Friday 18 August 2023

गुलाम नबी को अब समझ में आया कि मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू थे




हालांकि वे पहले भी कह चुके हैं कि 600 वर्ष पूर्व इस देश में सभी हिन्दू थे। लेकिन जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र सरकार में लंबे  समय तक मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद द्वारा वर्तमान हालातों में अपनी उक्त बात दोहराया जाना बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने ये भी कहा कि कश्मीर में जितने मुसलमान हैं वे सैकड़ों वर्ष पहले पंडित ही थे। हाल ही में डोडा में दिए उनके भाषण का जो वीडियो सामने आया उसमें उन्हें ये कहते सुना जा रहा है कि हिन्दू धर्म इस्लाम से बहुत पुराना है। भारत में रहने वाले मुसलमान  इसी देश में जन्मे हैं। 1500 साल पहले इस्लाम के आने तक कोई मुसलमान था ही नहीं। इसी आशय का बयान नेशनल कांफ्रेंस के नेता डा.फारुख अब्दुल्ला भी  देते रहे हैं जिनके मुख्यमंत्री काल में  कश्मीर घाटी के हिंदू कश्मीरी पंडितों के साथ वही सब हुआ जो देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान से जान बचाकर आए सिंधी और पंजाबी हिंदुओं के साथ घटा था। आज फारुख कहते हैं कि बिना पंडितों के कश्मीर अधूरा है । यद्यपि  उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री बने किंतु दोनों ने  पंडितों की वापसी के लिए सिवाय घड़ियाली आंसू बहाने कुछ नहीं किया।  श्री आजाद भी राज्य और केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे किंतु तब उनके श्रीमुख से ऐसे  वचन शायद ही किसी ने सुने हों। जाहिर है ये सब निकट भविष्य में होने वाले   विधानसभा  चुनाव को देखते हुए कहा जा रहा है।  गुलाम नबी जम्मू क्षेत्र के रहने वाले हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद वहीं से विधायक बने । महाराष्ट्र से कांग्रेस ने उन्हें एक -  दो बार जितवाया और बाकी समय  राज्यसभा में रहे। दो साल पहले जब वह रास्ता बंद हुआ तो पार्टी छोड़ अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाकर बैठ गए। कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं तो कभी विरोध। हाल ही में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के पहले विपक्ष के बहिर्गमन की तो उन्होंने आलोचना की किंतु अगले ही दिन धारा 370 हटाए जाने को भी गलत ठहरा दिया। दरअसल श्री आजाद और उनकी तरह ही  डा.अब्दुल्ला भी अपने पूर्वजों के हिन्दू होने की बात कहकर जम्मू अंचल में भावनात्मक दृष्टि से असर जमाना चाहते हैं क्योंकि नये  परिसीमन के बाद  घाटी का  वर्चस्व पहले जैसा नहीं रह सकेगा। लेकिन वे  धारा 370 को हटाए जाने का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि उसके रहते जम्मू - कश्मीर की मुस्लिम पहिचान बनी हुई थी और हिन्दू समुदाय की स्थिति दांतों के बीच जीभ के समान थी। 370 हटने के बाद घाटी में जुमे की नमाज के बाद पाकिस्तान का झंडा लहराते हुए जुलूस बंद हो गया।   बीते 4 सालों में घाटी में पर्यटकों की रिकॉर्ड आवाजाही के अलावा भी अन्य बातें हैं जो 370  के खात्मे को सही साबित करती  हैं। ऐसे में यदि श्री आजाद जब कश्मीर  के सभी मुसलमानों को मूलतः हिन्दू बताते हैं तब उन्हें धारा 370 हटाए जाने का विरोध बंद करने के साथ ही इस्लाम के नाम पर जो कट्टरता है उसके विरुद्ध उसी तरह मुखर होना चाहिए जिस तरह केरल के राज्यपाल आरिफ मो.खान हैं। यदि वे दिल  से ये बात स्वीकार कर रहे हैं कि हिन्दू धर्म इस्लाम से बहुत पुराना है और देश में रह रहे सभी मुसलमान सैकड़ों वर्ष पहले उनके हिन्दू पूर्वजों द्वारा इस्लाम स्वीकार किए जाने के कारण मुस्लिम बने , तब उन्हें यही बातें कश्मीर से बाहर निकलकर मुस्लिम संगठनों पर काबिज मौलवियों को समझाने के साथ ही समान नागरिक संहिता ,   नागरिकता संशोधन कानून , राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जैसे मसलों पर भी रचनात्मक विचारों के  साथ आगे आना चाहिए । वर्तमान में वाराणसी में ज्ञानवापी का जो विवाद चर्चाओं में है उसके संदर्भ में भी यदि वे  मुस्लिम पक्ष को ये समझाएं कि उन्हें हिंदुओं की आस्था के प्राचीन केंद्रों पर मुगल काल में किए गए अवैध कब्जे  से हट जाना चाहिए , तब उनके संदर्भित बयान में ईमानदारी समझी जा सकती है । वे चाहें तो डा.अब्दुल्ला के साथ पूरे देश में घूम -घूमकर मुस्लिम समुदाय को ये समझा सकते हैं कि  वे  इंडोनेशिया से प्रेरणा लें जो पूरी तरह इस्लामिक देश होने के बाद भी अपने पूर्वजों की हिन्दू संस्कृति और उसकी परंपराओं को सहेजे हुए है।  दरअसल श्री आजाद का उनके अपने राज्य में कोई जनाधार नहीं है। वहीं अब्दुल्ला खानदान का प्रभाव भी ढलान पर है। ऐसे में इनका ये कहना कि हमारी जड़ें हिन्दू धर्म के साथ जुड़ी हुई हैं , महज दिखावा है। वरना ये धारा 370 को हटाए जाने का स्वागत करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे संगठनों को भी  समझाते कि समान नागरिक संहिता और नागरिकता संशोधन विधेयक मुसलमानों के मुख्यधारा में शामिल होने का शानदार जरिया हो सकते हैं ।  हालांकि वे ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि जिस तरह धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाले दलों का मुस्लिम प्रेम भी स्वार्थों पर आधारित है ठीक उसी तरह गुलाम नबी द्वारा भारतीय मुसलमानों के पुरखों के हिन्दू होने जैसी बात  कहा जाना भी शुद्ध अवसरवाद है। सवाल ये है कि जिंदगी का बड़ा हिस्सा गांधी परिवार के दरबारी बनकर गुजारने के बाद  उनके ज्ञान चक्षु क्यों खुल गए ? यहां तक कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कभी ये कहने का साहस नहीं दिखाया कि कश्मीर के सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे। उल्लेखनीय है कि जब यही बात रास्वसंघ के सरसंघचालक डा.मोहन भागवत और डा. सुब्रमण्यम स्वामी कहते थे तो धर्म निरपेक्षता के ठेकेदार आसमान सिर पर उठा लिया करते थे।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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