म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कुछ न कुछ ऐसा कह देते हैं जो कांग्रेस के लिए मुसीबत बन जाता है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज उठने के बाद वरिष्ट राजनेताओं से अपेक्षा की ही जाती है कि ऐसा कुछ न कहें जिससे समाज का वातावरण खराब हो। लेकिन दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी श्री सिंह इस तरफ ध्यान नहीं देते और गाहे बगाहे विवादास्पद बयान देकर अपनी छवि खराब करने के साथ ही कांग्रेस के लिए भी मुसीबतें पैदा करने से बाज नहीं आते। विगत दिवस उन्होंने ये कहते हुए सनसनी फैलाने का प्रयास किया कि भाजपा प्रदेश में हरियाणा के नूंह जैसी घटना को अंजाम देने की कोशिश कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री होने के साथ ही श्री सिंह संगठन के जिम्मेदार पदों पर रहे हैं। वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य भी हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते आरोप - प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन जब श्री सिंह ने इतना गंभीर आरोप लगा दिया है तब उनको चाहिए था पुलिस महानिदेशक से मिलकर ठोस प्रमाण भी देते। लेकिन उनमें दायित्वबोध का सदैव अभाव रहा है और इसीलिए चुनाव जैसे संवेदनशील समय में उन्होंने दंगे कराए जाने जैसी बात उछाल दी। नूंह में हुए दंगे का असर कुछ - कुछ पड़ोसी राज्य उ.प्र और राजस्थान में भी हुआ किंतु जनता की समझदारी से जल्द ही हालात सामान्य हो गए । ये बात भी सामने आ गई कि उनमें रोहिंग्या मुसलमानों का हाथ था । वर्तमान में म.प्र का सांप्रदायिक माहौल पूरी तरह शांत है। सिमी प्रभावित इलाकों में लगातार देश विरोधी तत्वों की धरपकड़ के अलावा माहौल बिगाड़ने वालों पर की गई सख्ती भी कारगर रही है। हाल ही में मोहर्रम और सावन के अवसर पर पड़ने वाले त्यौहार एक साथ सम्पन्न हुए । यद्यपि कुछ स्थानों पर नूंह जैसी हरकत की गई किंतु उस पर तत्काल काबू कर स्थिति बिगड़ने से बचा ली गई। ये देखते हुए श्री सिंह न जाने किस आधार पर आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा म.प्र में भी नूंह जैसा उत्पात करवाने की कोशिश में है। दो दिन पूर्व भोपाल में कांग्रेस द्वारा आयोजित अधिवक्ताओं के सम्मेलन में उन्होंने भाजपा पर घिसे - पिटे आरोप लगाते हुए कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में पराजय के भय से वह दंगा करवा सकती है। साथ ही मुसलमानों के प्रति भाजपा के रवैए की भी आलोचना कर डाली । पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते उनका फर्ज था कि दंगे कराने की भनक लगते ही कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली एजेंसी को उसकी जानकारी देते। ऐसा करने पर निश्चित तौर पर उनकी परिपक्वता और एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका प्रमाणित होती। लेकिन उन्होंने हवा में तीर चलाने की अपनी आदत के अनुरूप ही आरोप लगा डाले। फिलहाल प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव कायम है। समय - समय पर इसे बिगाड़ने की जो हिमाकत हुई उसे निष्फल कर दिया गया। उल्लेखनीय है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भाजपा से मुकाबले हेतु बेहद चतुराई से नर्म हिंदुत्व का सहारा लेते हुए मंदिरों - मठों में मत्था टेकने के साथ ही बाबाओं की अभ्यर्थना में लगे हैं। छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के महंत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की आरती उतारे जाने पर विपक्षी गठबंधन में शामिल कुछ दलों ने उस पर सवाल भी उठाए क्योंकि श्री शास्त्री खुले आम हिन्दू राष्ट्र की वकालत करते हैं। लेकिन श्री नाथ से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने देश सभी का होने की बात तो कही किंतु ये भी स्वीकारा कि 82 फीसदी हिंदुओं के रहते ये देश हिन्दू ही तो है। हाल ही में श्री नाथ ने उज्जैन स्थित महाकालेश्वर में पूजा अर्चना करने के अवसर पर सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक उज्जैन में करने की घोषणा तक कर डाली। लेकिन एक तरफ जहां हिन्दू मतदाताओं को लुभाने वे कांग्रेस की घोषित नीतियों तक की अवहेलना कर रहे हैं वहीं उसके दूसरे बड़े नेता दिग्विजय हिंदुओं को भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकृत होने उकसा रहे हैं। कभी - कभी तो लगता है चर्चा में बने रहने के लिए वे इस तरह के बयान देते हैं । लेकिन इतने अनुभवी नेता को समझना चहिए कि ऐसी टिप्पणियों से कांग्रेस को देश भर में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। आतंकवादियों के प्रति सम्मानजनक संबोधन के अलावा भारतीय सेना से सर्जिकल स्ट्राइक कर प्रमाण मांगने जैसी उनकी बातों से तो पार्टी तक ने पल्ला झाड़ लिया था। ये देखते हुए कांग्रेस को चाहिए दिग्विजय सिंह को चुप रहना सिखाए वरना वे कांग्रेस का बंटाधार करवाने से बाज नहीं आयेंगे।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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