया नामक गठबंधन में शामिल रहने के बाद भी श्री केजरीवाल ने कांग्रेस का लिहाज किए बिना म.प्र में मोर्चा खोल दिया। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी उनकी पार्टी सक्रिय है। दूसरी तरफ जिस कांग्रेस ने संसद में दिल्ली अध्यादेश का खुलकर विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी को  समर्थन दिया वह भी इस रवैए को लेकर हतप्रभ है। वैसे जहां तक बात श्री केजरीवाल की है तो वे मौजूदा राजनीति के सबसे चालाक नेता हैं जो केवल अपने फायदे से  मतलब रखते हैं । इसलिए कांग्रेस उनको राष्ट्रीय स्तर पर अपने साथ रखकर यदि सोचती हो कि उनका उपयोग कर लेगी तो इससे बड़ी गलतफहमी दूसरी नहीं हो सकती। श्री केजरीवाल को ये बात अच्छी तरह पता है कि राहुल गांधी को ताकतवर बनाने से उनकी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं इसलिए वे कांग्रेस के साथ रहकर भी उसे कमजोर करने का कोई अवसर नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में म.प्र विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी यदि 5 फीसदी मत भी ले गई तो कांग्रेस के लिए बड़े नुकसान का कारण बनेगी । 2018 में सत्ता से बाहर होने के बाद भी भाजपा को कांग्रेस से 1 प्रतिशत ज्यादा मत मिले थे। ऐसे में केजरीवाल एंड कं. ने वाकई  गुजरात जैसा आक्रामक चुनाव लड़ा तब वे कमलनाथ की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर देंगे जो बीते लगभग चार साल से अपनी खोई हुई सत्ता हासिल करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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